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Jaina Literature and Philosophy
540.
Begins.- (text) ( Ist set ) fol. 26 पयाहिणाणुकूलंसि भूमिसि(सोप्पंसि मारुयंसि
पवायांस निष्प(प्प)न्नमेयणीयसि कालंसि पमुइयपक्कीलिएसु जणबएस etc. ,, --- ( com.) ( Ist set ) fol. 264 आरोग्य रोग त्रिसला मातानइं सुख
भगवंतनइ सुखइ महारक(?)श्रीवर्द्धमानस्वामी त्रिसलायइ जायउ इतरइ
श्रीवर्द्धमानस्वामीकन)उ जन्मकल्याणक इयउ etc. Ends.- (text) (3rd set ) fol. 21° मामेते उत्तमा पहाणा मंगल्ला सुमिणा अन्नेहि
पावसुमिणाहिं पडिहमि(म्मिोस्संति त्ति कटु देवय गुरुजणंसबद्धाहिं पसत्थाहिं मंगल्लाहिं धम्मियाहिं लट्टाहिं कहाहिं सुमिणजागरिय पडिजागरमाणी विहरइ - ( com. ) ( 3rd set ) fol. 21 अर्थः माहरा उत्तम स्वप्न प्रधान फलना दायक मंगलीकरूप चव(उ)दह स्वप्न अनेरें बीजे पाडूए सुमिणे दीठे मत हणाइ तेह भणी शेष रात्रि जे छइ ते देव गुरु संबंधी ए धवल मंगल गीत गाने करी धर्मनी कथायइ करी स्वप्न राषिवा भणी रातीजागरण रातीजगड करती मुखइ समाधइ रहइ जिम आगइ वाचना संध्याकालइ हुस्यइ । नि. विघ्नपणइ जे आराधीयइ ते विधि चैत्यालय पूज्यमान श्रीपार्श्वनाथ तणइ प्रसादि गुरु अनुक्रमइ॥
मुविहितगच्छशिरोमणिश्रीउ(द)योतनसूरिश्रीवर्द्धमानसूरि । श्रीजिनेश्वरसूरि । सप्रभावकश्रीस्थंभनकपार्श्वप्रगटीकृतश्रीअभयदेवमूरि । चउसठि. योगिनीजेता युगप्रधानश्रीजिनदत्तसूरि । भट्टारकप्रभुश्रीजिनकुशलसूरि । श्रीअकबरप्रतिबोधकयुगप्रधानश्रीजिनचंद्रसारि । तत्पट्टे श्रीजिनसिंहमुरि । तत्पट्ट प्रभाकरभट्टारकश्रीजिनसागरसूरिनी आज्ञा जयवंत प्रवर्तई ॥ श्रीरस्तु ॥
कल्पसूत्र टब्बासहित
Kalpasutra with tabhā
No. 540
830.
1899-1915.
Size.-- 10 in. by 4g in.
Extent.-- 199 folios; 14 line to a page ; 32 to 40 letters to a linc.
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