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Begins. fol. 12
Ends.- fol. 3b
पदम जिणादिम जिण चउवीस । गोअम गणहर नामओ सीस । जिणसासणि जस परिस हुआ ।
विगति बोलिस ते जुजुआ ॥ १ ॥ उत्तम तित्थंकर गणधार ।
Jaina Literature and Philosophy
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उत्तम चउविह संघ मझारि ।
अतीत अनागत ज वर्तन |
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ते ऋषि समरउं पुण्यनिधान ।। २ ।। etc.
उद्योतपञ्चमीस्तुति वृत्ति सहित
No. 35
सो... कोडिल (ख) कोडिलक्खा न्निनि सहसकोडे ॥ त्रिनसयं कोडी सतर कोडि । चुलशी लखा गुण सुविशाल ।
श्रावक समरं बारवृतपाल ९६ पणत्तीस कोडि लष बाणवइ कोडि || सहसा पणसय बीस कोडि । बारस अधिका श्राविका जाणि ॥
दूसमसंघ समरंसु विहा ।। ९७ ।
'चंद्र' गच्छ गुरु अंबरि ह ( इं ) स || सोमतिलकसूर पट्टवतंस || देवसुंदर रिषि समरई तेसि द्विजाई ॥ ९८
जां लगई 'मंदर' रहई एकइ ठामि । जां लगइ सागर लहरजाइ । जां लगइ प्रतपइ दिनकर चंद्र | तां लगइ प्रतप श्रीसंघ ॥ ९९ इति उत्तमरिषिसंघस्मरणचतुष्पद्यः समाप्ताः ।
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Size.- 98 in. by 4 24 in .
Extent.- ( text ) 2 folios ; 2 lines to a page ; 42 letters to a line.
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Uddyotapañcamistuti with vṛtti
1172.
1884-87.
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