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Jaina Literature and Philosophy
1280.
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'अष्टापदै' जिम आदि जिनवर वीर 'पावापुर'वरी
वासुपूज्य 'चंपा'नयर सीधा नमे 'रेवै' गिरवरी 'समेतसिषरै' वीस जिणवर मुगति पुहता मुनवरू
चौवीस जिनवर तिहां वंदु सयल संघे सुषकरू २ Ends. - fol. 420
आगम इम्पारे उपांग बारै दस पयन्ना जाणीय
छ छेदग्रंथ प्रसंस अछै मूलसूत्र वांणीयै अनुयोगद्वार उदार नंदीसूत्र समाकित गाईयै
ए वृत्त चूर्णसहित पैंतालीस आगम ध्याइयै ३ बहदसे पालक दया जा सदा भधीयणपका
देहरे अंबालंब इंदर दुखदोहग अवहरु 'गिरनार' गिरवर नेम जिनवर चरणपंकज सेवीयै
भीसंघ सुपने करे मंगल करे अंबकदेवीये ४ हति नेमाजिनस्ततिः॥
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नेमिनाथचरित्र
Nemināthacaritra (नेमिनाहचरिय)
(Neminahacariya) वृत्ति सहित
with yrtti No. 281
1282 (c).
1884-87. Extent.--- fol. 7s to fol. 84. Description.- Both the text and its commentary complete; the
former contains 15 verses. For other details see Adinatha.
caritra with vrtti No. 28. Author of the text.- Jinavallabha Suri, For details about him
___see Nos. 28 and 261. , , the commentary.- Sadhusoma Gani. For his other
works see Nos. 28 and 261. Subject.--- A short account of the life of Lord Nemi. Begins.- (text) fol. 8b
मयनाहिसरसविलसिदेहपहाकदिसामहविभूसं । नेमिजिणं पणमिय चरियलवामिमरसेव कित्तोमि ॥१॥
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