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143.] Hymnology : Svetambara works
165 Age.-- Samvat 1902. Author.-- Jñānasāgara, devotee of Māņikyasāgara. Is he same as
Jñănasāgara, pupil of Māņikyasāgara of Añcala gaccha and author of Sukarajarasa ( Samvat 1701 ) and Dhammillarasa
( Samvat 1715 )? Subject.- Hymns of the 24 Tirthankaras in verse in Vernacular.
The first of them eulogizes Lord Rşabha whose image is
in Petlad. Begins.- fol. 1 ॥ ए0 ॥ श्रीगुरुभ्यो नमो नमः ॥
अमदाबादने गोदरे रे पोठीभर्या पंचाशवाला ए वणझारो उलट्यो रे ॥ 10 ए देशी॥
आदिपुरुष ए आदजी जेहनो महिमा अगम अपार ॥ वाल्हा परभाते उठी पूजतां जे आपे भवनो पार ॥१॥ वा० ॥ नाभि नरेशर क्त(?)अरू सामी मरूंदेवानो जात वा ।। सुमंगला सुनंदानो नाहलो जे भरत भ्रामीनो तात ॥ २॥ बे बटीशा दीकरा जेनो पशयों बहु परिवार वा०॥
मानी आसीसथी जेहने थाया सुतसाषा परिवार ॥३॥वा०॥ fol. 1b
इम सुख विलसीने घj वली लीधो संजमभार वा०॥ केवल लही मुगर्ने गया सामी 'शेत्रंजा'शिणगार ॥४॥वा० ॥ 'पेटलाद' मुषमंडणो मे भले भेटयो जिनराय वा ।। न्यानसागर कहे माहरा हवे सीधा बंछीत काज ॥५॥वा॥
इति आदिजिनं स्तवनं ॥१॥ - fol. 1b
॥ने घर दियर होय तो हांसां कीजीइ रेः॥ ए देशीः॥ 'कोशल'देशे सास 'अजोध्या' छे पुरी रे। जितशत्रु तिण ठाम राजेशरमा धुरी रे ॥१॥ वीजया राणि ताश इंद्रांणि अवतरी रे। बहु गुणनो आव(वा)श अनोपम चातुरी रे ॥२॥ उदरि लीउ अवतार श्रीअजित जिणेशरू रे ।
महिमानो भंडार ते भाण दिणेशरू रे ॥३॥ - fol. 20
लेते) प्रभु दोष अढार रहित समताधरू रे । शिवरमाणिरि हार निरंजन जयकरु रे ॥ ४
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