SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 608
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur. भव्यप्राणिसरोजसन्ततिकृतप्रह्लत्तिसम्पत्तिकः, तिग्माभीसुरिवप्रक.............."प्रवृत्तस्सदा । स्थानाच्छादनभक्तपात्रविषमात्तिप्रशाम्यौषधेऽ. सो हृन्निर्मलवर्कटान्वयभवो वीराभिधः श्रावकः ॥६॥ शीलालंकृतिसा (शा)लिनी कलवच:पीयूषकल्लोलिनी, लारूपव'... 'सा पात्रदानोद्यता ॥७॥ तयोः पुत्रः पात्रं परमविनयज्ञानमहसां ___ सदा दानासक्तः परमवरणे ज्ञानवति च । 55 5 मुनिवाते स (श)स्वत्सुजनजनतासंगरसिकः, कृतक्रोधो नागः करणनिरतेप्यंगिनि न देहिनो पित्रोढा न नाम परकीयरहस्यवाचां ॥६॥ जिनपतिमतविज्ञो देस (श) विख्यातसंज्ञो विमलगुणकलापः कोकिलध्वानलापः। सरससरसिजास्यं पुण्यवृत्तिप्रशस्य- . गुणिगणिकृतसख्यो वीरवीर्वोढस्य ॥ ..........."स्य नृत्वादिकां सर्वज्ञागमलेखनं च भविनां संपद्यते वो वये, रूपोन्यत्र भवांतरे मलविया ज्ञात्वेति सोलीखत् ॥११॥ कल्पग्रन्थस्य भाष्यं विविधविविनिवि सावुसुद्धनिदानं, सद्भक्त्या लेखयित्वा जयपदपरते.......... 3378. द्वादशभावनाविचारः OPENING (w.) ॥०॥ अह पूछइ कुमर नराहि राउ । मणमक्कड नि"मण संकलाउ । कह की रइ बारह भावणाउ । तो अखइ गुरु घरण गुहिरनाउ ॥१॥ (cts) ॥ॐ नमः सिद्धां॥ अथ हवई पूछइ कुमारपाल नराधिपराजा। मनमांकड राखवानइ कारणई सांकल केही कीजइ बारभावनाखपिणी, तिवार पछी कहइ श्रीहेमाचार्य मेधनी परिगुहि रह सादई करी ॥१॥ इन बारह भावण सुणवि राउ । मण मज्झविगं भिउं भववि राठ । रज्ज विकुणंतु चितइ इ गाउ । परहरवि कुगइ कारण पमाउ ॥१४॥ इति श्रीद्वादशभावना समाप्ताः॥ शुभं भवतु ।। चिरं नंदतु यावच्चंद्राक्कं । CLOSING: (w.) COLOPHON: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018014
Book TitleCatalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts Part 3 A
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherRajasthan Oriental Research Institute Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages624
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy