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________________ Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur OPENING CLOSING: मिदं ज्ञानवृद्धयर्थं च श्रीविक्रमनगरे भाण्डागारे स्थापितं शिष्यप्रशिष्यादिभिर्वाच्यमानमाचन्द्राक्कं चिरं नंद्यात् ॥ छ ॥ In a different hand writing संवत् १९०९ वर्षे श्रसूर्वादि ६ भट्टारक श्रीमज्जिनकीर्तिसूरिस्वरात् श्रीबीकानेरीसंघेन वहरापितं । कमली पुस्कम् श्रीबृहत्खरतरश्राचार्यगच्छे। टीकस्य पुस्तक...... काव्य ---- भाषा भाषा 2925. कल्याणमन्दिरस्तोत्र समन्त्र सटीकञ्च यस्य स्वयं सुरगुरुर्गरिमाम्बुराशेः तीर्थ... स्तोत्र' सुविस्तृतमतिनं विभुविधातुम् । अथ मंत्र :- ॐ नमो भगवनो रिसहस्स तस्स पंडिरिणमित्रण चारणपण्पत्ति इंदे भरणामइ यमेण उपाडिया जीह- कंठोट्ठतालुव खीलिया एमई भंसइ यो मई हसइ दुट्ठदिट्ठीए वज्जसंखलाए देवदत्तस्स मरण हिययं कोहं जीहा खीलिया भेल खोलियाए लललल ठः ठः ठः स्वाहा ॥ श्रथ मंत्र: - . रस्य कमठस्मयधूमकेतो स्तस्याहमेष किल संस्तवनं करिष्ये ||२|| युग्मम् ॥ अथ मंत्रविधि: - ए मंत्र वेर १०८ जपी शत्रुविवाद कीर्ज जय थायै दुस्मन मुखबंध था सही २ ॥ ॐ ह्रीं कमठस्मयधूमकेतूपमाय जिनाय नमः || Jain Education International कमठमानभंजन वरवीर, गरिमासागर गुणे गंभीर । सुरगुरु पार लहै नही जास, मैं प्रजान जंपो जस तास ||३|| COLOPHON : इति श्रीकल्याणमन्दिराभिधानं स्तोत्र ॥ Post. Colophonic संपूर्णं ॥ श्रीः ॥ यह कल्याणमंदिर कीयो, कुमुदचंदकी बुद्धि | भाषा कहत वनारसी, कारन समकित शुद्धि ||४५ ॥ 69 न ठुट्ठमट्ठाणे पणठं कम्मनट्टसंसारे । परमट्ठ निट्ठियट्ठे प्रट्ठगरणाधीसरं वंदे ॥१॥ वणारसोदासकृतभाषाबंधसहितं ए मंत्रसेवी राई लवण निवपत्र कटुकतैलेन गुग्गुलेन सह होम: दिन प्रति ३०० पीछले प्रहर कीजै रोग रिपु कष्टनौ नाश होइ सही २॥ ॐ ह्रीं कम्मंमलगालनाय जिनाय नमः इति प्रतिकाव्यं गर्भितमंत्राणि ॥ संवत् १८५५ वर्षे पोषमासे शुक्लपक्षे एकादश्यां ११ गुरुत्रासरे ॥ लिपीकृतं पं० जयकुमारमुनि || खरतरगच्छे || श्रीजिनमाणिक्यसूरिशाखायां ।। श्रीबोडावडनगरमध्ये ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018014
Book TitleCatalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts Part 3 A
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherRajasthan Oriental Research Institute Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages624
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size8 MB
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