________________
50
Catalogue of Sanskrit & Prakrit Manuscripts Pt. III-(A) (Appendix)
CLOSING
नमः स्वानुभवग्राह्यप्रकाशानन्दमूर्तये । सर्व मूत्यन्तरस्थाय नित्याय परमात्मने ।।२।। विकल्पनिवहत्यागात् सर्वाहम्भावभावनात् । स्वानुभूत्येकशीलत्वात् प्राप्यते परमं पदम् ।। १०१।। परानन्दकविश्रामान्मध्यमार्गावलंभनात् । सर्ववृत्त्युपसंहारात् परमात्मोपलभ्यते ॥१०२॥ इत्याप्त प्त)शिवसद्भावः कश्चित सिद्ध सखोदयः । लोकानुकम्पया चक्रे विमर्शोदयमात्मनः ।।१०२॥ इत्याप्तशिवसद्भावभावगर्भस्य सूनुना।
शतकं सिल्लनेनेदं कृतं स्वात्मोपलब्धये ॥१०४।। इत्याचार्यसिल्लन कृतं स्वात्मोपलब्धिशतकं सम्पूर्णमों तत्सत् ॥
COLOPHON
OPENING
2479. पुरुषोत्तमसिद्धान्तः सटीक:
॥ श्रीगोपीजनवल्लभो जयति ॥
॥ अथ पुरुषोत्तमसिद्धान्त ॥ दीनानुकंपयो (या) भूत्वा श्रीमद्वल्लभनन्दनः । प्रणतानां निजं मार्ग तं वन्दे नन्दनन्दनम् ॥१॥ श्रावणस्यामले पक्षे एकादश्यां महानिशि ।
साक्षात् भगवता प्रोक्त स्तदक्षरस (श) उच्यते ॥२॥ श्रीवल्लभाचार्यजी समस्तवैष्णवन प्रति पुरुषोत्तमसिद्धान्त कहत हैं। ते कहा कहत हैं । तत कहतां जे पुरुषोत्तमसिद्धान्त सु अक्षर कहतां सप्तप्रकार कहियतु है। वह सप्तप्रकार कोण । श्लोकार्थ ॥१॥ अर्द्ध श्लोकार्थ ॥२॥ पदार्थ ॥३॥ प्रकरणार्थ ॥४। वाक्यार्थ ॥५॥ पदार्थ ॥६॥ अक्षरार्थ ॥७॥ ए सप्तप्रकार पुरुषोत्तमसिद्धान्त कहत हैं ।। ये साक्षात् कहतां अन्तरायरहित । मन, वाणी, शरीर, सकलांश करिकै । भगवतां कहतां पूर्णपुरुषोत्तम । श्रोकिशोरीप्राणनाथजी। प्रोक्तं कहतां। प्रकर्षण निश्चय करिके । उक्तं कहतां कह्यौ । श्रावण । अमल पक्ष कहतां शुक्लपक्ष । एकादशी की मध्यरात्रिकै विषै । श्रावणमास चातुर्मास्य निषिद्ध कहिये । ता विष । पुरुषोत्तम विष । सदा विधि । पण निषिद्ध न होय० ।
पार्छ प्रश्नोत्तर भये । पीछे श्रीवल्लभाचार्यजी दंडवत करयौ । पाछ श्रीपुरुषो. तम कह्यौ । जा तुम मेरो करग्रहण करावोगे । ताको मैं परित्याग सर्वथा न करूगो। यों कहिक युगलस्वरूप सेवा दई । अरु अंतर्ध्यान भए ।
ईति श्रीमद्भगवदोक्तं पुरुषोत्तम की पाग्या भई । तब श्रीबल्लभाचार्यजी मार्ग प्रवर्त करयौ ।। अरु श्रीनंदकुमार श्रीबल्लभाचार्यजीकों सकलसिद्धान्त कहिक श्री. वृन्दावन विष क्रीडा करते भए । सु अजहूं नित्यविहार करत है ॥१॥ संपूर्ण।
CLOSING :
COLOPHON :
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org