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________________ Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur CLOSING भूतां कैसी है यह ज्ञानरत्नमाला । दृश्याद्रष्टार्थसाधनपटीयान् कहते दृष्ट अरु अदृष्ट ताको जु साधनपरिपाटी । ताको प्रकाशकर्ता हैं । भावार्थ काहा । ऐसी ज्ञानरत्नमाला जा नरके कंठ है । सो कैसे करि न शोभै । अवसि करि अतित शोभत है। बहुरि कैसी है यह ज्ञानरत्नमाला प्रभार्थफलदाता है । इत्यर्थः ।। श्लोक-तुलसीदासप्रसादेन भाषा स्पष्टार्थनिम(मि)ता । भट्टन रामदासेन नाम्ना [प्रश्न प्रकाशिका ॥१॥ साषी- प्रगट पुर मलारना, मथुरामंडल मांहि । भाषा प्रश्नप्रकासिका, कीन्हीं ता पुर मांहि । १॥ श्रीगुर तुरसीदास की, क्रिया-प्रसाद यह जांनि । भाषा प्रश्नप्रकासिका, उदै करि हम प्रांनि ।।२।। रामदास भट नाम है, संत-चरन-रज-रैन । गुपत प्ररथ प्रगट कीयो, बांनी सुंदर ऐंन ।।३। पढे विचार जो सुनें, निज पद पावै सोइ । रामदास संस नहीं, जो अभ्यास कोई ॥४॥ इति श्रीमन्तशंक्राचार्यविरचितो प्रश्नोत्ररत्नमालायां भाषाप्रश्नप्रकासिका नाम रामदासभट विरंचितायां स्माप्तं रोमाराम।। COLOPHON OPENING 2389. प्रश्नोत्तररत्नमालिका सटीका ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ श्रीगुरुभ्यो नमः ॥ प्रार्या-श्रीमच्छङ्करभगवत्पदरचितप्रश्नोत्तराख्यमणिमाला। प्राकृतशब्दगुणी मी रचितो बुध हो परंतु परिपाला ॥१॥ श्लोक-प्रणिपत्य महादेवं प्रश्नोत्तररत्नपद्धति वक्ष्ये । नाग-नरामरवंद्यं सर्वशं मोक्षदं शान्तम् ।।१। कः खलं नालक्रियते दृष्टादृष्टार्थसाधनपठियान् । अमुया कण्ठस्थितया विमलप्रश्नोत्तररत्नमालिकया ।।२।। प्रार्या- कोंण न शोभे विमल प्रश्नोत्तररत्नमालिकाधारी। दृष्टादृष्टार्थाच्या साधनि जो तोचि कुशल संसारी ॥५॥ सच्छिष्या बोध रिती करुनि श्रीशंकरें दयानिधिने । ग्राह्याग्राह्य पदार्थ स्पचि केले असे अशा विधिने ॥६॥ श्लोक- इति कंठगता विमला प्रश्नोत्तररत्नमालिका येषाम् । ते मुक्ताभरणादपि विभाति विद्वत्समाजेषु ॥२८॥ CLOSING: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018014
Book TitleCatalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts Part 3 A
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherRajasthan Oriental Research Institute Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages624
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size8 MB
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