________________
28
Catalogue of Sanskrit & Prakrit Manuscripts Pt. IIL-(A) (Appendix)
CLOSING:
COLOPHON :
Post-colophonic:
कृष्ण जहां योगाधिपति, पारथ जहं धनुपानि ।
लक्ष्मी विजय विभूति नय, तहां वशहि रति मानि । ७८॥ इति श्रीमहाभारते शतसाहस्रिकायां संहितायां वैयासिक्यां श्रीभीष्मपर्वणि श्री. मद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्र श्रीकृष्णार्जुनसंवादे मोक्षसंन्यासयोगो नामाष्टादशोऽध्यायः ।। १८ श्रीकृष्णार्पणम् ।। शुभं भवतु ।।
इति श्रीभवानीपाठककृतपदबोधिनी टोका समाप्ताः । दो०--यत हरि भक्ति प्रसाद हरि, प्रात्मज्ञानहिं पाह।
छुटै बंध जग सहज यह, गीता अर्थ बनाइ ।।१।। ज्ञान मोक्ष वैराग्य शिशु-पालनिहारि सयानि । जननी श्रीहरिभक्ति जग, से इय तजि मति पानि ॥२॥ भीखादास-निदेश लहि, तासु कृपाबल पाइ । श्रीधर कृत टीका विमल, गहि मति सुदृढ सहाइ ।।३।। परम भागवत भूपवर, अरिमर्दन विख्यात ।। चित-प्रमोद हित तासु, यह, दोहाबंधु सुजात ।।४।। भगवद्गीता श्लोक के, करन सदर्थ-प्रकाश । ज्ञानमयो सतसइ यह, कीन्ही जन हरिदाश ।।५।। एक-एक-वसु-एकमित. समगत (वत) विक्रमराज । हितकर यह श्रम होउ मम, संतत संत-समाज ।।६।।
इति श्रीज्ञानसतसई संपूर्ण ।। श्लो०- यदक्षरपदभ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत् ।
तत्सर्व क्षम्यतां देव नारायण नमोऽस्तुते ॥१॥ तैलाद्रक्षेज्जलाद्रक्षेद्रक्षेच्छिथिलबंधनात् । मूर्खहस्ते न दातव्य मेवं वदति पुस्तकम् ।।२।। भग्नपृष्ठकटिग्रीवः स्तब्धदृष्टि रधोमुखः ।
कष्टेन लिखितं ग्रन्थं यत्नेन प्रतिपालयेत् ।।३।। - संवत् १९२३ चैत्र शुद्ध २ दूज अदितवार के दिन संपूर्ण भई लिखा मूरतराम ब्राह्मण ने सिकंद्राबाद के छावनी में।। श्रीकृष्ण परमात्मा के कृपा से ।।
1511. भगवद्गीता सटोका
OPENING:
.....परमात्मा देवता ।। प्रशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे इति बीजम्० इत्यादि ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org