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Catalogue of Sanskrit & Prakrit Manuscripts Pt. II-B (Appendix )
CLOSING & COLOPHON(w.)
एक दिन कथा वार्ता के प्रसंग में श्रीफतेसिंहजी भागवत-यश-अभिलाषी तथा व्रजजीवनदासजी मथुरानिवासी वैष्णवन नै प्रसंग चलायो कि कलिकाल प्रभाव करि कपिलादि सांख्य, पातञ्जलादि योग, काणादि तर्क, गौतमादि न्याय, जैमिनीय पूर्वमीमांसा, व्यासकृत उत्तरमीमांसा इन छै शास्त्रन को बहुधा प्रचार ही नही रह्यो और वेदान्त कहिये उपनिषद् और ब्रह्मसूत्र इनके व्याख्यान भाष्यादिकन को तो श्रवन ही दुर्लभ भयो । तातें प्रमारणग्रंथ ते श्रवन की पवित्रता दूर भई। वा जो लीलायुक्त भगवत्स्वरूप-प्रतिपादक प्रमेयग्रंथ तिनकी तो वार्ता ही कहा रही । नवीन अवैदिक मतन के प्रचार तें बुद्धि को शुध्दि गई। उदरनिमित्त जीवन को अपनो शास्त्र छोडि परविद्या अभिनिवेश होय स्वधर्म-त्याग भयो यातें चित्त को अव्याकुलता होत है। तातें कोऊ सरल भाषाग्रंथ प्रमाण-वाक्यन-सहित जामें उपास्य-उपासक-वरनन अथवा भक्ति वा भक्तिफल को निरूपण होय ऐसो कहनो चाहिये, तो मनकों स्वास्थ्य रहै । ऐसो सुनकै तैसो ही ग्रंथ बनावे कों में प्रवृत्त हुयो हूँ । यद्यपि मैं तुच्छ जीव कहां और अलौकिक पदार्थ को कथन कहां। छोटे मुख से वड़ी वात केसे कही जाय । तथापि वैष्णव-प्राज्ञा उल्लंघन अनुचित समुझि देववाणी में अतिसूक्ष्म या ग्रंथ की रचना करी और इन श्रुति-सूत्रादिकन के अर्थ आचार्यकृत-भाष्यादिकन में वडे-बडे व्याख्यान हैं और अतिकठिन हैं। इसलिये वैष्णवबोधार्थ वेदादिक को अक्षरार्थ भाषा में लिख दीनो है । इति भूमिका । विज्ञान्प्रणम्य सुकृताञ्जलि रेष भूयो
___ भूयो विधाय विनयं विनिवेदयामि । यत्साध्वसाधु हि भवेच्च तदत्र बुद्ध्वा,
___ संक्षम्यतां सुभगकृष्णगुणानुवादान् ॥४६।। इति श्रीमद्वल्लभाचार्यकुलोद्भव-श्रीगोस्वामि-श्रीगुरुदेवगोपेश्वरपादारविन्द-मक रन्दालिन्द-कृष्णदासशर्मविरचित-भगवतसंलापपीयूषः संपूर्णम् । श्रीकृष्णाय नमः । सोरठा-छिमियो कवि अपराध, हाथ जोडि विनती करों।
___ जो कछु साधु असाध, हरिगुणकथन यतन समुझि ।। इति श्रीभगवतसंलापपीयूषग्रंथ को भाषा अक्षरार्थ संपूर्णम् । आषाढस्य सिते ग्रहाः । संवत् १६४६
3447. चाटुपुष्पाञ्जलिः
॥ श्रीवृन्दावनेश्वय नमः ।। नवगोरोचनागौरी प्रवरेन्दीवराम्बराम् । मणिस्तबकविद्योतिवेणीव्यालाङ्गनाफरणाम् ।।१।। उपमानघटामानप्रहारिमुखमण्डलाम् । नवेन्दुनिन्दिभालोद्यत्कस्तूरीतिलकश्रियम् ॥२॥
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