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________________ १०३ पत्र संख्या झेरोक्षसी .डी ग्रंथान । विशेष नोंध ....... पत्र २१-३४ नथी ......१२२४ ...गा.३१२ पत्र १६-१८ नथी गा.११६ .... पत्र १० मुं नथी गा.५१ म.का.४४ KummaNAA328 .......... प्रति पाणीमां भीजाएली छे जिनभद्रसूरि कागळनो हस्तलिखित ग्रंथ भंडार - जैसलमेर दुर्ग ग्रंथांक | ग्रंथर्नु नाम स्थिति कर्ताभाषा संवत् १०९४ ..... विनयचटरास ........ मध्यम ...ऋषभसागर .... गुज. ............ १८३२ १०९५ ..... शालिभद्रचरित्र पद्य .......... श्रेष्ठ.....धर्मकुमार र.१३३४-ले.१९५१ १०९६ ..... ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सस्तबक ...... श्रेष्ठ.... प्रा.गु. १९११ संग्रहणीप्रकरण....... जीर्णप्राय श्रीचंद्रसूरि बंकघूलचोपाई.. मध्यम .......... १७६० सीमंधरजिनसवासोगाथानुं स्तवन..... श्रेष्ठ .....यशोविजयोपाध्याय .. ईधुकारीयचरित्ररास .................... जीर्णप्राय खेमराजमुनि .... भक्तामरस्तोत्र सस्तबक ......... श्रेष्ठ .....मानतुंगसूरि मू...... अध्यात्मस्तुति सस्तबक (उठी सवेरा सामायिक लीधु)........ मध्यम ...भावप्रभसूरि ........... ११०३ नवकारबालावबोध अपूर्ण ११०४ एकविंशतिस्थानप्रकरण सस्तवक ...... मध्यम ... सिद्धसेनसूरि -मू..... १७७७ ११०५ अनेकविचार संग्रह ..... ११०६ सुव्रतष्ठिकथानकवालावबोध.. मध्यम ... १७८४ ११०७ भक्तामरस्तोत्र भाषाकवित्त .. मध्यम ... बनारसीदास ....... १७८३ गोडीपार्श्वनाथस्तवन ............... जीर्ण .... प्रीतिबिमल १७८३ महावीरसत्तावीसभवस्तवन ........... मध्यम .... र. १५३० लघुचाणाक्यराजनीतिशास्त्र सस्तबक-मध्यम... कविप्रिया श्रेष्ठ..... केशवदास .... १८३२ गौतमपृच्छाप्रकरण ................... जीर्णप्राय १११३ ..... अमरसेनवयरसेनरास ................... श्रेष्ठ..... जिनहर्ष र.१७४२-ले.१७४७ महर्षिकुलक सस्तबक .................. --मध्यम ..... पंचभावना सज्झाय .................. लधुभावना तथा तमाकुसज्झाय आदि .. श्रेष्ठ ........ श्रावकअतिचार ............. श्रेष्ठ ......... संवत् १८२५ नुं पंचांग गुटकाकारे ......मध्यम ..... सारस्वतव्याकरण पंचसंधि .............. श्रेष्ठ ..... अनुभूतस्वरूपाचार्य ..................... १९०२ १११९ ....... महावीरस्वामितपपारणुं ..................मध्यम ....... ...... ग ज ..................... गा.६७ ..११०८...११२६............गा.५५ .११०८...११२६.........कडी ३२ १९१० १११२.... गा.६४ गा.४६3 म.गा.२० 1०८...११२६ ..... प्रति पाणीमां भीजाएली छे .. गा.२८ प्रति पाणीमां भींजाएली छे Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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