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________________ ३५८] मुनिराजश्रीपुण्यविजयानां हस्तप्रतिसंग्रहे मेहमहाभड दलदलण बोहिय देस निवेस वयरसेणसूरीस नमि फेडिसु पाय असेस ॥३॥ पदमचंदसूरि पयकमल पणमउं मनउलासि । जस दरिसणि सवि भवियजन पडई भवह पासि । कल्प कथारस पत्थरण विरइय गंथ अणेग क्षेमकीर्तिसूरि क्षमापरो वंदउं मणसंवेगि ॥४॥ कणइकलस जिम निम्मूलउ ओगुणगण अमीयभंडार हेमकलससूरिगुरु नमउं कलि गोयम अवयार । जस भरि धवलीय दसइ दिसइ पणवय निदगभाव पणमउं जसोभद्दसूरि गुरु मदीय भवदवताव ।।५।। सुयजललहिरि सोहामणुए तव जव रयण अधार रयणायरगच्छमंडणइ ए सूरि रयणायर सारु । तिहुयण जगडण मयणभड हेलां मदीय माण मणिसेहरिसूरिपयजुयल नमंता नितु सुविहाण ॥६॥ कोह-मोह-भय-मयमयण णाराय रोस दवनीर धर्मदेवगुणह चलणा नमई ति नरवरवीर । नाणपयासिय समयनय पसाहु कमलवण चंद नमी मह मणि परमाणंद ॥७॥ जल-थल-खचर जीवगण पालिय अभयादाणि अभयसिंहसूरि मनि धरउ वरसइ अमीय वक्खाणि । हेमचंदगुरु चंद जिम सिंचइ अमीयरसेण । चित्तगच्छि चंदकुलि मंडणा ए बंदउं सूरिकमेण ॥८॥ सयलकलागुणि सयलयुगि पयडिय नियमाहप्प देसणवसि रसि कुल सनिसि फेडय भवियविकल्प(प्प) । शम दमं संजम निय जम अज्जव–मद्दवजुत्त जय जय जय जयतिलक गुरु जिणसासणि जयवंत ॥९॥ धरम पयासिय धरणितलि धम्मसेहर गुरुराय माणिसूरि महिमानिलउ नितु नितु पणमउ पाय । रयणसागरसूरि रंगभरि भवियण सुहदायार रयणसिंहसूरि सुगुरु नमी तरिसिउं एउ संसार ॥१०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018007
Book TitleCatalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages598
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size9 MB
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