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________________ ३५२] मुनिराजश्रीपुण्यविजयानां हस्तप्रतिसंग्रहे ठाणाइनवंगाणं महत्थसुत्ताण गणहरकयाणं । विवरणकरणेण कओ उवयारो जेण संघस्स ॥१५॥ सेयंवरसोहकरस्स विमलजसकिरणधवलियधरस्स । भवियजणकमलबोहणससिणो सियवायकलियस्स ॥१६॥ सीसेहिं तस्स एसा कहा कया वद्धमाणसूरीहिं । होउ पढंत सुणंता कारणं मोक्खसोक्खस्स ॥१७॥ गुणगरुओ गुरुभाया वयजेट्ठा आगमम्मि पत्तट्ठो । विमलगणी विमलजसो खमालओ अत्थि पसिद्धो ॥१८॥ लिहण-लिहावण-सोहणपमुहपओयणपसाहणेणेत्थ । तेण कयं साहिज्ज सव्वत्थ समुज्जमंतेण ॥१९॥ धंधुकयम्मि नयरे महलसुओ वसइ वेल्लओ नाम । सड्ढो पवरगुणड्ढो सुवियड्ढो धम्ममग्गम्मि ॥२०॥ मोढकुलंबरससिणो कवड्डिसेटिस्स पुरपहाणस्स । सा दुहिया मयरहिया वेली नामि त्ति इह कहिया ॥२१॥ देवगुरुपायभत्ता दढसम्मत्ता तवम्मि उज्जुत्ता । जस्स घरे वरघरिणी पच्चक्खा धम्ममुत्ति व्व ॥२२॥ तस्स वसहीठिएहिं कया कहा साहसं ककालाओ । एक्कारसहिं सएहिं गएहिं वासाण चालेहि ॥२३॥ आसोयकसिणपक्खे सोमदिणे तह धणिहनक्खत्ते । उदयंते दिवसयरे समाणिया पडिवयविहीए ॥२४॥ पुव्वावरेण संपिडियाए पाययकहाए एयाए । पण्णारस उ सहस्सा गंथपमाणं विणिढेिं ॥२५॥ संसारसरसरोरुहसरिसाणं भवियसमरभइयाण(?) । सिरिअभयसूरिपायाण पणमिमो पायडजसाण ॥२६॥ कमलदलदीहनयणा कमलमुही गहियवामकरपोत्था । कइयणमुहकयवासा सरस्सई जयइ सुपयासा ॥२७॥ जमिहासमंजसं कह वि किं पि मइमोहओ मए भणियं । पुत्तवराहमिव पिया खमंतु तं सुयहरा मज्झ ॥२८॥ इति मणोरमाकहा ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018007
Book TitleCatalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages598
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size9 MB
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