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कृति उपरथी प्रत माहिती सिद्धहेमशब्दानुशासननो हिस्सो अष्टम अध्याय प्राकृतव्याकरण-(सं.)बृहद्वृत्ति (प्रकाशिका वृत्ति)
आचार्य-हेमचन्द्रसूरि, सं., गद्य, ग्रं.२५००, आदि वाक्यः अथ शब्द आनन्तर्यार्थो... पातासंघवी १८१-२, पृ. १-५३, सिद्धहेमशब्दानुशासन अष्टमाध्याय प्रकाशिका नाम्नी वृत्ति, संपूर्ण
डीवीडी-३७/५४ पाकाहेम ६७८०- पे.क्र. २, पृ. ८०, सिद्धहेमशब्दानुशासन लघुवृत्तितृतीयाध्याय तृतीयपादथी सप्तमाध्यायपर्यन्त
तथा सिद्धहेमशब्दानुशासन अष्टमाध्याय बृहद्वृत्तिसहित, वि-१५मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-८० पाकाहेम ७१९०- पे.क्र.१, पृ. १२८, सिद्धहेमशब्दानुशासन अष्टमाध्यायसूत्रपाठ स्वोपज्ञ बृहसत्तिसहित तथा
दुण्ढिकासहित त्रिपाठ, वि-१६६०, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-८५ पाकाहेम ९४९८, पृ. १-१४, सिद्धहेमशब्दानुशासन अष्टमाध्याय बृहद्वृत्तिसह, वि-१६मी, अपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-४९ भांका ९३, पृ. १७, सिद्धहेम प्राकृतव्याकरण टीका, संपूर्ण
डीवीडी-८४ सिद्धहेमशब्दानुशासननो हिस्सो अष्टम अध्याय प्राकृतव्याकरणनी (सं.)बृहद्वृत्तिनी (सं.)प्राकृतदीपिका वृत्ति (प्राकृतदीपिका टीका) आचार्य-हेमचन्द्रसूरि, सं., गद्य,
कृ.विः कर्ता? पाकाहेम ६६१३, पृ. २७, सिद्धहेमशब्दानुशासन अष्टमाध्याय बृहद्वृत्तिदीपिका प्राकृतदीपिका, वि-१५मी, अपूर्ण
__ कुल झे.पृष्ठ-२७ सिद्धहेमशब्दानुशासननो हिस्सो अष्टमाध्याय प्राकृतव्याकरण-(सं.)ढुण्ढिकावृत्ति (दुण्ढिकावृत्ति). (प्राकृतढुण्ढिका)
मुनि-सौभाग्यसागर, सं., गद्य, रचना सं. विक्रम १५९१, पाकाहेम ७१९०- पे.क्र.२, पृ.?, सिद्धहेमशब्दानुशासन अष्टमाध्यायसूत्रपाठ स्वोपज्ञ बृहदत्तिसहित तथा
दुण्ढिकासहित त्रिपाठ, वि-१६६०, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-८५ सिद्धहेमशब्दानुशासननो हिस्सो अष्टमाध्याय प्राकृतव्याकरण-(सं.)अवचूरि
सं., गद्य, पाकाहेम ७१९१, पृ. ३२, सिद्धहेमशब्दानुशासन अष्टमाध्याय अवचूरि, वि-१६६५, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-३२ सिद्धहेमशब्दानुशासननो हिस्सो अष्टमाध्याय प्राकृतव्याकरण चतुर्थपाद-(सं.)बृहद्वृत्ति
आचार्य-हेमचन्द्रसूरि, सं., गद्य, पाकाहेम ७१९२, पृ. ६, सिद्धहेमशब्दानुशासन अष्टमाध्याय चतुर्थपाद बृहद्वृत्तिगत दोधक सटीक त्रिपाठ, वि
१६०३, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-६ सिद्धहेमशब्दानुशासननो हिस्सो अष्टमाध्याय प्राकृतव्याकरण चतुर्थपाद-(सं.)बृहद्वृत्ति की (सं.+अप.)दोधक टीका (दोधक
टीका)
सं.,अप., गद्य, पाकाहेम ७१९२, पृ.६, सिद्धहेमशब्दानुशासन अष्टमाध्याय चतुर्थपाद बृहद्वृत्तिगत दोधक सटीक त्रिपाठ, वि
१६०३, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-६ सिद्धहेमशब्दानुशासन-व्याश्रय संस्कृत महाकाव्य (द्व्याश्रय संस्कृत महाकाव्य), (कुमारपालचरित)
आचार्य-हेमचन्द्रसूरि, सं., पद्यसर्ग२०, ग्रं.२८२८, आदि वाक्यः अर्हमित्यक्षरं ब्रह्म वाचकं परमेष्ठिनः... पातासंघवी २८, पृ. २८४, व्याश्रय महाकाव्य सह वृत्ति- सर्ग १-११ खण्ड-१, वि-१४८५, प्रतिपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-२३६, डीवीडी-२४/४२ पातासंघवी १२५, पृ. २७८, द्व्याश्रय संस्कृत २० सर्ग, संपूर्ण
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