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कृति उपरथी प्रत माहिती आप्तपरीक्षाद्वात्रिंशिका (आप्तपरीक्षा बत्रीशी)
आचार्य-हेमचन्द्रसूरि, सं., पद्य, का.३२, पातासंघवी १७९-१- पे.क्र.८, पृ. २५०-२५३, योगशास्त्र चतुःप्रकाशान्तर्गतसुभाषितसमुच्चय आदि, प्रतिपूर्ण
डीवीडी-३६/५४ आप्तमीमांसा
आचार्य-समन्तभद्र[दिगम्बर], सं.,
पाकाहेम १८२२४, पृ. ३७, आप्तमीमांसा सटीक, वि-१९४४, संपूर्ण आप्तमीमांसा-(सं.)आप्तमीमांसालङ्कार टीका (आप्तमीमांसालङ्कार टीका)
आचार्य-विद्यानन्दसूरि[दिगम्बर], सं., गद्य, पाकाहेम ४२८५, पृ. १४१, आप्तमीमांसालङ्कार सह अष्टसहस्री टिप्पणी, वि-१४५४, संपूर्ण प्रत विशेष- प्रतिशुद्ध छे. , आ प्रतमां खरेखर आप्तमीमांसा थी अष्टसहस्री सुधीनी केटली कृतिओ छे ते
नक्की थतुं नथी २ के ३ के ४?
कुल झे.पृष्ठ-१४१ आप्तमीमांसालकार-अष्टसहस्री-(सं.)टिप्पण (अष्टसहस्री टिप्पण)
सं., गद्य, पाकाहेम ४२८५, पृ. १४१, आप्तमीमांसालङ्कार सह अष्टसहस्री टिप्पणी, वि-१४५४, संपूर्ण प्रत विशेष- प्रतिशुद्ध छे. , आ प्रतमा खरेखर आप्तमीमांसा थी अष्टसहस्री सुधीनी केटली कृतिओ छे ते
नक्की थतुं नथी २ के ३ के ४?
कुल झे.पृष्ठ-१४१ आप्तमीमांसा-(सं.)टीका
आचार्य-वसुनन्दी (दिगम्बर), सं., गद्य,
पाकाहेम १८२२४, पृ. ३७, आप्तमीमांसा सटीक, वि-१९४४, संपूर्ण आप्तमीमांसा-(सं.)आप्तमीमांसालङ्कार टीका (आप्तमीमांसालङ्कार टीका)
आचार्य-विद्यानन्दसूरि[दिगम्बर], सं., गद्य, पाकाहेम ४२८५, पृ. १४१, आप्तमीमांसालङ्कार सह अष्टसहस्री टिप्पणी, वि-१४५४, संपूर्ण प्रत विशेष- प्रतिशुद्ध छे. , आ प्रतमां खरेखर आप्तमीमांसा थी अष्टसहस्री सुधीनी केटली कृतिओ छे ते
नक्की थतुं नथी २ के ३ के ४?
कुल झे.पृष्ठ-१४१ आप्तमीमांसालङ्कार-अष्टसहस्री-(सं.)टिप्पण (अष्टसहस्री टिप्पण)
सं., गद्य, पाकाहेम ४२८५, पृ. १४१, आप्तमीमांसालङ्कार सह अष्टसहस्री टिप्पणी, वि-१४५४, संपूर्ण प्रत विशेष- प्रतिशुद्ध छे. , आ प्रतमा खरेखर आप्तमीमांसा थी अष्टसहस्री सुधीनी केटली कृतिओ छे ते
नक्की थतुं नथी २ के ३ के ४?
कुल झे.पृष्ठ-१४१ आप्तमीमांसा-(सं.)टीका
आचार्य-वसुनन्दी (दिगम्बर), सं., गद्य,
पाकाहेम १८२२४, पृ. ३७, आप्तमीमांसा सटीक, वि-१९४४, संपूर्ण आप्तमीमांसालङ्कार टीका जुओ - आप्तमीमांसा-(सं.)आप्तमीमांसालङ्कार टीका, आचार्य-विद्यानन्दसूरि, संस्कृत आप्तमीमांसालङ्कार-अष्टसहस्री-(सं.)टिप्पण (अष्टसहस्री टिप्पण)
सं., गद्य, पाकाहेम ४२८५, पृ. १४१, आप्तमीमांसालङ्कार सह अष्टसहस्री टिप्पणी, वि-१४५४, संपूर्ण प्रत विशेष- प्रतिशुद्ध छे. , आ प्रतमा खरेखर आप्तमीमांसा थी अष्टसहस्री सुधीनी केटली कृतिओ छे ते
नक्की थतुं नथी २ के ३ के ४?
कुल झे.पृष्ठ-१४१ आभाव्यानाभाव्यविचार