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कृति उपरथी प्रत माहिती प्रत विशेष- आ ज ग्रंथने गा.के. नं.३५मां आवश्यकवृत्ति कर्ता -हरिभद्रसूरि एम लख्युं छे.
डीवीडी-३/१३ भांता १५, पृ. १३९, विशेषावश्यकभाष्य, संपूर्ण प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.१-११०५. ग्रंथ खराब छे., गाथा-४३३६.
डीवीडी-६७/७६ भांता १६, पृ. ३३२, विशेषावश्यकभाष्य व्याख्यान सहित, वि-११३८, संपूर्ण प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.१-११०६. नंबर आडा अवळा छे.
डीवीडी-६७/७६ पाकाहेम १४८४३, पृ. ३९६, विशेषावश्यकमहाभाष्यवृत्तिसह, वि-१५८५, संपूर्ण
प्रत विशेष- पत्र ३७८मुं डबल छे. प्रथम पत्रमा चित्र छे.मूल अने टीकार्नु परिमाण २८००० श्लोक प्रमाण
कुल झे.पृष्ठ-३९५ विशेषावश्यकमहाभाष्य-(सं.)वृत्ति
आचार्य-कोट्याचार्य, सं., गद्य, ग्रं.१३७००, आदि वाक्यः कयपवयणप्पणामो वुच्छं चरणगुणसङ्गहंसयलं... भांता १६, पृ. ३३२, विशेषावश्यकभाष्य व्याख्यान सहित, वि-११३८, संपूर्ण प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.१-११०६. नंबर आडा अवळा छे.
डीवीडी-६७/७६ विशेषावश्यकमहाभाष्य-(सं.)शिष्यहिता वृत्ति (शिष्यहिता बृहद्वृत्ति), (बृहद्वृत्ति)
आचार्य-हेमचन्द्रसूरि मलधारी, सं., गद्य, रचना सं. विक्रम ११७५, ग्रं.२८०००, आदि वाक्यः
श्रीसिद्धार्थनरेन्द्रविश्रुतकुल... पातासंघवीजीर्ण १, पृ. ३१८, विशेषावश्यकवृत्ति द्वितीय खण्ड, वि-१४५३, त्रुटक प्रत विशेष- प्रतिलेखन पुष्पिकायुक्त.
डीवीडी-५६/५९ पाताहेसं २२, पृ. ३६३, विशेषावश्यकमहाभाष्य वृत्तिसह प्रथम खण्ड, प्रतिपूर्ण
डीवीडी-३/१३ पाताहेसं २३, पृ. ४३६, विशेषावश्यकमहाभाष्य वृत्तिसह प्रथम खण्ड, प्रतिपूर्ण प्रत विशेष- आ ज ग्रंथने गा.के. नं.३५मां आवश्यकवृत्ति कर्ता -हरिभद्रसूरि एम लख्युं छे.
डीवीडी-३/१३ भांता १४, पृ. ३४४, शिष्यहिता-विशेषावश्यकभाष्यवृत्ति, संपूर्ण प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.१-१११२. ग्रंथ खराब छे. विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका., पत्र २ थी २५ खूटे छे.
डीवीडी-६७/७६ पाकाहेम १४८४३, पृ. ३९६, विशेषावश्यकमहाभाष्यवृत्तिसह, वि-१५८५, संपूर्ण
प्रत विशेष- पत्र ३७८मुं डबल छे. प्रथम पत्रमा चित्र छे.मूल अने टीकार्नु परिमाण २८००० श्लोक प्रमाण
छे.
कुल झे.पृष्ठ-३९५ विशेषावश्यकमहाभाष्य-(सं.)वृत्ति
आचार्य-कोट्याचार्य, सं., गद्य, ग्रं.१३७००, आदि वाक्यः कयपवयणप्पणामो वुच्छं चरणगुणसङ्गहंसयलं... भांता १६, पृ. ३३२, विशेषावश्यकभाष्य व्याख्यान सहित, वि-११३८, संपूर्ण प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.१-११०६. नंबर आडा अवळा छे.
डीवीडी-६७/७६ विशेषावश्यकमहाभाष्य-(सं.)शिष्यहिता वृत्ति (शिष्यहिता बृहद्वृत्ति), (बृहद्वृत्ति)
आचार्य-हेमचन्द्रसूरि मलधारी, सं., गद्य, रचना सं. विक्रम ११७५, ग्रं.२८०००, आदि वाक्यः __ श्रीसिद्धार्थनरेन्द्रविश्रुतकुल... पातासंघवीजीर्ण १, पृ. ३१८, विशेषावश्यकवृत्ति द्वितीय खण्ड, वि-१४५३, त्रुटक
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