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कृति उपरथी प्रत माहिती अष्टादशजिनस्तोत्र अस्मद् युष्मद रूपगर्भित-(सं.)अवचूरि
सं., गद्य, पाकाहेम १५७१६, पृ. ४, अष्टादशजिनस्तोत्रसावचूरि अस्मद्-युष्मद्रुपगर्भित, वि-१६मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-५ अष्टादशजिनस्तोत्र अस्मद् युष्मद् रूपगर्भित-(सं.)अवचूरि
सं., गद्य, पाकाहेम १५७१६, पृ. ४, अष्टादशजिनस्तोत्रसावचूरि अस्मद्-युष्मद्रुपगर्भित, वि-१६मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-५ अष्टादशपापस्थानक (अढारपापस्थानक)
प्रा., पद्य, गा.१७, आदि वाक्यः सव्वं भन्ते पाणाइवाय पच्चक्खामि... पाताहेसं १८९- पे.क्र. २२, पृ. ११००-१११A, दशवैकालिकसूत्रादि प्रकरणसङ्ग्रह, संपूर्ण प्रत विशेष- त्रुटक. कुल पत्र-४५+१५९=२०४. इसमें दूसरे क्रम के पत्रांक १८-४६ नहीं है. कुछेक पत्रों पर
बीजक दिया हुआ है. कुछ पत्रों के आधे भाग खंडित हैं.
कुल झे.पृष्ठ-८४, डीवीडी-१०/१९ भांता ७२- पे.क्र. १७, पृ. ७९B-८०B, दशवैकालिकसूत्रनियुक्ति आदि सङ्ग्रह, संपूर्ण
पे. विशेष- सूचिपत्र नं.१-१२९५. प्रत विशेष- सूचीपत्र नं.१-७११.
कुल झे.पृष्ठ-७२, डीवीडी-७३/८२ अष्टादशप्रसूति
सं., गद्य, आदि वाक्यः भलनं कुशलं तर्जा राजभागावलोकमं... भांता ७०- पे.क्र. १४७, पृ. १९९०-१९९B, अर्हत्स्तोत्र आदि - विचारसङ्ग्रहपोथी, वि-१३७८, संपूर्ण प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.३-१५. पत्र-२५२+२-१=२५३., पेटाङ्क-१७३ अन्तर्गत समग्र ग्रन्थप्रमाण आपेल छे.
कुल-४२०० श्लोक. अन्तमां पत्रांक २५००-२५२A उपर प्रतस्थ कृतियोंनी अनुक्रमणिका आपेली छे. विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका.
कुल झे.पृष्ठ-७६, डीवीडी-७२/८२ अष्टादशविधरसवती
प्रा., गद्य, आदि वाक्यः सुओ दाणा... भांता ७०- पे.क्र. १४६, पृ. १९८B-१९९A, अर्हत्स्तोत्र आदि - विचारसङ्ग्रहपोथी, वि-१३७८, संपूर्ण
पे. नाम- नव निधय प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.३-१५. पत्र-२५२+२-१=२५३., पेटाङ्क-१७३ अन्तर्गत समग्र ग्रन्थप्रमाण आपेल छे.
कुल-४२०० श्लोक. अन्तमा पत्रांक २५००-२५२A उपर प्रतस्थ कृतियोंनी अनुक्रमणिका आपेली छे. विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका.
कुल झे.पृष्ठ-७६, डीवीडी-७२/८२ अष्टादशसहस्री वृत्ति जुओ - सिद्धहेमशब्दानुशासन-(सं.)बृहद्वृत्ति, आचार्य-हेमचन्द्रसूरि, संस्कृत अष्टादशस्तवी जुओ - अष्टादशजिनस्तोत्र अस्मद् युष्मद् रूपगर्भित', आचार्य-सोमसुन्दरसूरि, संस्कृत अष्टादशस्तवी जुओ - युष्मदस्मदष्टादशस्तवी, आचार्य-सोमसुन्दरसूरि, संस्कृत अष्टाध्यायी जुओ - पाणिनिव्याकरण, ऋषि-पाणिनि, संस्कृत अष्टापदादितीर्थस्तुति
अप., पद्य, गा.१५, आदि वाक्यः देव जिणवरपवरजस पसर सरणगय धीरवण... पाताहेसं १६८ - पे.क्र. ५०, पृ. ९९आ-१०२आ, दशवैकालिकसूत्र, पाक्षिक सूत्रस्तोत्रवृत्ति, स्तुति स्तवनादि, संपूर्ण
पे. विशेष- संपूर्ण. झेरोक्ष पत्र-५३-५४. प्रत विशेष- प्रारंभिक कुछेक पत्र उभय पार्श्व खंडित होने से पाठ भी खंडित है.
कुल झे.पृष्ठ-७२, डीवीडी-९/१८ अष्टोत्तरशतनामगर्भित पार्श्वनाथस्तोत्र जुओ - पार्श्वनाथस्तोत्र अष्टोत्तरशतनामगर्भित, संस्कृत, श्लोक३३
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