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कृति उपरथी प्रत माहिती पातासंघवी २०६-२- पे. क्र. ५८, पृ. १७९-१८४, योगशास्त्र चार प्रकाश आदि, संपूर्ण
पे. नाम- चैत्यवन्दन वन्दनक विवरण वृत्ति
डीवीडी-३८/५५
पाकाहेम ६५५६, पृ. २३९, आवश्यकसूत्र लघुवृत्तिसहित, वि-१५मी, संपूर्ण
कुल हो. पृष्ठ- २४०
पाकाहेम १०३४८, पृ. ९. चैत्यवन्दन प्रत्याख्यान श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र वृत्ति, वि-१५मी प्रतिपूर्ण
प्रत विशेष - ग्रन्थाग्र- ७५०. कुल डी. पृष्ठ-६
आवश्यक सूत्र- (सं.) वृत्ति
आचार्य - तिलकसूरि, सं., गद्य,
पातासंघवी २३- पे.क्र. २, पृ. १८१-३६०, आवश्यक लघुवृत्ति, वि- १४८६, संपूर्ण प्रत विशेष प्रति सारी छे.
डीवीडी-२३/४१
आवश्यकसूत्र-(सं.)शिष्यहितावृत्ति ( शिष्यहितावृत्ति), (आवश्यक सूत्र - ( सं .) बृहद्वृत्ति शिष्यहिता)
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आचार्य हरिभद्रसूरि सं. प्रा. गद्य नं. २२०००, आदि वाक्यः प्रणिपत्य जिनवरेन्द्र वीरं श्रुतदेवतां गुरून् साधून्।.... पाताखेत ६- पे.क्र. ५४, पृ. २५७-२६४, उपदेशमालादि ५४ ग्रन्थो, संपूर्ण
प्रत विशेष शुद्ध प्रति.
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कुल झे. पृष्ठ- ११०, डीवीडी-६१/६३
पाताहेसं १६, पृ. ५१६, आवश्यकवृत्ति, प्रतिपूर्ण
प्रत विशेष- प्रत्याख्यान पर्यन्त विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका. डीवीडी-२/१२
पाताहे १७ पृ. ३२८ आवश्यकवृत्ति प्रथम खण्ड, प्रतिपूर्ण
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प्रत विशेष - गा. के. नं. ३७मां विशेषावश्यकवृत्ति एम लखेल छे. डीवीडी-२/१२
पाताहेसं १८, पृ. ४५२, आवश्यकवृत्ति द्वितीय खण्ड, प्रतिपूर्ण
डीवीडी-२/१२
पाताहेसं १९, पृ. २७७, आवश्यकवृत्ति द्वितीय खण्ड, वि-१४४२, प्रतिपूर्ण
डीवीडी-२/१२
पाताहेसं २०, पृ. २८७, आवश्यकवृत्ति द्वितीय खण्ड प्रत्याख्यान निर्युक्ति विवरण, प्रतिपूर्ण
डीवीडी-३/१२
पाकाहेम ७५१४, पृ. ५२३ आवश्यकसूत्र हारिभद्रीया वृत्तिसहित, वि-१७मी, संपूर्ण
प्रत विशेष- ग्रन्थाग्र-२२५००. कुल झे. पृष्ठ-५२३
पाकाहेम १००६६, पृ. ३७०, आवश्यकसूत्रनिर्युक्ति-भाष्य - शिष्यहितावृत्तिसह, वि-१६मी, संपूर्ण प्रत विशेष- ग्रन्थाग्र-२२००० प्रथम पत्रमां समवसरणनुं चित्र छे. पत्र २८४मु डबल छे. कुल झे. पृष्ठ-३७०
पाकाहेम १०३५२, पृ. १५३ आवश्यकसूत्र शिष्यहितावृत्ति सह प्रथमखण्ड वि १५९० प्रतिपूर्ण पाकाहेम १०३५३, पृ. २१४ आवश्यकसूत्र शिष्यहितावृत्ति सह द्वितीयखण्ड, वि-१५९२ प्रतिपूर्ण
प्रत विशेष क्रमांक १०३५२ अने १०३५३ ना ग्रं. २२००० छे. १०३५३मां पत्र ३६-३७ मेगा छे.
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कुल झे. पृष्ठ-२१४
पाकाहेम १४७९१, पृ. ३२५, आवश्यकसूत्र बृहद्वृत्ति - शिष्यहिता, वि- १४७३, संपूर्ण
प्रत विशेष- ग्रन्थाग्र - २२००० पत्र १६४मुं नथी.
कुल झे. पृष्ठ-३१७
पाकाहेम १४८६६, पृ. ३२५ आवश्यकसूत्रबृहद्वृत्ति ( शिष्यहिता), वि-१६६७, संपूर्ण
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