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|| श्री सिद्धाचलमंडन श्री ऋषभदेवस्वामिने नमः ।।
श्री शान्तिनाथस्वामिने नमः। श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथाय नमः। श्री नाकोडापार्श्वनाथाय नमः । श्री महावीरस्वामिने नमः। श्री गौतमस्वामिने नमः ।
__||श्री नाकोडाभैरवाय नमः ।। पूज्यपादाचार्यमहाराजश्रीमद्विजयसिद्धिसूरीश्वरजीपादपोभ्यो नमः । पूज्यपादाचार्यमहाराजश्रीमद्विजयमेघसूरीश्वरजीपादपोभ्यो नमः । पूज्यपादसद्गुरूदेवमुनिराजश्रीभुवनविजयजीपादपद्मभ्यो नमः।
प्रस्तावना
विक्रम संवत् २०५८नुं अमारूं चातुर्मास नाकोडातीर्थमां थयुं ते वखतना नाकोडातीर्थना अध्यक्ष पारसमलजी भणसाली हता तेमनी उंची भावना के नाकोडातीर्थ बधी रीते समृद्ध छे मात्र ज्ञानना क्षेत्रे त्रूटी छे। आप एवं आदर्श ज्ञान- संशोधन केन्द्र उभुं करवा मार्गदर्शन आपो तो अमारी बधी रीते सहकार आपवा तैयारी छ। ज्ञानमंदिर तथा संशोधन करवानी अनुकूळता वाळू मोटुं मकान बनाववानो पण निर्णय कर्यो। त्यारे अमने पण थयु के अहीं आq केन्द्र उभुं थाय तो सारु तेथी अमारी पासे जे हस्तलिखित ताडपत्रीय अने कागळ उपरना ग्रंथभंडारोना ग्रंथोनी फोटोकॉपीओ हती तेनी फोटोकॉपीओ त्यां मूकवी एबुं मनमा नक्की कर्यु। साथे साथे अमने एम पण थयु के सकळ श्री संघमां अनेक साधु-साध्वीजी तथा विद्वानों आ क्षेत्रमा कार्य करवानी इच्छा वाळा छे परन्तु मूळ हस्तलिखित ग्रंथो सरळताथी प्राप्य नथी अने कदाच क्यांकथी प्राप्य होय तो पण मूळ प्रतिओ मोटा भागे जीर्ण अवस्थामां होवाथी तेनो उपयोग करवा जतां फाटवानी-तूटवानी संभावना होइ भविष्यमां ए ग्रंथ खोई बेसवानो वारो आवे। अने मोटाभागना ग्रंथ भंडारोमांथी ग्रंथ बहार नहीं लई जवानो ठराव पण होय छे। साधु-साध्वीजी विहारमां होय, दूर होय, घणा साथे संकळायेला होय तेथी काम करवा माटे अनेक महिनाओ सुधी ग्रंथ भंडारमा मात्र ग्रंथने माटे बेसी रहे के पहोंचवू पण पालवे नहीं। तेथी आ क्षेत्रमा काम करनार साधु-साध्वीने विद्वानोने आ मूळ ग्रंथो मळवा प्रायः अशक्य हता अने क्यांय मळे तो पण ग्रंथनी अवस्थाने कारणे उपयोग करवो फावे तेम न हतो।
घणा साधु-साध्वीजी भगवंतो तेमज विद्वानो अमारी पासे रहेला ग्रंथनी फोटोकॉपीनी मांगणी करता हता। पण अमारी पासे एवं कोई तंत्र नहीं अने अमे फरता राम तेथी तेओ मांगे त्यारे अमे तेमने फोटोकॉपी आपी शकता न हता। अमने घणुं मनमां थतुं के आपणा पूर्वाचार्योए आ ज्ञाननो वारसो पछीनी पेढीने उपयोगमां आवे ते माटे तेमना काळमां आजना जेवी छापकामनी मशीनरी के साधनो न होवा छतां तनतोड महेनत करी दरिया जेवडा शास्त्रो लाखो रूपियानो व्यय करी लहियाओ पासे लखाव्या एटलुंज नहिं तेने पाछा संशोधन करी शुद्ध स्वरूपमा मुक्या। आपणे अत्यारे वर्तमानमा तेने ताळाकुंचीमां कोईने पण नहीं आपवाना ठराव साथे भंडारमा ज मूकी राखीए अने तेने सुरक्षित साचवी राख्यानुं गौरव पण लईए। सारी वात छे के आ रीते साचव्या तेथी आजे पण जे बच्युं ते आपणा कब्जामा छे. आटलुं कर्या पछी हवे जो तेनो उपयोग ज न थाय तो तो पुद्गलना स्वभाव मुजब ५-५० वर्षे ते ज्यां छे त्यां ज सडीने के उधई लागीने नाश पामी जशे. त्यारे जैन संघने राते पाणीए रोवानो वारो आवशे के आपणा समस्त संघनी जीवादोरी समान आ अमूल्य मुडीनो आपणे उपयोग कर्या विना ज नाश करी नाख्यो अने जेने आ ज्ञाननी जरुर हती तेने पण जडबेसलाक सुरक्षाने कारणे तेमना ज्ञानमां अंतरायभूत बनी फोगट ज ज्ञानावरणीय कर्म बान्धी ग्रंथ न आप्या। तेथी अमने विचार आव्यो के आ अमूल्य शास्त्रवारसो नाश पामी जाय ते पहेला तेने वधु सुरक्षित अने उपयोगी पण बनाववानी जरूर छे।
आ क्षेत्रमा काम करता साधु-साध्वीओने उपयोगी बनाववानी दृष्टिए तेमज संघने भविष्यमां ग्रंथनी जरूरीयात माटे मारी पासे मांगणी करवा आवQ ज न पडे माटे जे मारी पासे हस्तलिखित ग्रंथोनी फोटोकॉपीओ छे तेमांथी जे भंडारो आ ग्रंथोनी झेरोक्ष कॉपी करी जोईए तेने आपे छे तथा आपवानी संमति आपे छे ते ज भंडारोना ग्रंथोनी कॉपीओना १०/१२ सेटो बनावी जुदा जुदा संघो, ज्ञानभंडारोमा मूक्या होय तो भविष्यमां साधु-साध्वी के विद्वानोने सरळताथी मळी शके। तेमज कोईक एक ठेकाणे कोईपण कारणसर ग्रंथ भंडार नाश पामे तो पण तेनी