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________________ ग्रंथांकपत नाम (पेटा नंबर). पेटा नाम कृति नाम कति प्रकार कमेग्रन्थ-भाष्य-२ गा.१६७ (ये.१३) कर्मविपाक प्राचीन प्रथम कर्मग्रन्थ (पे.१४) भावनाप्रकरण :देववाचक प्रा. (पे.१५) नन्दीसूत्रनो हिस्सो स्थविरावली (ये.१६) कुलाणुवंधज्झयण चतुःशरणप्रकीर्णक (ये.१७) क्षेत्रसमासप्रकरण (पातासंघवीजीर्ण)पाटण ताडपत्रीय ज्ञान भंडार संघवी पाडाना जीर्ण, त्रुटक अने चोंटेला भंडार स्थिति पूर्णता प्रत प्रकार प्रतिलेखन वर्ष पत्र क्लिन/ओरिजिनल प्रतविशेष, माप, पंक्ति, अक्षर, प्रतिलेखन स्थल डीवीडी (डीवीडी-पेटांक पृष्ठ, पेटा विशेष कर्ता भाषा परिमाण रचना वर्ष आदिवाक्य झे.पत्र/झे.पत्र) । कृति विशेष, पेटांक पृष्ठ, पेटा विशेष झेरोक्ष पत्र५७-५८.कृ.वि.अन्त वाक्य-अणुदय पत्तुदीरमा या] गर्गर्षि ववगयकम्मकलड़कं वीरं पद्य (पे.पू. १९७-२२७) पे.वि. : अपूर्ण गाथा-१६८. झेरोक्ष पत्र-५७-६२ व ७३-७४. बीच के पत्र नहीं है तथा इस भाग में दूसरी कृतियां सम्मिलित है. [कृ.वि. : गाथा १६६ थी १७८ सुधी मळे छे] सवयरे भगवन्ते (पे.पृ. १-१२) पे.वि. : अपूर्ण. झेरोक्ष पत्र १-८. शताधिक गाथा के साथ-साथ १२मी भावना अपूर्ण तक है. गा. ५० जयइ जगजीवजोणी... पद्य (पे.प्र.२) पे.वि. : अपूर्ण गाथा-२६ तक है. झेरोक्ष पत्र-७-८. (पे. पृ. २२८ मुं) ये.वि. : गाथा-६२. अपूर्ण. झेरोक्ष पत्र-६९-७२. प्रारंभिक १० गाथाएँ नहीं हैं. वीरभद्र प्रा. ....... गा. सावज्जजोगविरई उक्कित पद्य ...... कृ.वि. : गाथा-६२ थी ९१ सुधी मळे छे. (पे. पृ.) पे.वि. : अपूर्ण. गाथा-६५६. झेरोक्ष पत्र-९ पर है. मात्र अन्त के पत्र हैं. सूचीपत्र में इसका उल्लेख नहीं है. जिनभद्र गणिप्रा . : गा.६४० ग्रं. नमिऊण :सजलजलहरनिभस्सण (पे. पृ. 9904-२०९० पे.वि. : अपूर्ण. गाथा-१२०. झेरोक्ष पत्र-२५.६१-६२ व ६५-६६. पत्रांक ६५ पर आरंभ एवं २५ पर पूर्ण हुई है. पत्रांक उलटे क्रम में है. प्रतिलेखक की भूल से गाथा ५६ की जगह ६६ लिखा गया है. सूचिपत्र में इस कृति का उल्लेख नहीं है. :गा.१२४ काऊण नमोक्कारं जिणवर पद्य विप्फरियविमलकेवल (पे.पृ. १२४-१) पे.वि. : अपूर्ण. गाथा-७ तक मिलती है. यह कृति झेरोक्ष पत्र ३६ पर है. इसका उल्लेख सूचीपत्र में नहीं है, जिनवल्लभप्रा . गा. १६४ .......... सयलन्तरायवीरं वन्दिय प द्य (पे.प्र. ?) पे.वि. : अपूर्ण. गाथा-९ तक है. झेरोक्ष: 242 बृहत् क्षेत्रसमासप्रकरण (ये.१८) संथारा प्रकीर्णक .... संस्तारकप्रकीर्णक (पे.१९) पैसठ द्वार मार्गणास्थानकगत जीवस्थानविवरण (पे.२०) सूक्ष्मार्थविचारसारप्रकरण
SR No.018001
Book TitleHastlikhit Granthsuchi Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherStambhan Parshwanath Jain Trith Anand
Publication Year2005
Total Pages582
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size38 MB
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