________________ सुणंद 937 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 7 सुणंद वजाउहमरणेणं, पराहदेण य सुनंदनरनाहो। मन्नतो निहयं पिव, अप्पं अइदुहमणुहवेइ॥३१॥ अह निसि चिंतावसगय-निदो राया सुरेण एगेण। भणिओ भो निव ! सोह, मित्तो वजाउहो तुज्झ // 32 // तइया रिउराईहिं, गाढपहारीकयं मुणि वि अप्पं। नीहरिउं समरंगण-महीद ओयरिय वारणओ॥३३॥ उद्धरिय दुविहसल्लो, गरिहियपावो सामहिसंजु तो। नवकारं समरंतो, जाओ अमरो पढमकप्पे॥३४।। ओहिबलेण वियाणिय, तुह दुक्खं सत्तुपरिभवसमुत्थं। तं अवणेउं इहयं, पत्तोऽहं परमपेम्मेणं / / 3 / / ता मित्त ! मुयसुखेयं, पभायसमए हवेसु रणसज्जो। निम्महियरिउं सरय-भविभमं लहसु कित्तिभरं // 36|| इय मित्तनियसवयणं, सोउं राया वियासिमुहसोहो। सिन्नाणुगओ सहसा, पडि पडिवक्खं पडिनियत्तो // 37 // अह पउरसमरसंप-त्त विजयगव्वो पुणो वितं इत्तं। आयन्नियभीमनिवो, सज्जो होउं ठिओऽभिमुहो // 38|| आओहणं च लम्ग, नवरं मित्तामराणुभावेण। विजिओ सुनंदरन्ना, भीमनरिंदो पढममेव // 36 // तंसेवापडिवन्नं, रज्जे तत्थेव ठाविय सुनंदो। नियदेसं पइ चलिओ, सुरो गओ पुण सठाणम्मि॥४०|| मग्गम्मि सुनंदो वि हु, वचंतो नियइ सिरिपुरुज्जाणे। पढमजिणभवणपासे, मुणिमेगं तरुतलनिसन्नं / / 41 / / तस्स य पुरओ एणं, पवंगमं पउरलोयमज्झगयं / मुणिदिजंतनमुक्का-र मंतआयन्नणप्पवणं / / 42 / / तो वि महयभरभरिओ, राया आगम्य नमिय मुणिपवरं। जा तत्थ निसीयइ ता-व वानरो मरणमणुपत्तो // 43 // अह भणइ निवो, मुणिपहु-भुजमिणं जं अईव चवलमणा। इत्थं पवंगमा वि हु, जिणधम्मे निचला हुंति / / 44 / / ता कहसु पुरा को आ-सि एस साहू वि साहइ नरिंद!। महुराएँ आसि एसो, वणिओ इत्तो भवे तइए॥४५॥ संविम्गो पडिवन्नो, कयावि दिक्खं सुभद्गुरुमूले। ईसि अपन्नवणिज्जो, जडभावा सुतवनिरओ वि॥४६॥ अंते काउँ अणसणं, जाओ अमरो मुहम्मकप्पम्मि। छम्माससेसमाउं, वियाणिउं अप्पणो सो उ॥४७॥ पुच्छेइ केवलिंव-दिऊण इत्तो चुयस्स भे मंते!। कत्थुप्पत्ती होती, कहं व पहु बोहिलाभो य?||४८|| तो केवलिणा भणियं, पजते भद्द! अट्टझाणेणं। मरिऊण वानरो तु, होहिसि सिरिपुरवरुजाणे // 46 // जिणबिंबदसणाओ, तत्थ लहिस्ससि तुम कहवि बोहिं। इय सोउं सो तियसो, लहु उज्जाणं इमं पत्तो // 50 // तोतुंगसिंगसोहा-पहसियहिमसिहरिसिहरमईरम्म। पवणपकंपिरधयपड- रणंतमणिकिंकिणीजालं // 51 // डज्झंतपवरघणसा-र अगुरु मघमधंतगंधडं। थंभसहस्ससमेयं, मणिमयभासंतभित्तिल्लं // 52 // सो सिरिजुगाइजिणवर-भवणमिणं तुट्ठमाणसो कासी। बद्धाउयत्तणेणं, चवियं इमों वानरो जाओ।।५३|| कह कह विणेण भमिरे, ण इत्थ इत्तो अईय तइयदिणे। दिमिणं जिणभवणं, पत्तं लहु जाइसरणं च // 54 // तो वेरग्गगओ सो, मह पासं पप्प अणसणं काउं। पंचपरमिट्ठिमंतं, सुमरंतो मरणमणुपत्तो।।५।। इय जा बानरचरियं, कहइ मुणी ता पवंगजीवो सो। सोहम्मदेवलोए, हिमप्पहे वरविमाणम्मि // 56 // ससिकरसियदेवंसुय-संबुयसुरसयणसुदरुच्छंगे। सुत्तिपुडतो मुत्ता-हल व्व जाओ सुरो पवरो॥५७।। उप्पत्ति अणंतरदू-रविहियदवंसुओ उवविसित्ता। अइसयबिम्हियहियओ, पिच्छंतो सयलदिसि बलयं // 58|| जय जय नंद्रा जय जय, भद्दा इचाइमहुरवयणाई। अमरच्छरनियराणं, हरिसियहिययाण निसुणतो // 56 // किं दिन्नं किं तवियं, किं जिट्ठ वा मए पुरा जम्मे। इय चिंतावसओ ओ-हिनाणविन्नायपवगभवो॥६०॥ सव्वाइं देव किया-इमुत्तुबहुदेवदेविपरियरिओ। तत्थेव लहुँ पत्तो, पणओ विणएण मुणिचरणे॥६१।। सिरिनामेयजिणिंद, अंचियरोमंचअंचियसरीरो। साहुं पुणो पुणो पण-मिऊण पत्तो सुरो सग / / 6 / / इय दठुसुनंदनिवो, संविग्गो तस्स साहुणो मूले। सहसाउहसुयवियरिय-रज्जो दिक्खं पवजेह // 63 / / अह सहसाउहराया, पणमंऊणं सुनंदरायरिसिं। कंपिल्लपुरे, पत्तो, तिवग्गसारं कुणइ रज्जं // 64|| सुचिरं सुनंदसाहू विहरइ गुरुणा समं महिलयम्मि। दसविहसामायारी-पालणपवणो पसन्नमणो॥६५॥ पडिकूलकम्मपन्भा-२पिल्लिओ सो कया वि रायरिसी। गलियसुहज्झवसाओ, चिंतिउमेवं समाढत्तो॥६६।। पडिलेहणापमजण-पमुहविहाणं विणा वि किर सुगई। लब्भइ जिवेहि नियइ-भावओ निच्छियं एवं / / 67|| कहमन्नहा महाहव-वावारनिउत्तचित्तविरिओ वि। देवत्तं संपत्तो, मित्तो वजाउहो मज्झ?॥६८॥ अइसुद्धचरणकिरिया विगलो वितया स वानरस्सीओ। उत्तत्तजचकंधण-वन्नो तियसो समुप्पन्नो // 66 // सूयंति यसमए विहु, तह भव्यत्त (त) ब्भवंतसामत्था। अकयकिरिया वि मरुदे-विमाइणो सिवपयं पत्ता / / 70|| तातह भव्वत्तं चिय, कल्लाणकलावकारणं परभं। तदभावे पुण विहलो, सयलो कायव्ववादारो॥७१।। संजमतवाइएहिं, पागं सोएइ एयमवि तुच्छं। मरुदेवीपमुहाणं, तस्विरहे किं कओ पागो॥७२।। एवं चरणावारग, कम्मविरुज्झंतसुद्धपरिणामो। सो साहू तवकिरिया-सुईसिमदायरो जाओ॥७३॥ अहसुयबलेणा नाउं, सुगुरू साहुस्स तस्सऽभिप्पायं। सुगइपहदीबिगाए, खणं पि मा काहिसि पमायं // 74 / / नय एगंतेण नियइ-भावओ होइ कल्नसंसिद्धी। जं पुरिसकारकाला-इणो वि होऊ इह भणिया / / 7 / / तथा चोक्तम्॥ कालो सहाय नियई, पुव्वकयं पुरिसकारणे गंता। मिच्छत्तं ते चेव उ,समासओ हुंति सम्मत्तं // 76 / / जंपिहुमरुदेवी पु-व्वमकयतवनियमसंजमविसेसा। तजम्मि चिय सुहभा-वजोगओ सिद्धिमणुपत्ता 77|| जय अच्छेरयभूयं, तदुदाहरणं तहा वि विबुहेहिं। ववहारविलोवाओ, कयाऽवि नालंबणीयं ति॥७८||