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________________ संवास 236 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 7 संवास एमेव वितियभंगे, कंतारादीसु उवहिवाघातो। होति समणाण वसिते, दोसा किं पुणेगतरणिगिणि // 487|| उभओ दिट्ठमदिडे, दिट्ठिपयारे य भवे खोभो। आयपरउभये दोसा, वितिए भंगेन कप्पती बितियं / / 458|| विहसुद्धदव्वदाणं,अद्धाणादिसु वएति एगत्थ। एमेव ततियभंगे, अद्धाणे उवस्सयं तु लभे // 486 // गच्छइ, असुरे नाममेगे रक्खसीहिं सद्धिं संवासं गच्छइ०४५। चउव्विहे संवासे पण्णत्ते, तं जहा-असुरे नाममेगे असुरीए सद्धिं संवासं गच्छइ; असुरे नागमेगे मणुस्सीए सद्धिं संवासं गच्छइ० 4-6 / चउव्विहे संवासे पण्णत्ते ; तं जहा-रक्खसे नाममेगे रक्खसीए सद्धिं संवासं गच्छद ; रक्खसे नाममेगे माणुस्सीए सद्धिं संवासं गच्छइ०॥ "चउव्यिहे सवासे” त्यादि कण्ट्यं नवरं स्त्रिया सह संवसनशयन सवासः, द्यौः...स्वर्गस्तवासी देवोऽप्युपचाराद् द्यौस्तत्र भवो दिव्यो वैमानिकसंबन्धीत्यर्थः / असुरस्यभवनपतिविशेषस्यायभासुर एवमितरी, नवरं राक्षसोव्यन्त रविशेषश्चतुर्भङ्गि कासूत्राणि देवासुरे त्येवमादिसयोगतः पड़ भवन्ति / 2.0 4 ठा० 4 उ०। (संवासे संभोगः 'सभोग' शब्देऽस्मिन्नेव भागे 206 पृष्ठे निषिद्धः।) षण्डकः क्लीबो वातिक इति त्रयो न कल्पन्ते सवा सयितुम् / बृद्ध 4 उ० 1 प्रक० / स्था० / आधाकर्मभोक्तृभिः सहकत्र संवसने, पि। (आधाकर्मभोक्तृभिः सह संवासात् शुद्धाहारभोज्यपि अधाकर्मभोजी द्रष्टव्य इति 'आधाकम्म' शब्दे द्वितीयभागे 216 पृष्ठे गम्।) स्चेलस्य सचेलिक्या सह संवासे प्रायश्चित्तम्-- जे भिक्खू सचेले सचेलियाणं मज्झे संवसइ संवसंतं वा साइज्जइ ||16|| जे भिक्खू सचेले अचेलियाणं मज्झे संवसइ संवसंतं वा साइजइ / / 165 / / जे भिक्खू अचेले सचेलियाणं मज्झे संवसइ संवसंतं वा साइजइ।।१९६|| जे भिक्खू अचेले अचेलियाणं मज्झे संवसइ संवसंतं वा साइजइ / / 167|| सबेला संजता सचेलाओ संजतीओ चउभंगसूत्रं व्याख्येयं / चउसु वि भंगेनु चउगुरु तवकालपरिसिद्ध। गाहाजे भिक्खू य सचेलो, ठाणनिसीयणतुयट्टणं वा वि। वेतिज्जइ चेलाणं, सोपावति आणमादीणि॥४८४॥ वीसत्थादी दोसा, चतुद्देसम्मि वन्निया जे तु। ते चेव निरवसेसा, सचेलमज्झे अचेलस्स।।४८५।। कंदा। कारणे वसेजबितियपदमणप्पज्झे, गेलण्णुवसग्गरोहगट्ठाणे। समणाणं असतीए, समणी पव्वाविते चेव।।४८६॥ अगप्पज्झ वसेज। गिलाणं पडियरतो वसेज / उवसग्गे वा जहा सो रायकुमारो संगुत्तो राहए वा एक्कवसही लद्धा, अलद्धाण पडिवन्नो या। संजयाण असति संजतिवराहीए वसेजा। अहवा दो वि वग्गा अद्धाण पडिवन्ना वसेज्जा / अथवा समणाण असती ते समणीहि भाया पिया वा पक्षाविओ सो वसेजा। खड्डादिमज्झेसमणी,साक्यभयचिट्ठणादीसुं॥४६॥ एमेव चरिमभंगे, दोसा जयणासुदप्पमादीहिं। सभयम्मि मज्झे समणी,निरवाए मग्गतो एति॥४६१।। दुहतो वाघातो पुण,चउत्थभंगम्मि होति नायव्यो। एमेवय परपक्खे, पुव्वे अवरम्मि य पदम्मि।।४६२|| दुहतो वाघायम्मी, पुरतो समणा तु मग्गतो समणी। खुडाहिमणावेंति, कजे देयं ति दावेंति।।४६३|| चितियभंगे समणीण उवधिवाघातो / ततियभंगे समणाण वचसा विभगसिमे दोसा। संचरित गाहा। पढमभंगे उभये वि संचरिते वीसत्यादि आलावादिया य दोसा किं पुण बितियततिय उभयणिगिन्ने स सविसेसा दोसा। सजता संजती वा चिंतेति-दिट्ठ अदिट्ट मे अंगादाणादि सागारिया दिद्विपयारेण चित्तक्खोभो भवति. खुभिओ अणायारपडिसेवण करेजा। दुहओ वा गाहा। पुव्वद्धं कठ, परपक्खो गिहत्थिअन्नतिस्थिणीओ तेसु एवं चेव चउभंगो दोसाय क्त्तव्वा / एगतरे उभयपक्खे वा विवित्ते वत्थाभावे खडगपत्तदज्झचीवरहत्थपिहणादि जयणा कायव्वा सावयभयादीसु य संजइओ मज्झे छोढुं ठाणाती चेतेज्जा दुहतो वि अवेलाणं पंथे इमा गमणे विही। दुहओवा गाहा। अगतो साहू गच्छति पिट्ठतो समणीओ, जति संजतीओ किंचि वत्तव्वओ खुड्डुहिं भणावेंति। जं किंचि देयं तं पि खुइहिं चेव ववाति। सभए पुण पिट्टओ अग्गतोपासतो वा संजया गच्छति न दोसो। विइयचउत्थेसु भंगेसु सव्वपयत्तेणं संजतीण वत्था दायव्वा। गाहासमणाणं जो उ गमो, अट्ठहि सुत्तेहि वण्णितो एसो। सो चेव निरवसेसो, वत्तव्यो होइ समणीणं / / 464|| चउरो संजतिसुत्ता चउरो गिहत्थन्नतिस्थिणीएसु एते अट्ट। संजतीण वि संजतेसु चउरो सुत्ता निहत्थन्नतित्थीएसुचउरो एसेव विवज्जासो दोसाय वत्तव्वा / नि० चू० 11 उ०। नायकमनायकं वा संवासयतिजे मिक्खू णायगं वा अणायगं वा उवासगं वा अणुवासगं वा अंतो उवस्सयस्स अद्धं रातिए कसिणं वा रायं संवासावेइ संवासावंतं वा साइजइ // 12 // जे भिक्खू तं न पडियाइक्खेइ ण पडियाइक्खंत वा साइजइ!|१३|| णायगा स्वजनो अणायगो-अस्वजन : उवासगो-श्रावक : इयरो अणु वासगो अद्ध रात्रीए दो जामा, वा विकप्पेण ए गाहा
SR No.016149
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1276
LanguageHindi
ClassificationDictionary
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