________________ संघाडकरण 84 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 7 संघाडी संघाडकरण न० (संघातकरण) औदारिकवैक्रियाहारकरूपाणां शरीराणां संघाते, आ०म० 1 अ० / आ०चू०। संघाडग नअ (संघाटक) युग्मे, रा०। जी०। जलजबीजफलविशेष, ज्ञा० / 1 श्रु०१ अ०॥ संघाडगणाय न० (संघाटकज्ञात) संघाटकं श्रेष्ठिचौरयोरेकबन्धनबन्धत्वम् / इदं चाभीष्टार्थज्ञापकत्वात् ज्ञातमिति / ज्ञाताधर्मकथाया द्वितीयाध्ययने, ज्ञा० 1 श्रु० 1 अ० / ('संघाडग' शब्दस्य वक्तव्यता 'धण' शब्दे चतुर्थभागे 2645 पृष्ठे द्रष्टव्या।) संघाडपरिसाट पुं० (संघातपरिशाट) संघातसंमिश्रे परिशाटे, आ०म० 1 अ०। संघाडी स्त्री० (संघाटी) उत्तरीयविशेषे, स्था० 4 ठा० 1 उ० / विशे०। साधूपकरणविशेषे, बृ०। (संघाटी कतिविधा इति 'उवहि' शब्दे द्वितीयभागे 1063 पृष्ठे गतम्।) संघाटीं दीर्घसूत्रां करोतिजे भिक्खू वा भिक्खुणी वा अप्पणो संघाडीए दीहसुत्तायं करेइ करतं वा साइजइ॥१३॥ जे ते संघाडिबंधणसुत्ता ते दीहा ण कायव्वा / अध दीहे करेति तो मासलहुं, आणादिणो य दोसा। गाहाजे भिक्खूदीहाई, कुजा संघाडिसुत्तगाइंतु। सो आणाणवत्थं, मिच्छत्तविराधणं पावे // 33 / / अच्छण्णे सम्मद्दा,पडिलेहाचेवऽणेगरूवाणं। सुत्तत्थतदुभएसुय, पलिमंथोहोति दीहेसु॥३४|| अच्छण्णं णाम-कट्टण तत्थ सम्मदा णाम पडिलेहणदोसो अणे- | गरूवधुणणदोसो य भवति। मूढेसु ओमोहंतस्स वालंतस्स य सुत्तत्थपलिमंथो। जम्हा एते दोसा तम्हा इमं पमाण। गाहाचतुरंगुलप्पमाणा, तम्हा संघडिसुत्तगं कुज्जा। जहण्णेण तिण्णि बंधा, उक्कोसेणं तु छन्भणिता॥३५॥ चउरंगुलप्पमाणा कायव्वा छच्चधा दोसु वि दिसासु तेसिं मूले इभेरिसो / पडिबंधो। गाहासउणगपातसरिच्छा, उपासगा तिण्णि अंतमज्झेगो। तज्जातेण गहेजा, मोत्तूण य होति पडिलेहा॥३६|| सउणगो-पक्खी तस्स जारिसो पडिपातो भवति तारिसो कायव्यो, तज्जाएण उणियं उण्णिएण खोमियं खोमिएण जया पडिलहेति तदा ते बंधे मोत्तूण। गाहावितियपदम्मि य वुड्डी, एगयगेलण्ण विसमवोच्छेए। एतेहि कारणेहिं,दीहे विहु सुत्तए कुन्जा // 37 // तुड्डीते दीहे बंधिउंन सक्केइ। पूर्ववत // नि०० 5 उछ / सूत्रम्जे भिक्खू पासत्थस्स संघाडियं देइ देइंतं वा साइज्जइ॥३०॥जे भिक्खूपासत्थस्स संघाडियं पडिच्छइपडिच्छंतंवा साइजइ॥३१॥ जे भिक्खू पासत्थस्स संघाडियं देइ देइंतं वा साइजइ॥३२॥ जे भिक्खू पासत्थस्स संघाडियं पडिच्छइ पडिच्छन्तं वा साइज्जइ ॥३३॥जे भिक्खू कुसीलस्स संघाडियं देइ देइंतवासाइजइ॥३४|| जे भिक्खू कुसीलस्स संघाडियं पडिच्छइ पडिच्छंतं वा साइज्जइ // 35 // जे भिक्खू णितियस्स संघाडियं देएइ देएतं वा साइजइ // 36|| जे भिक्खू णितियस्स संघाडियं पडिच्छइ पडिच्छंतं वा साइज्जइ॥३७॥जे भिक्खूसंसत्तस्स संघाडियं देएइदेएतं वा साइजइ ||38|| जे भिक्खू संसत्तस्स संघाडिगं पडिच्छइ पडिच्छंतं वा साइजइ॥३६॥ दस सुत्ता, णाणदंसणचरित्ताण पासहितो पासत्थो ओसण्णो दोसो। ओसण्णो उ यो वा संजमे तण्णिसण्णो, कुच्छियसीलो कुसीलो। बहुदोसो संसत्तो दव्वाईए असुयत्तो णितिओ। एतेसिं संघाडयं देति पडिच्छति वा तस्सलहुं। गाहापासत्थोसण्णाणं, कुसीलसंसत्तणितियवासीणं। जे भिक्खू संघाडं, दिज्जा अहवा पडिच्छेजा // 261 / / से आणाअणवत्थं, मिच्छत्तविराहणं तहा दुविहं। पावति जम्हा तेणं, णो दिजाणो पडिच्छेजा।।२६२।। तेणं ति-संघाडएण इमा चारित्तविराहणा। गाहाअविसुद्धस्स तु गहणे, आवजण अगहिते य अधिकरणं। अप्पचओ गिहीणं, किंण हु दिट्ठो जतीणं पि॥२६३।। साहू तेण संघाडएण समं हिडतो जेण दोसणासुद्धं गेण्हति तमावति। आह साहूण गेण्हति तो पासत्थस्स अचियत्तं कलह वा करेति, साहुणा अपडिसिद्धे पासत्थेण गहिते जति साहू तुसिणीओ अच्छति एत्थ अणुमतिदोसो भवति / अप्पच्चओ गिहीणं भवति / इमं च भणेना किं तत्थ कारणं दुविधो धम्मो कहितो एवं भणिए। गाहाजति अच्छतितुसिणीओ, भणतित एवं पिदेसिओ धम्मो। आसातणा सुमहती, सो चिय कलहो तु पडिघाते॥२६४।। पासत्थेण अत्थिए जइ साधूतुसिणीओ अच्छति अणुमति वा करेति तो सुमहती आसायणा, दीहं च संसारं णिव्वत्तेति। अहवा-साधू भणति ण वट्टतिपासत्थवयण च पडिघाएति; ताहे पासत्थो चिंतेतिम ओभामिति सो चेव कलहो। पासत्थाईया इमेण दोसे परिहरंति। गाहापासत्थोसण्णीणं, कुसीलसंसत्तणितियवासीणं। उग्गमउप्पादणए-सणाए संसरगमविराधे।।२६५।।