________________ अभिधानराजेन्द्रः। लकार pannamooooomnp लंगूलिय-पुं० (लाकॅलिक) अष्टाविंशत्यन्तीपानांमध्ये तृतीयेऽन्तद्वीपे, उत्त०३६ अ०। ('अन्तरदीव' शब्दे प्रथम भागे तत्स्वरूपं दर्शितम् ) लंधण-न० (लंडन) गरितिक्रमणे,औ० / रा० / नि० चू०। जी०। ज्ञा०। अतिदीर्घस्यात्युचस्यापि चातिक्रमणे, आ०म०१ अ० उत्प्लुत्य ल-पुं०(ल) अन्तस्थो मूर्द्धस्थानीयोऽयं वर्णः। ला-क! इन्द्रे, वाच०। गमने, उत्त०२ अ० / साधूपरि साध्व्याधुपरिवा क्रोधादिना अन्नपानादिलवने, अम्बरे, दानादाने, सुखे, वादे च। न०। आलये, आश्लेषे, पुं०। मोचने, ग०२ अधि०। लंघियजिणाण-त्रि०(लवितजिनाज्ञ) त्यक्तसर्वज्ञशासने, जी०१प्रति०। मृते, लूने च। त्रि० / एका०। लइअ-त्रि० (लगित) अवलम्बिते, स०७० सम० / परिहिते, अङ्गे लंघेयव्व-त्रि० (लयितव्य) लङ्घनीये, ज्ञा० 1 श्रु०१ अ०। लंच-(देशी०)। कुक्कुटे, दे० ना०७ वर्ग 17 गाथा। पिनद्धमित्यर्थे , इत्यन्ये। दे० ना०७ वर्ग 18 गाथा! लंचा-स्त्री० (लचा) उत्कोचे, व्य०१उ०। लइअल्ल-(देशी०) / वृषभे, दे० ना०७ वर्ग 16 गाथा। लंचिल्ल-त्रि० (लञ्चावत्) उत्कोचमुपजीव्य सापेक्षे व्यवहारिणि, व्य० लइणी-(देशी०)। लतायाम् , दे० ना०७ वर्ग 18 गाथा। 1 उ०। लउड-पुं० (लकुट) यष्टौ, औ०। "कोणो लउडो'। पाइ० ना० 230 लंछण-न० (लाञ्छन) मषतिलकादिके चिहे, अनु०। प्रव० 1 नं०। गाथा। ज्ञा० स०।प्रश्न०। प्रहरणकरणे, स्था०३ ठा०४ उ०।ज्ञा०। "लंछणं अंको चिंध'। पाइ० ना०११४ गाथा। अङ्गावयवच्छेदे, प्रव० जं०। प्रश्न०। 6 द्वार / दश० / कर्णादिकल्पनाङ्कनादिभिलाञ्छने, प्रश्न०२ आधo लउडकट्ठ-न० (लकुटकाष्ठ) लकुटदण्डे, प्रश्न०३ आश्र० द्वार। द्वार! उल्मुकादिभिरङ्कने, आव० 4 अ०। लउय-पुं० (लकुच) वृक्षविशेषे, औ०। लंछपोस-पुं० (लञ्छपोष) लञ्छाख्यचौरविशेषाणां पोषणे, विपा०१ श्रु० लउसिका-स्त्री० (लकुसिका) लकुशदेशोत्पन्नायामनार्य-स्त्रियाम् , 10 / ज्ञा०१ श्रु०१अ०। रा०। लंछिय-त्रि० (लाञ्छित) रेखादिभिः कृतलाञ्छने, बृ०२ उ०। लंककालियावात-पुं०(लङ्ककालिकावात) चक्रवद्भ्रामकेवायौ, कल्प० स्था०। ज्ञा०। भ०। आ० म०। भस्मना पिहिते, वृ०२ उ०। 1 अधि०६ क्षण। लंजर-न० (लञ्जर) उदककुम्भे, स्था० 4 ठा० 4 उ०। लंका-स्त्री० (लङ्का) भरतवर्षस्याविदूरे दक्षिणे लवणसमुद्रे त्रिकूटगिर्युषिते लंतग-पुं० (लान्तक) षष्ठे देवलोके, प्रव० 164 द्वार। स०। स्था०। पुरीभेदे, "लङ्कायां त्रिकूटगिरौ श्रीशान्तिनाथः"। ती०४३ कल्प०। औ० लान्तककल्पवासिदेवेषु, तदिन्द्रेच। विशे० स्था०ालान्तकआ० क०। देवानां स्थाने, प्रज्ञा०२पद। (व्याख्या चतुर्थभागे'ठाणा' शब्दे 1706 लंकाडाह-पुं०(लङ्कादाह) लङ्काया भस्मीकरणे, रामायणे वि सुणिज्जति पृष्ठे उक्ता) जह हणुअंतस्स पुच्छंमहन्तमासी, तंच किल अणेगेहिं वत्थसहस्सेहिं लंद-पुं० (लन्द) काले, बृ०३ उ० / प्रव०। (स च 'अहालंद' शब्दे वेढिऊण तेल्लघडसहस्सेहिं सिञ्चिऊण पलीवियन्तेण किललकापुरी प्रथमभागे 867 पृष्ठे व्याख्यातः।) यावता कालेनोदकाकरः शुष्यति दड्डा। नि०चू०१ उ०। तावान् कालो जघन्यतो लन्दः / कल्प०२ अधि०८ क्षण। लंख-पुं० (लङ्घ) महावंशानखेलके, रा०। जं०। अनु०। ये वंशादेरुपरि लंपट-त्रि० (लम्पट) लालसे, "लोला लालस-सोलुअ-उल्ले-हडवृत्तं दर्शयन्ति तेलखाः ।ध्य०३ उ०।जी०। कल्पना ज्ञा०। नर्तकभेदे, लंपटा लुद्धा'। पाइ० ना०७५ गाथा। पं० चू०१ कल्प०॥ लंपिक्ख-(देशी०)। चौरे, दे० ना०७ वर्ग 19 गाथा। लंखपेहा-स्त्री० (लङ्गप्रेक्षा) ये महावंशाग्रमारुह्य नृत्यन्ति तेषां प्रेक्षायाम्, लंब-(देशी०)। केशे, गोवाटेच। दे० ना०७ वर्ग 26 गाथा। व्य०३ उ० / जी०। लंबंत-त्रि० (लम्बमान) दैर्घ्यं गच्छति, कल्प०१ अधि०२क्षण / ज्ञा० / लंखिया-स्त्री० (लटिका) वंशोपरि नर्तक्याम् , ध०३ अधि० / ज्ञा०। लंबण-पुं० (लम्बन) कवले, बृ०४ उ०।व्यका नङ्गरे, ज्ञा०१ श्रु०८ अ01 लंगल-न० (लाङ्गल) हले, प्रश्न० 3 आश्र० द्वार। लंबाली-(देशी०) 1 पुष्पभेदे, दे० ना०७ वर्ग 16 गाथा। लंगूल-न० (लाल) पुच्छे, स्था० 4 ठा० 2 उ० / ज्ञा० / कल्प०। | लंबियय-पुं० (लम्बितक) तरुशाखायां बाही बद्धे अभिग्रह-विशेषवति "लंगूलं वाहली छिप्पं" पाइ० ना० 128 गाथा। वानप्रस्थे, औ०।