________________ मेअज्ज 380 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 6 मेघंकरा गओ खामिओय, णेच्छइमोत्तुं, जइ पव्वयंति तो मुयामि।ताहे पुच्छिया, गहिया। तहा आचेदिओ जहा अच्छीणि भूमीए पडियाणि / कोंचओ य पडिसुयं / एगत्थ गहाय चालिया जहासट्ठाणे ठिया संधिणो लोयंकाऊण दारुं फोडेतेण सिलिंकाए आहओ गलए। तेण वन्ता, लोगो भणइ पाव! पव्वाविया / रायपुत्तो सम्मं करेति मम पित्तियत्तो त्ति, पुरोहियसुयो एए ते जवा, सो वि भगवं कालगओ सिद्धो य। लोगो आगओ, दिट्ठो दुगंछइ-अम्हे एएण कवडेण पव्वाविया। दो विमरिऊण देवलोगं गया, मेतज्जो, रण्णो कहियं वज्झाणि आणत्ताणि, दारं ठइत्ता पव्वइयाणि संगरं करेंति-जो पढमं चयइ तेण सो संबोहेयव्वो, पुरोहियसुओ चइऊण ' भणति-सावग ! धम्मेण वड्ढाहि, मुक्काणि। भणइ-जइ उप्पव्ययह तो भे तीए दुगंछाए रायगिहे मेईए पोट्टे आगओ। तीसे सिट्टिणी क्यंसिया, सा कविल्लीए (कटाहे।) कड्डेमि, एवं समइमं अप्पए य परे य कायव्यं / किह जाया? सा मंसं विक्किणइ,ताए भण्णइ-मा अण्णत्थ हिंडाहि, अहं तथा च कथानकापैकदेशप्रतिपादनायाहसव्यं किणामि, दिवसे 2 आणेइ / एवं तासिं पीई घणा जाया, तेसिं चेव जो काँचगावराहे, पाणिदया काँचगं तु णाइक्खे। घरस्स समोसीयाणि ठियाणि। साय सेविणी शिंदू, लाहे मेईए रहस्सिय जीवियमणपेहंतं, मेयनरिसिंणमंसामि // 869 / / चेव तीसे पुत्तो दिण्णो, सेहिणीए धूया मइया जाया / सा मेईए गहिया, यः क्रौञ्चकापराधे सति प्राणिदयया 'क्रोञ्चकं तु' क्रोधकमेव न आचष्टे, पच्छा सा सेट्ठिणी तंदारगं मेईए पाएसुपाडेति, तुभ पभावेण जीवउत्ति, अपि तु स्वप्राणत्यागं व्यवसितः, तमनुकम्पया जीवित-मनपेक्षमाणं तेण से नाम कयं मेयजो त्ति / संवडिओ, कलाओ गाहिओ, संबोहिओ मेतार्यऋषिं नमस्य इति गाथार्थः // 866 // देवेण, ण संबुज्झइ, ताहे अट्ठण्हं इडभकण्णगाणं एगदिवसेण पाणी णिप्फेडियाणि दोण्णि वि, सीसावेढेण जस्स अच्छीणि। गेहाविओ। सिवियाए णगरि हिंडइ, देवोवि मेयं अणुपविट्ठो रोइउमारद्धो, णय संजमाउ चलिओ, मेयजो मंदरगिरि व्य / / 7 / / जइ मम वि धूया जीवंतिया तीसे वि अञ्ज विवाहो कओ होतो, भत्तं च मेताण कयं होतं। ताहे ताए मेईए जहावत्तं सिटुं, तओ रुट्ठो देवाणुभावेण निष्कासिते भूमौ पातिते द्वे अपि शिरोबन्धनेन यस्याक्षिणी एवमपि कदर्थ्यमानोऽनुकम्पया 'न च'-नैव संयमाचलितो यस्तं मेतार्यऋषिं यताओ सिबियाओ पाडिओ तुमं असरिसीओ परिणेसि त्ति खड्डाए छूढो / ताहे देवो भणइ-किह? सो भणइ-अवण्णो। भणइ-एत्तो मोएहि किंचि नमस्य इति गाथाभिप्रायः ॥८७०|आव०१ अ०। स्था०। ('परलोग' कालं अच्छामि बारस वरिसाणि, तो भणइ-किं करेमि? भणइ-रण्णो शब्दे परभव' शब्दे च पञ्चमभागे एतद्वक्त-व्यतोक्ता) गोत्रविशेषप्रवर्तके धूयं दवावेहि, तो सव्वाओ अकिरियाओ ओहाडियाओ भविस्संति / ऋषौ, यदन्वये पेढालपुत्रश्चासीत्। सूत्र०२श्रु०७अ०॥धान्ये, देवना०६ वर्ग 138 गाथा। ताहे से छगलओ दिण्णो, सो रयणाणि चोसिरइ, तेण रयणाण थालं भरियं / तेण पिया भणिओ रण्णोधूयं वरेहि, रयणाणं थालं भरेत्ता राओ। मेअर-(देशी) असहने, दे०ना० 6 वर्ग 138 गाथा। किं मग्गसि? धूयं, णिच्छूढो, एवं थालं दिवसे 2 गेण्हइ, ण य देइ / मेअलकन्ना-स्त्री०(मेकलकन्या) नर्मदायाम्, "मेकलकन्नाय नम्मया अभओ भणइ-कओ रयणाणि? सो भणइ-छगलओ हगइ / अम्ह वि रेवा" पाइ०ना० 130 गाथा। दिजउ, आणीओ। मडगगंधाणि वोसिरइ। अभओ भणइ-देवाणुभावो। मेइणी-स्त्री०(मेदिनी) क्षितौ, पृथिव्याम्, अनु०। प्रशाआव०। "वसुहा किं पुण? परिविक्खजउ, किह? भणइ-राया दुक्खं वेभारपव्वतं सामि वसुंधरा वसुमई मही मेइणी धरा धरिणी " पाइ० ना० 26 गाथा। वंदिउ जाति, रहमसां करेहि / सो कओ, अज्ज वि दीसइ / भणिओ मेंठ-(देशी) हस्तिपके, देगा०६ वर्ग 138 गाथा। पागारं सोवण्णं करेहि, कओ। पुणो वि भणिओ-जइ समुई आणेसि मेंठी-(देशी) मेण्ढ्याम्, दे०ना०६ वर्ग 138 गाथा। तत्थ पहाओ सुद्धो होहिसि तो ते दाहामो। आणीसो, वेलाए ण्हाविओ, मेंढ-न०(मेद्र) पुरुषचिह्न, ग०१अधि०। अङ्गादाने, बृ०४ उ०। मेषे, विवाहो कओ सिवियाए हिंडतेण, ताओ वि से अण्णाओ आणियाओ। __ स्था०४ ठा०२ उ०। आ०म०) एवं भोगे भुंजति बारस वरिसाणि, पच्छा बोहितो / महिलाहि वि बारस मेंढयमुह-पुं०(मेण्द्रकमुख) स्वनामख्याते अन्तरद्वीपे,सूत्र०२ श्रु०१ अ० वरिसाणि मग्गियाणि, दिण्णाणि य, चउव्वीसाए वासेहिं सव्वाणि वि / नं० प्रज्ञा०। उत्त०। ('अंतरदीव' शब्दे प्रथमभागे 86 पृष्ठे वक्तव्यतोक्ता) पव्वइयाणि, णवपुव्वी जाओ। एकल्लविहारपडिमं पद्धियण्णो। तत्थेव | मेख-पुं०(मेघ) चूलिका-पैशाचिके तृतीय-तुर्ययोर रायगिहे हिंडइ, सुवण्णकारगिहमागओ। सो य सेणियस्स सोवणियाणं // 4 // 32 // यथासंख्यं भवतः। इतिघस्य खः। मेघः। मेखो। जलदे, जवाणमट्ठसतं करेइ, चेइयचणियाए परिवाडीए सेणिओ कारेइ तिसंझं। प्रा०४ पाद। तस्स गिहं साहू अगओ। तस्स एगाए वायाए भिक्खा ण णीणिया, सोय | मेखला-स्त्री०(मेखला) खस्यमाला मेखलेति निरुक्तम्। अनु०। कटिसूत्रे, अइगओ। ते य जवा कोंचएण खाइया, सो आगओ ण पेच्छइ। रण्णो य कट्याभरणे च / वाचा चेतियच्चणिय-वेला दुकाइ, अज्ज अट्टिखंडाणि कीरामि त्ति, साधुसंकइ। मेघंकरा-स्त्री०(मेघङ्करा) नन्दनवने नन्दनकूटवास्तव्यायां विदिपुच्छइ, तुहिक्को अच्छइ।ताहे सीसावेदेण बंधति, भणिओ य-साहजेण | क्कुमार्याम्, स्था०६ठा०३३०। आचा०ा आ०म० तिन