________________ विसोहि 1266 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 6 विसोहि ओगो दिन्नो / तत्थ य तरुणा सूरजुवाणा इमं साहिणियं गायंति"तरियव्वा य पइण्णा, मरियव्वं वा समरें समत्थेणं। असरिसजणउल्लावा, न हु सहियव्या कुलप्पसूएणं // 1 // " अस्या अक्षरगमनिका-तरितव्या वा-निर्वोढय्या वा प्रतिज्ञा मर्तव्यं वा समरे समर्थेन, असदृशजनोल्लापा नैव सोढव्याः कुले प्रसूतेन। तथा केनचिन्महात्मनैतत्संवाद्युक्तम् -'लज्जां गुणौधजननी जननीमिवाऽऽमित्यन्तशुद्धहृदयामनुवर्तमानाः। तेजस्विनः सुखमसूनपि सन्त्यजन्ति, सत्यस्थितिव्यसनिनो न पुनः प्रतिज्ञाम् / / 1 / / '' गीतियाए भावत्थोजहा केइ लद्धजसा सामिसंमाणिया सुभडारणे पहारओ विरया भज्जमाणा एगेण सपक्खजसावलंबिणा अप्फालियाण सोहिस्सह पडिप्पहरा गच्छमाण त्ति / तं सोउं पडिनियत्ता, ते य पट्ठिया पडिया पराणीए, भग्गं च, तेहिं पराणीयं, सम्माणियाय पहुणा, पच्छा सुभडवायं सोभंति वहमाणा। एतं गीयत्थं सोउं तस्स साहुणो चिंता जाया- एमेव संगामत्थाणीया पध्वजा जइ तओ पराभज्जामि तो असरिसजणेण हीलिस्सामि-एस समणगो पच्चोगलिओ त्ति, पडिनियत्तो आलोइयपडिक्कतेण आयरियाण इच्छा पडिपूरिया 5 / इयाणिं जिंदाए दोण्हं कण्णगाणं बिइया कण्णगा चित्तकरदारिया उदाहरणं कीरइ- एगम्मि णयरे राया, अण्णेसिं रायाणं चित्तसभा अत्थि मम णत्थि त्ति जाणिऊण महइमहालियं चित्तसभंकारेऊण चित्तकरसेणीए समप्पेह। ते चित्तेन्ति। तत्यंगस्स चित्तगरस्स धूया भत्तं आणेइ, राया य रायमग्गेण आसेण वेगप्पमुक्केण एइ। सा भीया पलाया किहमवि फिडिया गया पिया वि से ताहे सरीरचिंताए गओ, तीए तत्थ कोट्टिमे दण्णएहिं मोरपिच्छं लिहियं। राया वि तत्थेव एगागिओ चंकमणियाओ करेति / सा वि अण्णचित्तेण अच्छइ / रण्णो तत्थ दिट्ठी गया, गिण्हामि त्ति हत्थो पसारिओ, णट्ठा दुक्खाविया, तीए हसियं, भणियं च रण्णाए-तिहिं पाएहिं आसंदओण ठाइ जाव चउत्थं पायं मग्गंतीए तुम सिलद्धो। राया पुच्छइ-किह त्ति ? सा भण्णइ-अहं च पिउणोभत्तं आणेमि, एगो य पुरिसो रायमगे आसेण वेगप्पमुक्केण एइ, ण से विण्णाणं किह वि कंचि मारिजामि त्ति / तत्थाहं सएहिं पुण्णेहिं जीविया, एस एगो पाओ। बिइओ, पाओ राया, तेण चित्तकरणं चित्तसभा विरिक्का, तत्थ इक्किक्के कुटुंबे बहुआ चित्तकरा मम पिया इक्कओ, तस्स वि तत्तिओ चेव भागो दिनो / तइओ पाओ मम पिया, तेपा राउलियं चित्तसभं चित्तंतेण पुध्वविद्वत्तं णिट्ठवियं, संपइ जो वा सो वा आहारो सोय सीयलो केरिसो होइ ? तो आणीए सरीरचिंताए जाइ। राया भणइ-अहं किह चउत्थो पाओ ? सा भणइ-सव्वो विताव चिंतेइ-कुतो इत्थ आगमो मोराणं ? जइ वि ताव आणित्तिल्लयं होज्ज तो वि ताव दिट्ठीए णिरिक्खिज्जइ, सो भणइ-सचयं मुक्खो, राया राओ। पिउणा जिमिए सा घरं गता। रण्णा वरगा पेसिया, तीए पिया माथा भणिया-देह ममं ति, भण्णइय अम्हे दरिदाणि किह रण्णो सपरिवारस्स पूयं काहामो ? दव्यस्स से रण्णा घरं भरियं, दासी य रण्णाए सिक्खाविया ममं रयणं संवाहिती अक्खाणयं पुच्छिज्जासि, जाहेराया सोउकामो, जा सामिणि ! राया पवट्टइ किंचि ताव अक्खाणयं कहेहि, भणइ, कहेमि-एगस्स धूया, अलंधणिज्जाय जुगवं तिन्नि वरगा आगया, दक्खिण्णेणं मातिभातिपितीहिं तिण्ह वि दिण्णा, जणताओ आगयाओ। साय रत्तिं अहिणा खझ्या मया, एगो तीए समंदड्डो, एगो अणसणं वइहो, एगेण देवो आराहिओ / तेण संजीवणर्णा मंतो दिण्णो, उज्जीवाविया, ते तिणि वि उवट्ठिया, कस्स दायव्दा ? किं सक्का एका दोण्हं तिण्हं वा दाउं? तो अक्खाह ति, भणइ-निद्दाइया सुवामि, कल्लं कहेहामि। तस्स अक्खाणयस्स कोउहल्लेणं बितियदिवसे तीसे चेव वारो आणत्तो, ताहे सा पुणो पुच्छइ / भणइ-जेण उजियाविया सो पिया, जेण समं उज्जीवाविया सो भाया, जो अणसणं वइड्रो तस्सदायव्व त्ति। सा भणइअण्णं कहे हि / सा भणइ-एगस्स रण्णो सुवण्णकारा भूमिघरे मणिरयणकउज्जोया अणिग्गच्छता अंतेउरस्स आभरणगाणि घडाविजंति। एगो भणइ-काउण वेला वट्टइ ? एगोभणइ-रत्ती वट्टइ, सो कह जाणइ ? जो ण चंदं ण सूरं पिच्छइ, तो अक्खाहि / सा भणइ-णिवाइया, बितियदिणे कहेइ-सो रत्तिं अंधत्तणेण जाणइ / अण्णं अक्खाहि त्ति, भणइ-एगो राया तस्स दुवे चोरा उवट्ठिया, तेण मंजूसाए पक्खिविऊण समुद्दे छूढा, ते कियचिरस्स वि उच्छल्लिया, एगेण दिवा मंजूसा, गहिया, विहाडिया, मणुस्से पेच्छइ। ताहे पुच्छिया-क इत्थो दिवसो छूढाणं ? एगो भणइ चउत्थो दिवसो, सो कहं जाणइ ? तहेव बीयदिणे कहैइतस्स चाउत्थजरो तेण जाणेइ / अण्णं कहेइ-दो सवत्तिणीओ, एक्काए रयणाणि अत्थि, सा इयरीए ण विस्संभइ मा हरेज्जा, तओऽण्णाए जत्थ णिक्खमंती पविसंती य पिच्छइ तत्थ घडए छोटूण ठवियाणि, ओलित्तो घडओ। इयरीए विरहं णाउं हरिउंरयणाणि, तहेवयघडओ ओलित्तो। इयरीए णायं हरियाणि त्ति, तो कहं जाणइ, ओलित्तए हरिताणि त्ति ? बिइए दिवसे भणइसोकायमओघडओ, तत्थताणि पडिभासंति हरिएसु णत्थि / अण्णं कहेहि, भणइ-एगस्स रण्णो चत्तारि पुरिसरयणाणि तं जहा-"नेमित्ती रहकारो, सहस्सजोही तहेव विज्जो य। दिण्णा चउण्हं कण्हा, परिणीया नवरमेक्केण // 1 // " कथं ? तस्स रण्णो अइसुंदरा धूया, सा केण वि विज्जाहरण हडा, ण णज्जइ कूओऽवि पिक्खिया, रण भणियं-जो कण्णगं आणेइ तस्सेव सा। तओ णेमित्तिएण कहियं अमुगं दिसं णीया, रहकारेण आगासगमणो रहो कओ, तओ चत्तारि वि तं विलम्गिऊण पहाविया। अम्मि(भि) ओ विजाहरो, सहस्सजोहिणा सो मारिओ, तेण वि मारिजंतेण दारियाए सीसं छिन्नं, विजेण संजीवणोसहीहिं उजियाविया, आणीया घरं / रण्णा चउण्ह वि दिण्णा / दारिया भणइ-किह अहं चउण्ह वि होमि? तो अहं अगिं पविसामि, जो मए समं पविसइतस्साह, एवं होउत्ति, तीएसमको अम्गि पविसइ? कस्सदायव्या?