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________________ पवेसणय 761 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 5 पवेसणय एगे अहे सत्तमाए होजा / 63 / अहवाएगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए दो वालुयप्पभाए होजा, अहवा-एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए दो पंकप्पभाए होजा। एवं० जाव अहवा-एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए दो अहे सत्तमाए होला। 5 / अहवा एगे रयणप्पभाए दो सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए होज्जा / एवं०जाव अहवा-एगे रयणप्पभाए दो सक्करप्पभाए एगे अहे सत्तमाए होजा / 5 / अहवा-दो रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए होजा। 1 / एवं०जाव अहवा-दो रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए एगे अहे सत्तमाए होजा। 5 / 15 / अहवा-एगे रयणप्पभाए एगे वालु-यप्पभाए दो पंकप्पभाए होज्जा / जाव अहवा-एगे रयणप्पभाए एगे वालुयप्पभाए दो अहे सत्तमाए होजा / 4 / एवं एएणं गम-एणं जहा तिण्हं तियसंजोगो तहा भाणियव्योजाव अहवा-दो धूमप्पभाए एगे तमाए एगे अहे सत्तमाए होजा। 105 | अहवा-एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाएएगे पंकप्पभाए होजा। अहवा-एगे रयणप्पभाए एणे सक्करप्प-भाए एगे वालुयप्पभाए एगे धूमप्पभाए होला / एवं०जाव अह-वा-एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए एगे अहे सत्तमाए होजा / 4 / अहवा-एगे रयणप्पभाए एगे सक्कर-प्पभाए एगे पंकप्पभाए एगे धूमप्पभाए होला / अहवा-एगे रय-णप्पभाए एगे सक्करप्पभाए एगे पंकप्प्रभार एगे तमाए होजा / अहवा-एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए एगे पंकप्पभाए एगे अहे सत्तमाए होजा।३। अहवाएगे रयणप्पभाए एगे सक्कर-प्पभाए एगे धूमप्पभाए एगे तमाए होज्जा / अहवा-एगे रयणप्प-भाए एगे सक्करप्पभाए एगे धूमप्पभाए एगे अहे सत्तमाए होजा / 2 / अहवा-एगे रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए एगे तमाए एगे अहे सत्तमाए होज्जा। 1 / एवं / 10 / अहवा-एगे रयणप्पभाए एगे वालुयप्पभाए एगे पंकप्पभाए एगे धूमप्पभाए होज्जा / अह-वा-एगे रयणप्पभाए एगे वालुयप्पभाए एगे पंकाए एगे तमाए होजा / अहवा एगे रयणप्पभाए एगे वालुयाए एगे पंकाए एगे अहे सत्तमाए होजा।३। अहवा एगे रयणप्पभाए एगे वालुयाए एगे धूमाए एगे तमाए होजा। अहवा-एगे रयणप्पभाए एगे वालुयाए एगे धूमाए एगे अहे सत्तमाए होजा / 2 / अहवा-एगे रयणप्पभए एगे वालुयप्पभाए एगे तमाए एगे अहे सत्तमाए होज्जा / 1 / 16 / अहवा-एगे रयणप्पभाए एगे पंकप्पभाए एगे धूमाए एगे तभाए होजा, अहवा-एगे रयणप्पभाए एगे पंकप्पभाए एगे धूमाए एगे अहे सत्तमाए होज्जा / 2 / अहवा-एगे रयणप्पभाए एगे पंकाए एगे तमाए एगे अहे सत्तमाए होज्जा। 11 16 / अहवा-एगे रयणप्पभाए एगे धूमाए एगे तमाए एगे अहे सत्तमाए होज्जा / एवं / 20 / अहवा-एगे सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पमाए एगे पंकप्पभाए एगे धूमप्पभाए होज्जा। 16 एवं जहा रयणप्प-भाए उवरिमाओ पुढवीओ संचारियाओ तहा सक्करप्पभाए वि उवरिमाओ उच्चारेयय्वाओ०जाव अहवा-एगे सक्करप्पभाए एगे धूमप्पभाए एसोतमाए एगे अहे सत्तमाए होजा। १०।अहवा-एगे वालुयप्पभाए एगे पंकप्पभाए एगे धूमप्पभाए एगे तमाए होजा / अहवा-एगे वालुयप्पभाए एगे पंकप्पभाए एगे धूमप्पभाए एगे अहे सत्तमाए होज्जा / 2 / अहवा-एगे वालुयप्पभाए एगे पंकप्पभाए एगे तमाए एगे अहे सत्तमाए होजा / अहवा-एगे वालुयप्पमाए एगे धूमाए गे तमाए एगे अहे सत्तमाए होजा। अहवा-एगे पंकप्पभाए एगे धूमप्पभाए एगे तमाए एगे अहे सत्तमाए होज्जा 35 / 210 / " चत्तारि भंते ! नेरइया " इत्यादी दशोत्तरे द्वे शते विकल्पानाम् / तथाहि-पृथिवीनार्मकत्वे सप्त विकल्पाः, द्विकसंयोगे तु तासामेकस्त्रय इत्यनेन नारकोत्पादविकल्पेन रत्नप्रभया सह शेषाभिः क्रमेण चारिताभिर्लब्धाः षट् द्वौ वावित्यनेनापि षट् त्रय एक इत्यनेनापि षडेव। तदेवमेतेऽष्टादश / शर्कराप्रभया तु तथैव त्रिषु पूर्वोक्तनारकोत्पादविकल्पेषु पञ्च पञ्चेति पञ्चदश। एवं वालुकाप्रभया चत्वारश्चत्वार इति द्वादश पङ्कप्रभया त्रयस्त्रय इति नव, धूमप्रभया द्वौ द्वाविति षट् , तमःप्रभयैकेव इति पट सन्योने निकायोगे निमणिना शिवीनां निकायोगे एकाएको हो चेत्येवं नारकोत्पादविकल्पे रत्नप्रभाशर्कराप्रभाभ्या सहान्याभिः क्रमेण चारिताभिलब्धाः पञ्च, एको द्वावेकश्चेत्येवं नारकोत्पादविकल्पान्तरे पञ्च द्वावेक एक श्चेत्येवमपि नारकोत्पादविकल्पान्तरेऽपि पश्च द्वावेक एकश्चेत्येवमपि नारकोत्पादविकल्पान्तरे पञ्चैवेति पञ्चदश एवं रत्नप्रभावालुकाप्रभाभ्यां सहोत्तराभिः क्रमेण चारिताभिर्लब्धा द्वादश, एवं रत्नप्रभापङ्कप्रभाभ्यां नव, रत्नप्रभाधूमप्रभाभ्यां षट्, रत्नप्रभातमःप्रभाभ्यां त्रयः, शर्कराप्रभावालुकाप्रभाभ्यां द्वादश, शर्कराप्रभापङ्कप्रभाभ्या नव, शर्कराप्रभाधूमप्रभाभ्यां षट्, शर्कराप्रभातमःप्रभाभ्यां त्रयः, वालुकाप्रभापङ्कप्रभाभ्यां नव, वालुप्रभाधूमप्रभाभ्यां षट्, वालुकाप्रभातमःप्रभाभ्यां त्रयः, पङ्कप्रभाधूमप्रभाभ्यां षट्, पङ्कप्रभातमः प्रभाभ्यां त्रयः, धूमप्रभाऽऽदिभिस्तुत्रय इति। तदेवं त्रिकयोगे पश्चोत्तर शत, चतुष्कसंयोगे तु पञ्चविंशदित्येवं सप्तानां त्रिषष्टेः पश्चोत्तरशतस्य पञ्चत्रिंशतश्व मीलने द्वे शते दशोत्तरे भवतः। पंच भंते ! रइया णेरड्यपवेसणएणं पवेसमाणा किं रय
SR No.016147
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1636
LanguageHindi
ClassificationDictionary
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