________________ पंचिंदिय 55 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 5 पंचि दियतिरिक्खजोणिया नरेइय तिरिक्खा य, मणुया देवा य आहिया / / 50 / / 'मामा' 15:5:1|:: तादाता.. पन्द्रियामा य जीताश्चतुर्विधास्त साख्याताः / तटा"-(ोरइ" निरमामाजमारनी। तिरेक्खा इति / नरशिका निर्याश्च मनुजा देवाश्च ध्याख्याता कथिताः / पतालदरामामला सहकार ती कराऽऽदि मेः / इति सूगर्भः // 50 // उत्त० पाई०३६ अ० जी०। समाठः / यचापि पोन्द्रिय तिगरपालिकशन सहप्रज्ञाका स्था० आO! T0 म०। भला सूत्र०। ('इंद्रिय शब्द द्वितीयभाग रामाल: प्रा०पद। सत्रा स्था०। जोल 246 पट सर्वेया जीवानां पदन्द्रियत्वमुक्तम् ) 5. नायिकानभिप्राय तिर ? पंचिंदियउवसट्टपुं० (पञ्चन्द्रियोपवशात) पोन्द्रियाणां स्पर्शनाऽऽदि- पंचिंदिय तिरिक्खा य, विहा ते वियाहिया। हुषोत IIT मामी जोश आयत्तः वर्णलोपात पञ्चन्द्रियायतस्तेन संमुच्छिम तिरिक्खा उ, गडभववंतिया तहा / / 171 / / वादालभा- पानम / विहलसायाम, पा)। दुविहा ते भवे तिविहा, जलयरा थलयरा तहा। पंचिंदियजाइण मन) (पोन्द्रियजातिनामन्) नामकमले, यदुदया- खहयरा य बोधव्वा, तेसिं भेए सुणेह मे / / 172 / / त्प नट्रयजन भवति। 3-1033 अ०। मच्छा य कच्छभा यावि, गाहा य मगरा तहा। पंचिंदियणिग्गहन (कञ्चेन्द्रियनिग्रह) पशसंख्याना स्पनर सन- सुसुमारा य बोधव्वा. पंचहा जलयरा तहा / / 173 / / घण-क्षः श्रास पास्वविषयग्रहमप्रवृत्तावपि रागद्वेषाऽकरणे, द० 2 तत्व। लोएगदेसे ते सव्वे, न सम्वत्थ वियाहिया। पंचिंदियतिरिक्खजोणिय पुं० (पञ्चेन्द्रियनिर्यग्योनिक) एकद्वित्रि- एत्तो कालविभागं तु, तेसिं वोच्छं चउव्विहं / / 174 / / चतु:न्द्रियन्त्रि विद्यालयीनी०।) संतई पप्प णाईवा, अपज्जवसिया विय। (से किं तं पंचिंदियतिरिक्खजोणिया? पंचिंदियतिरिक्खजो- ठिइं पडुच साईया, सपञ्जवसिया वि य / / 17 / / णिया दुविहा पण्णत्ता / तं जहा-समुच्छिमपंचिंदियतिरिक्ख- एगाओ पुष्वकोडीओ, उक्कोसेणं वियाहिए। जोणिया य, गब्भवक्कं तियपंचिंदियतिरिक्खजोणिया य / से किं / आउट्ठिई जलयराणं, अंतांमुहुत्तं जहणिया / / 176 // तं समुच्छिमपंचिंदियतिरिक्खजोणिया ? संमुच्छिमपंचिं- (पुव्वको डिपुहुत्तं तु, उक्कोसेण वियाहिया। दियतिरिक्खजोणिया तिविहा पण्णत्ता / तं जहा-जलयरा, कायट्ठिई जलयराणं, अंतोमुहुत्तं जहन्नग / / 177 / / थलयरा, खहयरा या अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नगं / सकि तांगादि अल के तेन्द्रियतिथग्लोनिकाः ? सरि | विजढम्म सए काए, जलयराणं य अंतरं / / 17 / राइयेन्द्रिर तिरंग्यानिया द्विविधाः प्रक्षा:राद्यथा-समछि . चउप्पया य परिसप्पा, दुविहा थलयरा भवे / न्द्रियतिर्यग्य' नेकाः, गर्भव्युत्क्रान्तिक्पञ्चेन्द्रियतिरंग्योनिकाः। तर चउप्पया वउविहा, ते मे कित्तयतो सुण / / 176 / / समर्छन समग पपातर तिरेकेाणेवमेव प्राणिनामुत्पादः तेन निर्वताः एगखुरा दुखुरा चेव, गंडीपयसणहपया। संमछिमाः / भावादिमः" 6 / 4 / 21 / / इति इमप्रत्ययः / गत हयमाइ गोणमाई, गयमाई सीहमाइणो ||180 / / पञ्चन्द्रियतिर्यग्मोनिका श्व संगुर्छिमपञ्चेन्द्रियतिधयोनिकाः / / भूतोरगपरीसप्पा, उरपरिसप्पा दुहा भव: व्युत्क्रान्तिर पत्तियणाम / यदि वग- गर्भाव गर्भवासात व्यस्क्रान्तिनि: गोहाइ अहिमाई य,एक्के काउणेगहा भवे / / 181 / क्रमण येषा त गर्भव्यन्क्रान्तिकाः, ते च पञ्चेन्द्रियतिम्मानिकाचति। लोएगदेसे ते सव्वे, न सव्वत्थ वियाहिया। विशेषणसमाः चशब्दो स्वस्वगतानेकभेदसूचकी। (से किसमित्यादि) एत्तो कालविभागं तु, ते सिं वुच्छं चउव्विहं / / 182 / / अथ के ते सभूर्छिमपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः? सूरिराह.. पसन्द्रिय- संतई पप्प णादीया, अपज्जवसिया विय। तिर्थयोनिका स्त्रविधा प्रजाताः। तद्यथा- जलचराः, स्थलचराः, खचराः / ठिइं पडुच्च साईया, सपञ्जवसिया विय।।१८३।। तत्र जले चरन्तीति जलचरः। एवं स्थलचराः / खचरा अधिभावनीयाः / पलित्तोवमाइ तिण्णि उ, रक्कोसेण वियाहिया। जी 1 प्रति।। आउट्ठिई थलयराणं, अंतोमुहत्तं जहणिया / / 184 / / से किं तं पंचिंदियतिरिक्खजोणिया ? पंचिंदियतिरि- पुवकोडीपुहत्तेणं, अंतोमुहुत्तं जहणिया। क्खजोणिया तिविहा पण्णत्ता / तं जहा- जलयरपंचिंदिति- कायट्ठिई थलयराणं, अंतरं तेसिम भवे / / 185 / / रिक्खजोणिया, थलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिया, खइयर- कालं अणंतमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहण्णयं / पंचिंदियतिरिक्खजोणिया। विजढम्म सए काए, थलयराणं तु अंतरं / / 186 // पञ्चन्द्रियान् प्रतिपिपादयिषुराह - (से किं तमित्यादि) अथ के ते चम्मे उ लोमपक्खी य, तइया समुग्गपक्खी य। पञ्चन्द्रितर्षग्योनिकाः ? सृरिराह-पक्षन्द्रियतिथंग्यानिकारिचविधा: विततपक्खी य बोधव्वा, पक्खिणो य चउविहा।१८७। प्रज्ञप्ताः। तद्यथा - (जलयरेत्यादि) जले चरन्ति पर्यटन्तीति जलचराः लोएगदेसे ते सव्वे, न सव्वत्थ वियाहिया।