________________ भरह 1403 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 5 भरह सेज्जायरस्साहसुसंजयस्स। सक्काइ वाहिज्जइ उत्तरेण, न कपिउं से वसिउं अदिन्ने / / 414|| सक्को तओ वंदिउ भत्तिजुत्तो, भणेइ सामि समणा जिणिंदा। मेरुस्स से चेट्टह दाहिणेणं, सयंभु ! जा गिण्हह जं च कप्पं // 41 // खेत्ते मईए य मयाऽणुनायं, चक्की व हिट्ठो नमिउंजिणिंद। मया अणुन्नायमिण जहित्थं, चिट्ठति साहू य सुहं समत्थं / / 416|| कहिं करेमो अह भत्त पाणं, जमाणिय साहुकए मएह। सुरा सुसाहिंसुकरेमि जत्थ, भणाइ तो देहि मणुत्तराणं // 417 // चिंतेइ तो जाउ कुसीलरत्त गुणहिको होज हिओ ममेह। नायं जहाऽणुय्वयधारिणो मे, गुणाहिया तेसि करेमि पूयं // 418!! एवं वियारित्तु सुसावगाणं, तं भत्तपाणं दलइत्तु पच्छा। दंसेह सा हावियमप्पणो मा. सुरिदरूवं अइवोज मज्झं? 11416 / / महानरो काउमपत्थणाए, होउ ति भंगो कलिओ मणम्मि। तो दसए अंगुलिभूसियं सो, सविम्हयं हिट्ठमणो पलोए।।४२०॥ तो तीऍ कारावइ हिट्ठचित्तो, महामहं काउ नरोत्तमो ति। तमाइ काउंपइवच्छरंतु, पकीरई इंदमहूसवो त्ति / / 421 / / तं देवदेई इहयं नराणं, मेत्ती वयं होउ असेसकम्मा। खणतरं झायइएवमेवं, एवं तु काले अइगच्छमाणे॥४२२॥ लोभाभिभूया इयरे जणा वि, भुंजंति भोगा बहुया उयारा / भणंति लोगे बहुओ नरीसं, भणाइतो खाइन अस्थि मज्झ॥४२३|| अत्थि तिं सामिस्स पयप्पसाया, तो देह किं वात्थ वियारिएण। भणति भग्गा वयमेत्थ नूणं, भणाइ भो देजह पुच्छपुव्वं // 424 / / एवं तओ पुच्छइ किं भवाणं, महव्वया संति न सावगाणं। हवंतिते किंतु अणुव्वयाणि, पंचेव सिक्खाश्य सत्त होति / / 425|| देसिंतितो ते भरहाहिवस्स, राया बि लच्छेइ य कागिणीए। मासाण छण्हं तु पुणो पुणो य, संभालणा हो इयराण अन्ना // 426|| जच्छति पुत्ताइ जईण ते उ, कमेण जा एस दिओववत्ती। महव्वयाणुव्वयसंतिकम्म, जिणच्चुई जीयपयत्थखट्टा / / 427 / / वेया कया सव्वपयत्थगब्भा, सब्भावहेउ विविहाय तेसिं। मिच्छ पवन्नाण जिणतेरे ते, पभूयकालेणुसहस्स पच्छा।।४२८|| अणज्जवेया सुलसाइजन्न वक्कल्लमाईहिँ कया उपच्छा। चक्की जिणं पुच्छइ सामि ! तुब्भे, तिलोयपुज्जा भरहे अहन्ने / / 426 / जयप्पईवा कह किंघमाणा, ममोवमा वा सयलं कहेहि। जिणाण चक्कीण व केसवाणं, बलाण माणं सययं कहेह।।४३०॥ धन्ना य आय नयरे पियाएँ, गईऍजा जस्स जिणो निवस्स। एवं जिणो पुव्वसयस्सहस्सं, पगासणंवाससहस्सऊणं // 431 // काऊण सब्भूयपयत्थसत्था, जीवाइतत्ताण पहीइ कम्म। सिवं गओऽट्टावयपव्वयम्मि, सुएहिं साहूहिँ बहूहिँ सव्यं / / 432|| चक्की वि कालेण चिरा विसोउं, चित्तेण होऊणऽवलाण जेट्टे। अट्ठावयप्पव्वयमत्थयम्मि, कारेइ सो जोयणमित्तदीहं / / 433 // तिगाउउस्सेहवरं विसालं. थंभाभिरामं रयणामयं तु। सुसेहसेजागइणेगखंभ सओसियं सिद्धगिहाणुगारि॥४३४|| वेयड्डसिद्धाययण जहेव, विवन्नियं नेयमिणं तहेव। पन्नत्तिएजंबुयदीवगस्स, पेच्छामिहा तोरणजा झया य॥४३५॥ चत्तारि चाउद्दिसि चारु तस्स, दारे यदारे सुहमंडवे से। एगेगतित्तिपमुहे य रम्मे, तेसिं पुरा पेच्छणमंडवे से।।४३६।। एवं कमेण मणिपेढिया य, सव्वं च सव्वन्नुयमेव नेयं। तस्सेवणं चेइयमज्झदेसे, रम्मा सुरुवा मणिपेढिया से।।४३७।। तीसोवरि देवयछदए से, अच्चे सुरूवे विमले विसाले। तेसोवरि वन्नपमाणजुत्ता,