________________ भरह 1365 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 5 भरह न किंचि दुक्खं उवसग्गया वि। करति सव्वं समरे वि नूण, असत्थमज्झे हवई सया वि // 21 // मणि पहाणं रयणं धरतो, अवट्टिआ जोव्वणकेसरोमो। न होइ होई भयवंतगुत्तो, घेत्तूण हत्थेण नराहिवो तं // 220|| गयस्स कुंभीऍउ दाहिणाए, खिवित्तु सार भम्हो नरिंदो। हारद्धहारप्पविरायवच्छो, सुराहिरायस्समरिद्धिजुत्तो // 221 / / उज्जोइयाऽऽसो य मणिप्पहाए, चक्काणुमग्गेण पयाइ दित्तो। रायासहस्सेहिंऽणुजायमग्गो, समत्थसेण्णाणुपओ विसाभो।।२२२॥ उक्किट्ठवंदीजयसिंहनाय झंकारभेरीरवपूरियाऽऽसो / अईइ दारेण उ दक्खिणेणं, महज्जुई से तिमिसंगुहाए।।२२३।। पमाणओ से चउरंगुलं जं. विसावहारी परमं पगिट्ठ। उज्जोयई बारस जोयणाई. चंदा व राईऍसमत्थरोन्नं / / 224|| न तत्थ सूरो न ससीन अग्गी, पणासई से तिमिसंधयारं। तं कामिणी दिव्वजुई गहाय, पुस्विल्लपच्छिल्लयसेन्नयस्स।।२२५।। एगासहेउ तिमिसगुहाए, एणूणपणाससुमंडलाइं। आयामविक्खमपमाणणेण, धणूण पंचस्स य माणयाणि // 226|| सुक्कोसई चंदसमे य चक्के, सुचक्कनेमिस्समसव्वभावो। सुभित्तिपज्जोयण अंतरे य, देदिप्पमाणे लहुसु प्पवित्तो // 227 / / सलाहमाणे हलिहेयमाणे, सुहं सुहेणं विसई पहिटे। जा चक्कवट्टी वरमंडलाइ, तहेब चिट्ठति गुहासया वि।।२२८|| आलोयउज्जोयभुजो गुहा सा, जाया पभावेण सुमंडलाणं। तीसे गुहाए बहुमज्झदेसे. जलाउ उम्मग्गनिमग्ग अत्थिं // 226 // तिणं व कट्ठ गयअस्सजोह, पहाणमाई पढमा तलम्मि। पडेइ बीयाउ तलम्मि नेइ, तो दो वि पुविल्लयनिक्खुडाओ॥२३०॥ गया उ जा सिंधुनई समुद्दे, तेसिंतरिट्टो पकरेइ हिट्ठो। सुवट्टई दक्खमई कलत्तं, सुसोयबंध अचलं अकंप // 231 / / अणेगथंभूसियचारुरम्म, सुहप्पवेसं सुहनिगमंच। आएसओ चक्किवरस्सतत्तो, सिधू' पुब्विल्लतडेण तेहिं॥२३२|| सुसकमेहिं अह उतरेणं कमेण पतस्स अहुत्तरे वि। कुंचारवं चारुसरं करते, ठिए सटाणे सुवरक्कवाडे।।२३३॥ तत्तो ससेन्नो परिनीहरेइ, अवोडिया उत्तरभारहम्मि। चिलाइया तेसु पयंडदंडा, अड्डा य दित्ता धणधण्णजुता / / 234|| सुवण्णमाणिक्कहिरण्णगुण्णा, वित्थिन्नपासायविसालसेन्ना। विसालसेज्जासणसावएज्जा, उइन्नजोहा हयवाहणट्ठा / / 235|| सुदंसणा सिंधुरवारसारा, गवेलहासोभयसत्तसारा। सूरा दढा वीरपक्कमा य, अणेगसंगामसएसुलद्धा / / 236|| माहप्पविक्खायबला दुजोहा, तओ य तेसि विसए पविट्ठ। बलं करे चक्कितणं सयाइ, उव्वड ठाणं अवलोइऊण।।२३७|| झायंति चिंतोयगया भणंति, कएस अप्पत्थियपत्थएसो। निहीण पुन्ने स दुरंतपंते, अलक्खणे कालकयंतगामी // 23 // एवंविहोपद्दवकारि अम्हं, अनन्ननाणोवणता य तत्थ। सब्वे गआ से मिलिया चिलाया, पासित्तु एवं रुसिया भणंति॥२३॥ जहा न आगच्छइ एस भूओ, तहा पयत्तं करिमो ससेन्ना। अग्गाणि एंतो पहरंति झत्ति, वारण मेहब्भवयं व सिन्नं / / 240 // दिसे दिसिं चक्कतणं तु नीयं, तओसुसेण रयणे अहस्से। रुहेइ खग्गं रयणं गहित्तु, चिलाइए ता सइ आसुरुत्ते॥२४१।। भीया पलाइत्तु पहारभग्गा, उद्विग्गदीणा विमणा अथामा। गया सई सिंधुतडे विसाले, मिलित्तु सव्वेगपए पसत्थे||२४|| सुवालुगासंथरए रुहति, पगेण्हिउं अट्ठमभत्तियं तु। उत्ताणगा अबरचीरधारी, मेहामुहाणं कुलदेवयाणां // 243 //