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________________ भप्पय 1377 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 5 भम्हय भप्पयन० (भरमक) बहुभोजनकारके रोगभेदे, वाच० / भस्मको व्याधिः। | भमरनिउरंवभूय त्रि० (भ्रमरनिकुरम्यभूत) भ्रमरनिकुरम्बोपमे, रा० / सच वातपित्तोत्कटतया श्लेष्मन्यूनतयापजायत। आचा०१ श्रु०६अ० | भमरपत्तंगसारपुं० (भ्रमरपत्राङ्गसार) भ्रमरपक्षान्तर्गत विशिष्टकालिमोप१ उ० / भस्मेव इवार्थे कन् / कलधौते, वाच०। चिते प्रदेशविशेषे, रा०। जी०। आ० म०। भप्परासि पुं० (भस्मराशि) अष्टाशीतिमहाग्रहान्तर्गत महाग्रहे, चं० प्र० / भमरपत्तसार पुं०(भ्रमरपत्रसार) भ्रमरस्य पत्र पक्षस्तस्य सारो भ्रमर२० पाहु०। पत्रसारः। भ्रमरपत्रान्तर्गत विशिष्टश्यामतोपचिते, प्रदेशे, जं०१ वक्ष०। दो भासरासी। स्था०२ ठा०३ उ० कल्प०। सू० प्र०) भमररुयपुं० (भ्रमररात) ग्लेच्छजातिभेदे, तन्निवासभूते अनार्यक्षेत्रभेदे भ्रम पु० (भ्रम) चलने, भ्वादि० पर० सक० सेट् / ' भ्रमेष्टि च। सूत्रा०१ अ०५ अ०१ उ०। प्रव०। प्रज्ञा०। रिटिल्लदुण्दुल्ल-दण्दुल्ल-चक्कम्म-भम्मड--भमड---भमाड-- भमरावलिया स्त्री० (भ्रमरावलिका) भ्रमरपवती, रा०। जी०। तलअण्टझण्ट-झम्प-भुम-गुम-फुम-फुस-दुम-दुस-परी भमरिया स्त्री० (भमरिका) उदकस्थे जीवविशेषे, सूत्रा०२ श्रु०३ अ०। पराः // 84161 / / इति प्राकृतसूत्रोण भ्रमेरेते-ऽष्टादशाऽऽदेशाः वा / टिरिटिल्लइ। हुण्दुल्ल्इ। ढण्ढल्लइ। चक्कम्मइ / भमडइ। भम्माडइ। भमली स्त्री० (भ्रमरी) भ्रम-फरन्, गौ० डीए / जतुकायाम्, भ्रमरभाभमाडइ / तलअण्टइ। झण्टइ। झम्पइ। भुमइ। गुमइ। फुमइ फुसइ। यायाम, वाच० / वाद्यविशेषे च / अष्टशतं भ्रमरीवादकानाम् / रा०। ढुमइ। ढुसइ। परीइ। परइ / भमइ / प्रा० 4 पाद। भ्रमति / अभ्रमत्। आकस्मिक्या शरीरभ्रमो, आव०५ अ०। ध० ल०। आ० चू०। अभ्रमीत्। वाच०। भ्रम घञ्। भ्रान्तौ, विपा०१ श्रु०३ अ०। आकरिम- | भमस (देशी) धनपाले, दे० ना० 6 वर्ग 101 गाथा। कभ्रमी, व्य० 4 उ० / अनवस्थाने, विशे० / विपर्यासे, द्वा० 17 द्वा०। भमाड स्त्री० (भ्रामि) भ्रम-चलने-णिच्। भ्रमेस्तालिअण्ट-तमाली" मिथ्याज्ञाने, अन्यथाभूतस्य वस्तुनोऽन्यथारूपेण ज्ञाने, वाच० / ||6430 / / इति प्राकृतसूत्रोण भ्रमेय॑न्तस्य 'तालिअण्ट--तमाल' ''भ्रमोऽन्तर्विप्लवस्ता।" भ्रमोऽन्तर्विप्लवश्चित्तविपर्ययः, शुक्तिकायां इत्यादेशौ वा भवतः। तालिअण्टइ। तमाडइ। भामेइ। भमाडेइ। भमावेइ। रजतमिदमितिवद् अतस्मिंस्तद्ग्रह इति यावत् / द्वा० 17 द्वा० / ग्रा० 4 पाद। "अतस्मिंस्तन्मतिभ्रमः।' भ्रमोऽतस्मिंस्तदभाववति तन्मतिः / यदाह भमास पुं० (भमास) तृणविशेषे, “बरुओ सामुंडुओ भमासो य। 'पाइ० विपर्ययो मिथ्याज्ञानमतद्रूपप्रतिष्ठमिति। द्वा०१८ द्वा०। जलनिर्गम ना०१४६ गाथा। इक्षुतुल्यतृणे, दे० ना०६ वर्ग 101 गाथा। स्थाने, कुन्दे भ्रमणे, वाच० / पर्यटने च। सूत्र० 1 श्रु० 1 अ० 3 उ० / भमिस्त्री० (भ्रमि) आवर्ते, है। भमंत त्रि०(भ्रमत्) अनवस्थिते, ज्ञा०१ श्रु०१ अ०। भमिअ अव्य० (भ्रमित्वा) "क्त्वस्तुमत्तूण-तुआणाः"||८/२।१४६|| भमण न० (भ्रमण) पर्यटने, सूत्रा०१ श्रु०१ अ० 3 उ०। इति प्राकृतसूत्रेण क्त्वास्थाने अदादेशः। भ्रमं कृत्वेत्यर्थे, प्रा० १पाद। भममुह (देशी) आवर्ते दे० ना० 6 वर्ग 101 गाथा। * भ्रमित त्रिविस्मययुक्ते, "घोलिअ,दल्लिआइं भमिअत्थे। 'पाइ० भमर पुं०(भ्रमर) "भ्रमरे सो वा" ||8/1 / 254 // इति प्राकृत सूत्रोण ना० 185 गाथा। मस्य सो वा / प्रा०१ पाद। "हरिद्राऽऽदौ लः // 8/1254|| इति प्राकृतसूत्रोण ससन्नियोगे लत्वम् / प्रा० 1 पाद / भ्रमति रौतीति भ्रमरः / भमिर त्रि० (भ्रमिन) "शीलाऽद्यर्थस्येरः"॥८।२।१४५|| इति आव०६अ। भ्रमति रौति च भ्रमरः। आ०म०१०। विशे०। अनु० / प्राकृतसूत्रोण शीलाऽऽद्यर्थे विहितस्य प्रत्ययस्येरादेशः। भ्रमशीले, प्रा० व्य० / रामाऽऽवर्ते घ। "विसालपीवरभमरोरुपडिपुण्णविमलखंधं / " 2 पाद। ज्ञा० 1 श्रु०१ अ० 1 जी०। "मोऽनुनासिको वा" ||4|267 // भमुआ (देशी) शृगाल्याम्, दे० ना०६ वर्ग 101 गाथा। इति प्राकृतसूत्रेणापभ्रंशेऽनादौ वर्त्तमानस्यासंयुक्तस्य मकारस्यानु- भमुहा स्वी० (भू) नेत्रावयवविशेषे, औ०। "भुमआ भमुहा।' पाइ० नासिको वकारो वा / भव॑र / भ्रमर। प्रा०४ पाद। 'फुल्लंधुआ रसाऊ, ना० 252 गाथा / भूर्नेत्रार्द्धरोमाणीति / कल्प० 3 अधि० 6 क्षण / भिंगा भसला य महुअरा अलिणो। इंदिदिरा दुरेहा, धुअयाया छप्पया 'दीहाई भमुहाई।" आचा०२ श्रु०२ चू०६ अ० / 'आणामियचाव-- भमरा ||1||" पाइ० ना० 11 गाथा। भ्रमन् रौतीति भ्रमरः / प्रव० 4 रुइलकिण्हभमराइतणुकसिणणिद्धभमुहे।" आ० / द्वार / कालवणे सम्पातिनि पुरुषतया लोकव्यवहृते (प्रश्न० 1 आश्र० मम्म न० (भस्मन्) 'भप्प' शब्दार्थे, प्रा०२ पाद। द्वार) चतुरिन्द्रियजीवविशेषे, विशे०।"लोगव्यवहारपरो, ववहारो भणइ भम्मय न० (भस्मक) 'भप्पय' शब्दार्थे, प्रा० 4 पाद। कालओ भमरो / परमत्थपरो भन्नइ, निच्छइओ पंचवण्णो त्ति भम्मरासि पुं० (भस्मराशि) 'भप्पराशि' शब्दार्थ, चं० प्र० 20 पाहु० / // 3586|" (अस्या व्याख्या 'णय' शब्दे चतुर्थभागे 1862 पृष्ठे गता) विशे०। आचा०। आ० म०। दश०। प्रज्ञा०। भ०। औ०। प्रश्न०।रा० भम्ह न० (भस्मन्) 'भप्प' शब्दार्थे, प्रा०२पाद। / ज्ञा० / उत्त० / सूत्र०। भम्हय न० (भरमक) 'भप्पय' शब्दार्थे प्रा०४ पाद।
SR No.016147
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1636
LanguageHindi
ClassificationDictionary
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