________________ भद्दबाहु 1372- अभिधानराजेन्द्रः - भाग 5 मद्दबाहु सोभणति एव भणिए, असिद्धकिलिट्टएण वयणाणं / नहु ता अहं समत्थो, इण्डिं भे वायण दाउं // 22 // अप्पट्टे आउस्सा, मज्झ किं वायणाएँ कायव्यं / एवं च भणियमित्ता, रोसस्स वसं गया साहू।।२३।। अह विण्णवंतिसाहू, हंतेवं पसिणपुच्छणे अम्ह। एवं भणतस्स तुहं, को दंडो होइतं मुणसु ? // 24 // सो भणति एव भणिए, अविसन्नो वीरवयणनियमेण। वजेयव्वो सुयनि-हवो त्ति अह सव्वसाहू अ॥२५।। तं एव जाणमाणे, नेव सि ते पाडिपुंछयं दाउं। तं ठाणं संपत्त, कह तं पासेह दाहामो (?) 1|26|| वारसविहसंभागे, विण्णवएतेय समणसंघे वि। जत्ते जाइज्जतो, न वि इच्छसि वायणं दाउं।।२७।। सो भणइ पुव्वभणिए, जसभरिओ अयंसभीरुतो वीरो। एक्कण कारणेणं, इच्छंभे वायणं दाउं॥२८॥ अप्पट्टे आउत्तो, परमटे सुट्ट दाणि उजुत्तो। नेवाह वाहरियव्वो, अहं पि न वि वाहरिस्सामि॥२६॥ पारियकाउस्सम्गो, भत्तडित्तो वा अहव सज्झाए। निंतो व अनितो वा, एवं भे वायणं दाहं / / 30 / / पादति समणसंधा, अम्हे अणुयत्तिमो तुहं छंद। देहिय धम्मो वाह. तुम्ह छंदेण दिच्छामो॥३१।। जे आसी मेहावी, उजुत्ता वाहणधारणसमत्था। ताणं पंचसयाई, सिक्खगसाहूणमहियाई॥३२॥ वेयावचगरासे, एकक से चउव्विहा दो दो। भिक्खम्मि अप्पडिबुद्धा, दिया य रत्तिं च सिक्खंति // 33 // ते एगसए साहू, वायणपरिपुच्छणाएँ परितता। आहारं अलहंता, तत्थ यजं किंचि अमुणंता // 34 // उज्जुत्ता मेहावी, सिट्टा उवायणं अलभमाणा। अह तेथोवा थोवा, सव्वे समृणा वि निस्सरिया॥३५॥" ति०। (स्थूलभद्रवृत्तम् 'थूलभद्द' शब्दे चतुर्थभागे 2415 पृष्ठे गतम्) एतेहि नासियव्वं, मए विणा, विजह सासणे भणियं। जंपुण मे अवरद्धं, एवं पुण डहति सव्वंग // 64 / / पुच्छम्मि य मयहरया, अणेगया जे मरइ संपती काले। गोरविय थूलभद्द-म्मि नासनहाइ पुव्वाई।।६५।। अह विण्णविति साहू, सगच्छया करिय अंजलिं सीसे। भद्दस्स तापसा इह, इमस्स एक्कावराहस्स॥६६।। रागेण वदोसेणव, जवपमाएण किंचि अवरद्धं / तंभे! सं (तेसिं) उत्तरगुणं, अऊणकार खमावेति॥६७।। अह सुरकरिकरउवमा--णबाहुणा भद्दबाहुणा भणिय / मा गच्छइ निव्वेयं, कारणसेयं निसामेह // 68| रायकुलसरिसभूते, सगडालकुलम्मिएस संभूतो। गेहगओ चेव पुणो, विसारओ सव्वसत्थेसु॥६६॥ कोसानामगगणिया, समिद्धकोसा य विउलकोसा या जायें घर उ विहारी, रतिसंवेसम्मि वेसम्मि॥७०|| वारस वासा वासउं, कोसाएँघरम्मि सिरिघरसमम्मि। सोऊणय पियमरणं, रण्णो वयणेण निगच्छा // 71 / / तेगिच्छसरिसवयणं, कोसं आपुच्छए सयं धणियं। खिप्पं खु एह सामिय! अहयं बहुवायरासेहं // 72 / / भवणारोहावमुक्को, छिज्जइ चंदो व्व सोमगंभीरो। परिमलसिरिं वहतो, जोण्हानिवहं ससी चेव // 73 // भवणाउ निग्गओ सो, सा रंगे परियणेण कड्डित्तो। मत्तरवरवारणगओ, इह पत्तो राउलं दारं / / 74 // अंतेउरं अगइतो, विणीयविणओ परित्तसंसारो। काऊणं सो भद्दो, रण्णो पुरओ ठिओ आसि 175 // अह भणइ नंदराया, मंतिपयं गिण्हथूलभद्द! महं। पडिवजसु ते बद्धाइँ, तिणि नगरागरसयाई॥७६॥ रायकुलसरिसभूए, सगडालकुलम्मि तं सि संभूओ। सात्थेसुथ निम्माओ, गिण्हसु पिउसतियं एयं / / 77 / / अह भणइ थूलभद्दो, गणियापरिमलसमप्पियसरीरो। सोमीकयसामत्थो पुणो वि से विण्णवेस्सामि / / 78|| अह भणति नंदराया, केइ समंदाइँ तुब्भ सामत्थं। को अण्णो वरतरओ, निम्मातो, सव्वसत्थेसु ? ||76 / / कंबलरयणेण ततो, अप्पाणं सुट्ट संवरित्ता थे। अंसूनि निण्हुयंतो, असोगवणियं अह पविट्ठो॥८॥ जित्तियमित्तं दिण्णं, तेत्तियमित्तं इमं तु भुत्त त्ति / इत्तो नवरि पडामो, झसो व मीणाउलघरम्भि / / 1 / / आणा रज्जं भोगा, रन्नो पासम्मि आसणं पढमं / सुव्वत्थ इमं न खमे, खमं तु अप्पक्खमं काउं / / 2 / / कोसं परिचिंततो, रायकुलाओ य जे परिकिलेसे। निरयेसुय जे केसे, ता हुँचति अप्पणो केसे / / 83 // तं चिय परिहियवत्थं, छित्तूणं कुणइ अग्गओआरं। कंबलरयणो गुद्धि-कार उण्णोट्टियं पुरतो॥४॥ एयं मे सामत्थं, भणइ अवणेहि मत्थतो गुढेि। तोणं केसविहूणे, केसेहिं विणा पलोएति।।८।। अह भणइ नंदराया, बच्चइ गणियाघरं जइ कहिचि। तोतं असच्चवादी, तीसे पुरतो विवाएमि॥८६|| सो कुलघरस्स सिद्धि, गणियावरसंतियं च सामिद्धि / पाएण पुणो वेढ, णातिणगरा अणवयक्खा // 8 // जो एवं पुव्वविऊ,एवं सज्झायझाणउजुत्तो। गारवकरणेण हिओ, सीलभरुव्वहणधारणया।।८८|| जह जह एही काले, तह तह अप्पावराहसंरद्धा। अणगारा पडणीए, निसंसयउ वहवेहिति / / 6 / / उप्पायणीहि अवरे, केई विजाए इत्तरणं / चउरुविहविजाहि, इट्टाहिं काहि उड्डाह ||6|| मंतेहि य चुण्णेहि य, कुच्छियविजाहि तेण निमित्तेणं / काऊण उवज्झाय, भमिहि सोऽगंतसंसारे // 11 // अह भणइथूलभद्दो, अण्णं रूवं न किंचि काहामो। इच्छामि जाणिउंजे, अहयं चत्तारि पुवाई / / 62|| ................. सुयमेत्ताई च वुग्गहाहिं ति। दस पुण ते अणुजाणे, जाण पणट्ठाइँ चत्तारि / / 3 / / एतेण कारणेण उ, पुरिसजुगे अट्ठमम्मि वारस्स। सयराहेण पणट्टा-इँ जाण चत्तारिपुव्वाइं॥६४|| अणवट्टप्पो य तवो, तवपारंची य दोवि विच्छिन्ना। चउदसपुव्वधरम्मी, धरति सेसा उजा तित्थं // 65 // तंएवमंगवंसो, य नंदवंसो मरुयवंसोय। सयराहेण पणट्ठा, समयं सज्झायवसेण // 66 // पढमो दसपुव्वीण, सगडालकुलस्स जसकरो धीरो। तामेण थूलभद्दो, अविहिं साधम्मभरो ति / / ||