________________ भद्दणंदि(ण) 1368 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 5 भद्दणंदि(ण) जह वज्झति जिया इह, कम्मेहिँ जहा व मुचंति // 23 // इय सो उ भद्दनंदी, नंदियहियओ गहित्तु जिणपासे। सम्मत्तमूलमणह, गिहिधम्म सगिहमणुपत्तो / / 24 / / अह पुच्छइ सिरिगोयम-सामी सामियदुहं महावीर। पहु! एस भद्दनंदी, कुमरो अमरो इव सुरूवो।।२५।। सोमुव्व सोममुत्ती, सोहग्गनिही य सयलजणइट्ठो। साहूर्ण पि विसेसे- सम्मओ केण कम्मेण ? // 26 / / जंपइ जिणो विदेहे, आसी पुंडरीगिणीई नयरीए। विजओ नाम कुमारो, सणंकुमारो इव सुरूवो // 27 // सो कइआ वि सभवणे, भवणगुरु गुरुगुणोहकयसोह। जुगबाहुं जिणनाह, भिक्खाइ कए नियइ इतं // 28 // तो झति चत्तचित्ता-ऽऽसणो गओ संमुहं सगट्ठपए। तिपयाहिणं करित्ता, वंदइ तं भूमिमिलियसिरो॥२६॥ भणड य सामिय! आह-रगहणओ मह करेसु सुपसायं। दव्वाइसु उवउत्तो, जिणो वि पाणी पसारेइ।।३०।। अह सो विजयकुमारो, हरिसभरुभिन्नबहुलरोमंचो। विप्फारियनयणजुओ, वियसंतपसंतमुहकमलो।।३१।। आहारेण वरेण, पडिलाभइ परमभत्तिसंजुत्तो। कयकिचं अप्याणं, मन्नंतो मणवइतणूहि // 32 // चित्तं वित्तं पत्तं, तिन्नि वि एयाइँ लहिंय दुलहाई। पडिलाभंतेण तया, समल्जिय तेण फलमेय।।३३।। पुन्नाणुबंधि पुनं, उत्तमभोगा य सुलहबोहित्तं / मणुयाउयं च बद्धं, कओ परित्तो य संसारो॥३४॥ अन्नं च तहिं तइया, पाउब्भूयाइँ पंच दिव्वाई। पहयाउ ढुंदूहीओ, चेलुक्खेवा सुरेहिँ कओ॥३५।। मुक्का हिरन्नबुट्टी, वुट्टी कुसुमाण पंचवन्नाणं / गयणंऽगयम्मि घुटुं, अहो सुदाणं सुदाणं ति॥३६।। रायप्पमुहो लोओ, मिलिओ बहआ य तत्थ तेणावि। सो विजओ विजियमणो, पसंसिओ हरिसियमणेण / / 37 // भूतूण बहु कालं, विजओ भोए समाहिणा मरिगं लोयपियाइगणजओ.जाओ सो भइनदि ति॥३८|| पुच्छइ मुर्णिदभूई, किं एसो गिव्हिही समणधम्मं? भणइ जिणो गिहिस्सई, सनयम्मि समाहिओ सम्म / / 3 / / विहरइ अन्नत्थ पह, कुमरो विह कुणइ सावयं धम्म। अणुकूलविणीयसुध-म्मसीलपरिवारपरियरिओ // 40|| अह अन्नया कयाई, अट्ठमिमाईसु पव्वदियहेसु। गंतुं पोसहसालं, पासवणुचारभूमीओ।।४१।। पडिलेहिउंपमज्जिय, रइउं संथारयं च दहभस्स। तम्मि दुरूढो अट्ठम, भत्तजुयं पोसह कुणइ॥४२॥ कुमरो जिणपयभत्तो, अट्टमभत्तम्मि परिणमंतम्मि। पुव्वावरत्तकाले, चिंतिउमेवं समाढत्तो / / 43 / / धन्ना ते गामपुरा, धन्ना ते खेडकब्बडमडंबा। मिच्छत्ततिभिरसूरो, वीरजिणो विहरए जत्थ // 44 // ने चिय धन्नसुपन्ना, रायाणो रायपुत्तमाईया। वीरजिणदेसणं निसु-णिऊण गिण्हंति जे चरणं / / 45 / / इत्थं पिजइ समिजा, वीरो तेल्लुक्कबंधवो अन्न। तोऽहं तप्पयमूले, गिहिस्सं संजमं रम्म॥४६।। तस्सऽभत्थं नाउं.गोसे वीरो सभोसढो तत्थ। तो भद्दनंदिसहिओ, पहुनमणत्थं निवो पत्तो!|४७|| नमिय जिणं उवविट्टा, उचियट्ठाणे नरिंदकुमरवरा। तो नवजलहरगज्जिय-गहिरसरो भणइ इय सामी॥४८॥ भव्वा! भवारहट्टे,कम्मजलं गहिय अविरइघडीहिं। चउगइदुहविसवल्लि, मा सिंचइ जीवमंडवए।।४६।। तं सुणिय निवो पत्तो, सगिहे कुमरो उ जंपए एवं। पव्वजं गिहिस्सं, पियरो पुच्छिय परं सामि! 50 / / मा पडिबंधं कुणसु, ति सामिणा सो पयंपिओ तत्तो। पत्तो पिऊण पासे, नमिऊण कयंजली भणइ॥५१॥ वीरसगासे रम्मो, धम्मो अज्जंब! ताय! निसुआ मे। सद्दहिया, पत्तिओरो-इओय सो इच्छिओ यमए।।५।। ते वि अणुकूलहियया, भणंतितं वच्छ! धन्नकयपुन्नो। एवंदचं तचं पि, जंपिए जंपए कुमरो॥५३॥ तुब्भेहिं अणुनाओ, पव्वज संपर्य पवज्जिस्सं। सोउं एयमणिहूँ, वयणं देवी गया मुच्छ।।५४|| पउणीकया य कलुणं, विलवंती भणइ दीणवयणमिणं। जाय! तुमं मह जाओ, बहुओवाइयसहस्सेहिं॥५५।। ता कह ममं अणाहं, पुत्तय! मुत्तुं गहेसि सामन्नं। सोयभरभरियहियया-इवचिही मज्झ जीयं पि॥५६॥ ता अत्थह जायऽम्हे, जीवामो तो पउट्टसंताणे। पच्छा कालगएहिं, अम्हेहिं तुम गहिज वयं // 57 / / कुमार:बसणसयसमभिभूए, विजुलयाचंचले सुमिणसरिसे। मणुयाण जीविए मर-मगआ पत्थओ वा वि / / 58 / / को जाणइ कस्स कह,होही बोही सुदुल्लहो एस? ता धरिय धीरिमाए, अंब! तएऽहं विमुत्तव्यो / / 56 / / पितरौजाया! तुह अंग मिणं, निरुवमलवणिमसुरुवसोहिल्लं। तस्सिरिमणुहविऊणं, बूढवओ तयणु पव्वयसु॥६०।। कुमार :विविहाऽऽहिवाहिगेहं, गेहं पिप जञ्जर इमं देह / निवडणधम्मवमस्सं, इण्हिं पिहु पव्वयामि तओ॥६१।। पितरौ :सुकुलुग्गयाउलाय-नसलिलसरियाउ तुज्झदइयाओ। पंचसयाइँ इमाओ, कह मुंचसि तं अणाहाओ ?||62|| कुमार:विसमीसपायससमे, विसए असुइब्भवे असुइणोय। दुक्खतरुबीयभूए, को सेविज्जा सचेयन्नो ? // 63 // पितरौ:पुरिसपरंपरपत्तं, वित्तमिणमणिदियं तुम वच्छ! दातुं भुत्तु पकामं, पच्छा पडिवज्ज पव्वजं॥६४॥ कुमार:जलजलणपमुहसाहा- रणम्मि जलनिहितरंगतुल्लम्म ! मइमं वित्तम्मिन को पितरौ-इइत्थ पडिबंधमुव्वहइ॥६५।। पितरौ :जह तिक्खग्गधारा-इ विचरणं दुक्करं तहा पुत्त ! वयपालणं विसेसा, तुह सरिसाणं अइसुहीणं / / 66 / / कुमार:कीवाण कायराणे विसयत्तिसियाण दुक्करं एय। उज्जमधणाण धणियं, सव्वं सज्झं तु पडिहाइ॥६७॥