________________ बेअड्ड 1330- अभिधानराजेन्द्रः - भाग 5 बोगिल्ल वक्खारपव्वए नव कूडा पण्णत्ता / तं जहा-"सिद्धे य विज्जुनामे, (बेइंदिया इत्यादि) सूानवकम्, इदमपि प्रायस्तथैव, नवरं द्वीन्द्रियादेवकुरा पम्हकणगसोवत्थो / सीओदाए सनले, हरिकूडे चेव भिलापः कर्त्तव्यः, तथा-क्रमयः अशुच्यादिसम्भवाः अलसाः प्रतीताः बोद्धव्वे / / 1 / / " जंबू ! पम्हे दीहबेअड्डे नव कूडा पन्नत्ता / तं मातृवाहकाः ये काष्ठशकलानि समोभयाग्रतया सम्बध्नन्ति, वास्याकारजहा- "सिद्धे पम्हे खंडग माणी बेअड्डए'' एवं चेव० जाव मुखा वासीमुखा :- "सिप्पिय त्ति' प्राकृतत्वात् शुक्तयः शङ्ख्याः ससिलावइम्मि दीहबे अड्डे, एवं कप्पे दीहबेयड्ढे एवं० जाव प्रतीताः शङ्खनकाः तदाकृतय एवात्यन्तलघवो जीवाः वराटकाः गंधिलावइम्मि दीहबेयड्ढे नवकूडा पण्णत्ता / तं जहा- "सिद्धे कपर्दकाः जलौकसः दुष्टरक्ताकर्षिण्यः चन्दनकाः अक्षाः, शेषास्तु यथा गंधिल खंडग, माणी बेयड पुन्न तिमिसगुहा / गंधिलावइ सम्प्रदाय वाच्याः, वर्षाणि द्वादशैव स्विति सूत्रनवकार्थः / उत्त०३६ अ०। बेसमणे, कूडाणं होंति नामाइं॥१॥"एवं सव्वेसुदीहबेयजेसु बेड (देशी) नावि, दे० ना०६ वर्ग 65 गाथा। दो कूडा सरिसनामगा, सेसा ते चेव / जंबू ! मंदरउत्तरेणं नीलवंते | बेड्डा (देशी) श्मश्रुणि, दे० ना० 6 वर्ग 65 गाथा। वासहर-पव्वए नव कूडा पण्णत्ता / तं जहा- "सिद्धे नीलवएँ बेयगिरिणाहपुं०(वैताळ्यगिरिनाथ) वैताट्यपर्वतदेवे, स्था०६ ठा० / विदेहे, सीया कित्ती य नारिकंता य / अवरविदेहे रम्मगकूडे | बेली (देशी) स्थूणायाम, दे० ना० 6 वर्ग 65 गाथा / "थूणादिअली उवदंसणे चेव // 1 // " स्था०६ ठा। सव्वे वि दीहबेयड्ड पव्वया | बेली।" पाइ० ना० 143 गाथा। पणवीसं गोयमा ! उड्ढे उच्चत्तेणं पण्णत्ता। स०२५ सम०। सव्वे बेल्लग पुं० (बलीवर्द) वृषभे, “साहुणो ठिया, तत्थेगो वेल्लगो तस्स विणं वट्टबेयवपव्वया उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता। स०१००० सम०। कुंभगारस्स।" आ० म० 1 अ०। दर्श०। आव०। बेह पुं० (बेध) बेधनं बेधः / विशे०। कुन्ताऽऽदिनाशस्त्रेण भेदने, स०११ बेअडकूड न० (वैताढ्यकूट) वैताळ्यगिरिनाथदेवनिवासाद्वैताढ्यकूडम् / अङ्ग / कीलिकाऽऽदिभिर्नासिकाऽऽदिबेधने, आव० 4 अ०1 रन्ध्रोत्पास्था० 3 ठा० 1 उ०। सर्वेषां वैताढ्यानां स्वनामख्याते कूडे, स्था० दने, धर्मानुबेधे, बर्धबधे द्यूतविशेषे, सूत्र० 1 श्रु०६ अ०। 6 ठा०। बेहाइय न० (बेधातीत) बेधो धर्मानुबेधस्तस्मादतीतम्। अधर्मप्रधाने, बेइंदिय पुं०(द्वीन्द्रिय) जीवभेदे, उत्त०1 "बेहाइयं च णो वए।" बेधो - धर्मानुबेधः, तस्मादतीतमधर्मप्रधान तत्र तावद् द्वीन्द्रियवक्तव्यता प्रतिपिपादयिषुराह - बचो नो वदेत् / यदि वा-बेध इति बर्धवेदो द्यूतविशेषः, तद्वतं वचनमपि बेइंदिया उजे जीवा, दुविहा ते पकेत्तिया। नो वदेदास्तां तावक्रीडनमिति। सूत्र०१ श्रु०६ अ०। बेहिय न० (द्वैधिक) पेशीसंपादनेन द्वैधीभावकरणयोग्ये, दश० 7 अ० / पज्जत्तयमपञ्जता, तेसिं भेये सुणेह मे // 126 / / आचा०। किमिणो सोमंगला चेव, अलसा माइवाहया। * व्याहिक त्रि० द्वाभ्यामहोभ्यां जाते, ज्यो०२ पाहु। वासीमुहा य सिप्पीया, संखा संखणगा तहा।।१२७।। बोंड (देशी) चूचुके, दे० ना०६ वर्ग 66 गाथा। पल्लोयाणुल्लया चेव, तहेव य वराडगा। बोंद (देशी) मुखमित्यर्थे, दे० ना०६ वर्ग 66 गाथा। जलूगा जालगा चेव, चंदणा य तहेव य / / 128|| बोंदिस्त्री० (बोन्दि) शरीरे, औ०। स्था०। तं० / बोन्दिः, तनुः शरीरमिति इति बेइंदिया एए, णेगहा एवमायओ। पर्यायाः। अनु०. प्रश्नः / ज्ञा० / भ०। आ० म०। अव्यक्तावयवशरीरे, लोएगदेसे ते सव्वे, न सव्वत्थ वियाहिया।।१२६।। भ० 106 उ० / पञ्चा० / प्रश्न० 1 काये, आव० 5 अ०। संतई पप्प ऽणाईया, अपज्जवसियावि य। बोंदिचियपुं० (बोन्दिचित) अव्यक्तावयवं शरीरं बोन्दिः, तया चिताः पुदला ठिई पडुच्च साईया, सपज्जवसियावि य / / 130 // ये ते तथा। भ०१श०६ उ०। अव्यक्ताऽवयश रीररूपतया चितेषु, भ० १०श०८ उ०। वासाइं वारसेव उ, उक्कोसेण वियाहिया। बोंदिधरपु० (बॉन्दिधर) प्रधानसुव्यक्तावयवशरीरोपेते, चं० प्र० 20 पाहु०। बेइंदियआउठिई, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं / / 131 / / बोंदी (देशी) रूप-मुख-तनुषु, दे० ना०६ वर्ग 66 गाथा। संखिज्जकालमुक्कोसा, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं / बोकड (देशी) छागे, दे० ना०६ वर्ग 66 गाथा। बेइंदियकायठिई, तं कायं तु अमुंचओ / / 132 // बोक्कस पुं० (बोक्कस) अनार्यदेशभेदे, ता जाते म्लेच्छभेदे च / सूत्रा०१ अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं / श्रु०६ अ०। प्रव०। प्रज्ञा०। बेइंदियजीवाणं, अंतरेयं वियाहियं / / 133 / / बोक्सालिया पुं०(बोकसालिक) तन्तुवाये, आवा०२ श्रु०१ चू०१ अ० एएसिं वन्नओ चेव, गंधओ रसफासओ। २उ०॥ संठाणादेसओ वावि, विहाणाइं सहस्सओ।।१३।। बोगिल्ल (देशी) भूषिताऽऽटोपयोः, दे० ना० 6 वर्ग 66 गाथा।