________________ पचक्खाण 64 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 5 पचक्खाण हवा न करेइ, करंतं नाणुजाणइ मणसा वयसा कायसा हा अहवा न कारवेइ, करंतं नाणुजाणइ मणसा वयसा कायसा 10 // दुविहं दुविहेणं पडिक्कममाणे न करेइ,न कारवेइ, मणसा वयसा 11 / / अहवा न करेइ, न कारवेइ, मणसा कायसा 12 / अहवान करेइ, न कारवेइ, वयसा कायसा 13 / अहवा न करेइ,करतं नाणुजाणइमणसा वयसा 14 / अहवा न करेइ, करतं नाणुजाणइ मणसा कायसा 15 / अहवा न करेइ, करंतं नाणुजाणइ वयसा कायसा 16 / अहवान कारवेइ, करंतं नाणुजाणइ मणसा वयसा 17 / अहवा न कारवेइ, करंतं नाणुजाणइ मणसा कायसा 18 अहवान कारवेइ, करंतं नाणुजाणइ वयसा कायसा 16 / दुविहं एक्कविहेणं पडिक्कममाणे न करेइ, न कारवेइमणसा 20 / अहवा न करेइ, न कारवेइ वयसा 21 / अहवा न करेइ, न कारवेइ कायसा 22 / अहवा न करेइ, करंतं नाणुजाणइ मणसा 23 / अहवा न करेइ, करंतं नाणुजाणइ वयसा 24 / अहवा न करेइ, करतं नाणुजाणइ कायसा 25 / अहवा न कारवेइ , करतं नाणुजाणइ मणसा 26 / अहवा न कारवेइ , करंतं नाणुजाणइ वयसा 27 / अहवान कारवेइ, करंतं नाणुजाणइ कायसा 28/ एगविहं तिविहेणं पडिक्कममाणे न रेइ मणसा वयसा कायसा 26 / अहवा न कारवेइ मणसा वयसा कायसा 30 / अहवा करतं नाणुजाणइ मणसा वयसा कायसा 311 एक्कविहं दुविहेणं पडिकभमाणे न करेइमणसा वयसा 32 / अहवा न करेइ मणसा कायसा 331 अहवा न करेइ वयसा कायसा 34 // अहवा न कारवेइ मणसा वयसा 35 // अहवा न कारवेइ मणसा कायसा 36 // अहवा न कारवेइ वयसा कायसा 37 / अहवा करतं नाणुजाणइ मणसा वयसा 38 / अहवा करंतं नाणुजाणइ मणसा कायसा 36 / अहवा करंतं नाणुजाणइ वयसा कायसा 40 एगविहं एगविहेणं पडिक्कममाणे न करेइ मणसा 41 / अहवा न करेइ वयसा 42 / अहवान करेइ कायसा 43 / अहवान कारवेइ मणसा 44 अहदा न कारवेइ वयसा 45| अहवा न कारवेइ कायसा 46 अहवा करंतं नाणुजाणइ मणसा 47 अहवा करतं नाणुजाणइ वयसा 48 / अहवा करतं नाणुजाणइ कायसा 46 / पडुप्पणं संवरेमाणे किं तिविहेणं संवरेइ, एवं जहा पडिक्कमणेणं एगूणवण्णं भंगा भणिया, संवरमाणे वि एगूणवण्णं भंगा भाणियव्वा। अणागयं पचक्खमाणे किं तिविहं तिविहेणं पचक्खाइ, एवं तं चेव भंगा एगूणवण्णं भाणियव्वा जाव अहवा करंतं नाणुजाणइ कायसा। समणोवासगस्स णं भंते ! पुवामेव थूलए मुसावाए पचक्खाए भवइ / से णं भंते ! पच्छा पचाइक्खमाणे एवं जहा पाणाइवायस्स सीयालं भंगसयं भवियं तहा मुसावायस्स वि भाणियव्यं, एवं अदिण्णादाणस्स वि, एवं थूलगस्स मेहुणस्स वि परिग्गहस्स .जाव करतं नाणुजाणइ कायसा, एए खलु एरिसगा समणोदसगा भवंति, नो खलु एरिसगा आजीवियोवासगा भवंति। (रामणोवारायस्सणं ति) तृतीयार्थत्वात्षष्ट्याः, श्रमणोपास केनेत्यर्थः / सम्बन्धमात्रविवक्षया वा षष्ठीयम्। (पुत्वामेव त्ति) प्राक्कालमेव सम्यग्त्वप्रतिपतिसमनन्तरमेवेत्यर्थः / ( अपञ्चवखाए त्ति) प्रत्याख्यातो भवति, तदा देशविरतिपरिणाभरयाजातत्वात्। ततश्च- (से णं ति) स श्रमणोपासकः पश्चात्प्राणातिपातविरतिकाले (पच्चाइक्खमाणे त्ति) प्रत्याचक्षाणः प्राणातिपातमिति गम्यते, किं करोतीति प्रश्नः / वाचनान्तरे तु"अपच्चक्खाए'' इत्यस्य स्थाने- "पच्चक्खाए त्ति'' ''पचाइक्खमाणे" इत्यस्य च स्थाने- “पचक्खावेमाणे त्ति" दृश्यते।तत्र च प्रत्याख्यातः स्वयमेव, प्रत्याख्यापर्यैश्च गुरुणा हेतुका प्राणातिपातप्रत्याख्यानं गुरुणाऽऽत्मानं ग्राहयन्नित्यर्थ इति / (तीतमित्यादि) अतीतमतीतकालकृतं प्राणातिपातं प्रतिक्रामति, ततो निन्दाद्वारेण निवर्तत इत्यर्थः।(पडुप्पन्नं ति) / प्रत्युत्पन्नं वर्तमानकालीनं प्राणातिपात संवृणोति, न करोतीत्यर्थः। अनागतं भविष्यत्कालविषयं प्रत्याख्याति, न करिष्यामीत्यादि-प्रतिजागीते / (तिविहं तिविहेणमित्यादि) इह च नव विकल्पाः / तत्र गाथा- "तिनि तिया तिन्नि दुया, तिन्नि य एक हवति जोगेसु। ति दुएकति दु एकं, तिदु एक चेव करणाई।।१।।" एतेषु च विकल्पेष्वेकादश विकल्पा लभ्यन्ते। आह च-"एकोतिण्णि य तियगादी नवगा तह य तिण्णि नव य। भंगनवगस्स एवं, भंगा एगूणपन्नास // 1 // " स्थापना। तत्र - (तिविहं ति विहेणंति) त्रिविधं त्रिप्रकार करणकारणानुमतिभेदात प्राणातिपातयोगमिति गम्यते, त्रिविधेन मनोवचनकायलक्षणेन करणेन प्रतिक्रामति, ततो निन्दनेन विरमति। (तिविहं दुविहेणं ति) त्रिविधं करणाऽऽदिभेदात्, द्विविधन करणेन मनःप्रभृतीनामेकतरवर्जितद्वयेन। (तिविह एगविहेणं ति) त्रिविधतस्यैव एकविधेनमनःप्रभृतीनामेकतमेन करणेनेति / (दुविहं तिविहेणं ति) द्विविधं कृताऽऽदीनामन्यतमद्वयरुपं योग त्रिविधेन मनःप्रभृतिकरणेन / एवमन्येऽपि / (तिविह तिविहण पडिक्कममाणे इत्यादि) न करोति न स्वयं विद्धात्यतीकाले प्राणातिपात मनसा हा हतोऽहं, येन मया तदाऽसौ न, हत इत्येव मनुध्यानात, तथा न नैव कारयति मनसैव यथा-हान युक्तं कृतं यदसौ परेण न घातित इति चिन्तनात, तथा कुर्वन्तं विदधानमुपलक्षणत्वात्कारयन्तं वा समनुजानन्तं वा परमात्मानं व प्रोणातिपातं नानुजानाति नानुमोदयति, मनसैव वधानुरमरणेन तदनुमोदनात्। एवं न करोति, न कारयति, कुर्वन्त नानुजानाति वचसा, तथाविधवचनप्रवर्तनात् / एवं न करोति, न कारयति, कुर्वन्तं नानुजानाति कायेन / तथाविधाङ्गविकारकरणादिति /