________________ पुहवीचंद 1067- अभिधानराजेन्द्रः - भाग-५ पुहवीचंद रइगेहगओ उचिय - हाणासीणो भणइ एवं / / 24 // इह भोगा विसमिय मुह-महुरा परिणामदारुणविवागा। सिवनयरमहागोउर -निविडकवाडोवमा भोगा / / 25 / / भोगा सुतिवखबहुदु-वखलक्खदवहुयबहिंधणसमाणा। धम्मदुमउम्मूलक्षण-समीरलहरीसमा भोगा / / 26 / / किंचज भुत्तमणाइभवे, जीवेणाहारभूसणाईय। एगत्थ पुंजियं तं, अहरेइ धरुधरं धरणिं // 27 // पीयाइँ जाइँ सुमणो-रमाइँ पाणाइँ पाणिणे पुव्यिं / विजति ताइ न ह तत्ति-याइ सलिलाइ जलहीस् // 28 // पुप्फाणि फलाणि दला-णि जाणि भुत्ताणि पाणिणा पुव्यि। विनंति न तिहुयणतरु- गणेसु किर वट्टमाणेसु॥२६॥ अवियभुत्तूणं सुइसुंदरे सुरवहूसंदोहदेहाइए, भोए सायरपल्लमाणमणहे देवत्तणे जं नरो। रजतिथिकलेवरेसुअसुईपुन्नेसु रिहोवमा, मन्ने तित्तिकरा जियाण न चिरं भुत्ता वि भोगा तओ // 30 // तापडिबुज्झह बुज्झाह, मह भोगपरव्वसं मणं काउं। दुत्तरअणोरभवजल-निहिम्मि परिभमह दुक्खत्ता // 31 // इय सोउ कुमरवयणं, ताउ पबुद्धाउ निवइधूयाओ। विसयविरत्तमणाओ, कयंजलीओ भणंति इमं // 32 / / सामिय! अवितहमेय, ज तुमएजंपियं परं कहसु। को परिहरणोवाओ, विसयाण कहेइ तो कुमरो॥३३॥ सुहगुरागिराइ अकलं-कचरणआसेवणं तओ जाओ। पभणति सामि! अम्हे, दिक्खाए लहुवि सजेसु॥३४।। तुह घरिणीसद्देणं, वयं कयत्था उ अज जायाओ। संपइ पुण गिहवासे, न खणं पिरइं लहेमु त्ति॥३५|| तुह्रो भणइ कुमारो, जुत्तमिणं तुम्ह य विवेयाणं / किं तु समाहिजुयाओ, गुरुआगमण पडिवखेह॥३६।। समए वयमवि एवं, कहामो ताउजं पवनंति। परियणमुहाउ एयं, हरिसीहनिवेण विन्नायं // 37 // तो तेण चिंतियमिणं, वसीकओ नेव एस महिलाहि। नवरं इनिणा चरण जयाउ एयाउ विहियाओ॥३८|| तो ससिणेहं पभणिय, इम निउंजेमि रजदंडम्मि। जंतव्वाउलयाए, वीसारइ धम्मवत्तं पि॥३६॥ इय निच्छिय तेणुत्तो, कुमारो बहुरजगहणविसपम्मि। पडिकूलिउमवयंतो, पिउवयणं सो सुदविखन्नो // 40 // चिंतइ अहो विरुद्धं, रजग्गहणं तवुजुयमईणं। सागरगमणमणाणं, हिमवंताभिमुहगमणं व // 41 / / निबंधो पुण पिउणो, लक्खिज्जइ गुरुतरो इहऽत्थम्मि। दुप्पडियारा गुरुणो, न लंधियव्वा सयन्नेहिं / / 4 / / संभाविज्जइपच्छा, विपत्थणा एरिसी किर इमस्स। धम्मायरियाऽऽगमणं, पडिक्खियव्वं मए विधुवं / / 43|| ता परमपीइपउणं, पिउणो वयणं करेमि अहमिहि। इय चिंतिय पडिवज्जइ, कुमरो निवसासणं सिरसा / / 44 / / तो पहुविचंदकुमर, अनेससामंतमंतिसंजुत्तो। अभिसिंचिय रजभरे, कयकिचो नरवई जाओ॥४५|| नरराया पुण तीए रायसिरीए न रंजिओ कि पि। कुणइ तहा वि पवित्ति, उचियं जणयाणुरोहेणं // 46 // रजं वसणविरहिय, विहियं मुकाउ सयलगुत्तीओ। घुद्यो य अमोघाओ, सयले नियमंडले तेण // 47 // पाय अन्नो विजणो, विहिओ जिणसासणम्मि अइभत्तो। सचं च वयणमेयं, जह राया तह पया होइ॥४८|| कइया वि सभाऽऽसीणो, स वित्तिणा पणिओ जहा देव ! / तुह दसणं समीहइ, देसंतवाणिओ सुधणो / / 46 / / मुंचसु इय निवभणिए, सो मुक्को वित्तिणा तओ सुधणो। नभिऊण पुहइनाह, उचियठ्ठाणम्मि आसीणो // 50 // रना भणियं भो सि-द्वि! कहस कत्तो समागओऽसि इहं?1 भमिरेण महिं कत्थ वि, किं दिटुं अच्छरिखं च ? // 51 / / सिट्ठी विआह सामिय! गयपुरनगराउ आगओऽम्हि इह। भुवणजणविम्हयकरं, अच्छरिय पुण इमं दिटुं॥५२॥ तथाहिआसिह गयपुरनयरे,बहुरयणो रयणसंचओ सिट्ठी। भज्जा सुमंगला से, पुत्तो गुणसायरो नाम / / 53|| अहरयणसंचएण,पसरियनवजुव्वणस्सतस्स कए। अट्ठएह नयरसिट्ठी-ण अट्ट धूयाउवरियाओ॥५४|| अन्नदिणे ओलोयण-द्विएण गुणसायरेण रायपहे। भिवखत्थं पुरभज्झे, पविसंतो मुणिवरो दिह्रो / / 5 / / कत्थ वि एरिसरूव, पुरा वि मे पिच्छिय ति चिंतंतो। परिपालियचरणभरं, पुष्वभवं संभरइ सो उ।।५६।। अइनिबंधेण तओ, वयगहणकए स पुच्छए पिउणो। रुयमाणी दीणमणा, से जणणी भणइ तो एयं / / 57 / / जइ वितुह वच्छ! चित्तं, खणं पिन रई गिहे कुणइ राह वि। नवपरिणीयनियमुहदं-सणेण रंजेसु णे हिययं / / 5 / / तयणव्वयगहणविसए, तहऽतरायं न कि पिकाहामो। इय जणणीए वयण, तह त्ति पड़ियणए सो वि / / 5 / / वेवाहियसिट्ठीणं, कहावियं रयणसंचरण इमं / परिणयणाणतरमे-य महसओ गिणिहही दिवखं / / 6 / / तं सोउ ते वाउल-हियया मंतति किं पिता धूया। जपति किमिह ताया ! कन्ना दिजति वारदुर्ग // 61 / / से च्चिय भत्ता जं सो, करिस्सए तं वयं पिकाहामो। तेणं अपरिणीया, न करिस्सामो वरं अवरं / / 6 / / इय सोउ पुत्तिवयणं, ते सव्ये सिट्ठिणो पहिट्ठमणा। गुणसायरेण कारं-ति पाणिगहणं नियसुयाणं // 63|| गिजंतबहलधबले, वीवाहमहेपयद्रमाणम्मि। कयसयलजणक्खेवे, पुरओ नट्टम्मि यदृते / / 64|| गुणसायरो विनासा-निहियच्छो रुद्धइंदियवियारो। चिंतइ एगगमणो, समणो होहं सुए अहयं / / 6 / / एवं तवं करिस्सं, एवं हंगरूण विणयभरं। इय संजमे जइस्सं, इय झाइस्सं सुहज्झाणं॥६६|| इय चिंतंतो निहुयं, सुमरंतो पुव्यभवसुयरहस्सं। उल्लसियसियज्झाणो, संपत्तो केवलं नाणं // 67 / / ताओ विनवबहूओ, तह निचललोयणं तमेगग्ग। पेहंति पहिट्ठाओ, लज्जाभुउलिंतनयणाओ॥६८|| चिंतति अहो धन्नो, उवसमलच्छीइ रंजिओ धणियं / अम्हासु कह रज्जइ, सञ्जो सावज्जभरियास॥६६॥ वयमवि सुपुन्नपुन्ना, जलदो एस सुगुणधणअटो। सिवनयरसत्थवाहो, भवरनविलंघणसमत्थो / / 7 / / एयाणुमग्गलग्गा, सम्मं धम्म सुनिम्मलं चरिउं। काहामो भूरिभबु-भवाण दुक्खाण वुच्छेयं / / 71 / /