________________ कयण्णू 348 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 3 कयण्णू बहु मन्नइ धम्मगुरु, परमुवयारित्ति तत्तबुद्धीए। ततो गुणो णु बुड्डी, गुणारिहो तेणिह कयन्नू // 26|| बहु मन्यते सगौरवं पश्यतिधर्मगुरुं धर्मदातारमाचार्यादिकं परमोवकरी ममायमुद्धृतोऽहमनेनाकारणवत्सले नातिघारसंसार कुपकुहरे निपतन्नियेवंप्रकारतथा तत्वबुद्ध्या परमार्थसारमत्या स हि भावयत्येवं परमागमवाक्यम्।"तिण्हं दुप्पडियारसमणाउसो तंजहा अभ्मापिऊणं 1 भट्टिरस 2 धम्मायरियस्सस 3 तत्थ सयंपाओ वि य णं केइ पुरिसे अम्मापियरंसयपागसहस्सगेहिं तिल्लेहिं अज्झंगित्ता सुरहिणा गंधोदएणं उव्यट्टित्ता तेहिं उदगेहिं मजावित्ता सव्वालंकारविभूसियं करित्ता मणुन्नं थालीपागसुद्धं अट्टारसवंजणाउलं भायणं भेण्यावित्ता जाव जीवं पिट्ठिवमिसयाए परिवहिजा तेणा वि तस्स अम्मापिउस्स दुप्पमियार हवइ / अहणं से तं अम्मापियर केवलिपन्नत्ते धम्मे आघवइत्ता पन्नवइत्ता परूवित्ता ठावित्ता भवइ। तेणामेव अम्मापिउस्स सुपडियारं भवइ 1 समणाउसो ! केइ महचे दरिद समुक्कसिज्जा तए ण से दरिदे समुक्किटे समाणे पच्छा पुरं चणं विपुलमइसमन्नागएयावि विहरिजातएणसेमहव्वए अन्नया कयाइदरिबी हूए समाणे तस्सदलिद्दस्स अंतियं हव्वमागच्छिज्जा। तए णं से दरिद्दे तस्स भट्टिस्स सव्वस्समवि दलइज्जा तेण वि तस्स दुप्पडियार हवइ / अह णं से तं भट्टि केवलिपन्नत्ते धम्मे आघवइत्ता पन्नवइत्तापरूवित्ता ठावइत्ता भवति। तएणं से तस्स भट्टिरस सुपडियारं भवइश केइ तहारूवस्स समणस्स वा माहणस वा अंतियं एगमवि आरियं धम्मियं सुवयण सुचा निसम्मकालमासे कालं किया अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववन्न / तएणं से देवे तं धम्मायरियं दुब्भिक्खाओ वा देसाओ सुभिक्खं देसं साहरिजा कंताराओ वा निकतारं दीहकालिएण वा रोगायकेण अभिभूयं विमोइजा / तेण वि तस्स धम्मायरियस्स दुप्पडियारं हवइ। अहणं से तं धम्मायरियं केवलिपन्नते धम्मे आघवइत्ता पन्नवइत्ता परूवित्ता ठवित्ता भवइ / तए णं तस्स धम्मायरियस्स सुप्पडियारं हवइ त्ति / वाचकमुख्येनाप्युक्तम् "दुष्प्रतिकारौ मातापितरौ स्वामी गुरूश्च लोकेऽस्मिन् / तत्र गुरुरिहामुत्र च,सुदुष्करतरः प्रतीकारः" इति। ततस्तस्मात्कृतज्ञताभावजनितगराबहुमानात गुणानां क्षान्त्यादीनां ज्ञानादीनां वा वृद्धिर्भवतीति गम्यते / गुणार्यो गुणप्रतिपत्तियोग्यस्तेन कारणेनेहधर्माधिकारविचारे कृतज्ञ उक्तशक्तार्थो धवलराजतनूजविमलकुमारवत्। तचरितं पुनरिदम्। पुरमत्थि वद्धमाणं, सुबद्धमाणं सिरीहि पउराहिं। बहुविहमहल्लकल्लाण, कारणं यद्धमाणं व // 1 // रसभवसनमिरनिवनिवह, भसलसेविजमाणकमकमलो। रजभरधरणधवलो, धवलो नामेण तत्थ निवो / / 2 / / सययं सुहासिणी सुमणसंगण किं तु अइसयकुलीणा। देवी इव देवीकमल सुंदरी नाम तस्सस्थि॥३॥ नीसेसकलाकुसलो, सरुव्वसरलो विमुक्ककलिलमलो। ताणं तणओ विमलो, कयन्नुया हंसवरकमलो // 4 // किर सामदेवसिहिस्स, नंदणो बहुलियाइ कुलभवणं / जाओ य वामदेवु त्ति, तस्स मित्तं महामइणो॥५॥ कइया वि कीलणकए, अन्नन्नं कीलियव्व नेहेण। कीलानंदणनामे, उजाणे दो वि ते पत्ता // 6 // तत्थ नरमिहुणपयपं तिमुत्तमं वालुयागयं दटुं। तणुलक्खणनिउणमई, मित्तं पड़ जंपए विमलो / / 7 / / जाण इमा पयपती, चक्ककुसकमलकलसकयसोहा। दीसइ खेयरसामाहिं, तेहिं वरमित्तभवियव्वं / / 8 / / तयणु घणकोउगेणं, पुरओ गंतु लयगिहस्संते। आसीणं तं मिहुणं, नियंतितेपरमसुंदेरं / / 6 / / इत्तो य दुवे पुरिसा, कट्ठियकरवालभीसणकरग्गा। हण हण हणत्ति भणिए, दयागिहस्सुवरि संपत्ता // 10 // एगेण ताण वुत्तं, रे रे निल्लज्ज होसुतं पुरिसो। सुमरेसु इट्ट देवं, कुणसु सुदिष्ठ व जियलोयं|११|| तं सुणिय पुरियगुरुको वपसरमिसमिसंतअहरदलो। वल्लिगियमज्झिमनरो, विणिग्गओ खग्गवग्गकरो॥१२॥ तो मुक्काहबहुअसि, खमक्कसंभंतखेयरीविंद। जायं तेसिं गयणं, गणम्मि अइदारुणं जुज्झं।।१३।। जो पुण वीओ पुरिसो, लयागिहं सो पविट्चमहिलसइ। तत्तो मिहुणनरित्थी, भयकंपंता विणिक्खंता // 14 // दुटुं च भणइ विमलं, पुरिसुत्तम ! रक्ख रक्ख मं भीयं / सो आह हो सुभद्दे, वीसत्था नत्थि तुज्झ भयं / / 15|| इत्तो तग्गहणत्थं, पत्तो सो खेयरो गयणमग्गे। विमलगुणतुट्टवणदेवयाए इहत्थंभिओ सहसा॥१६|| सो वि यनुज्झंतनरो, विजिओ मिहुणगनरेण य पलाणो। तप्पुट्ठीए लग्गा,जियकासी मिहुणगो सो वि।।१७।। भभियनरेण दिह्रो, संजाया तयणुतस्स गमणिच्छा। तं नाउं देवीए, झमित्ति उत्तंभिओ सो उ॥१८॥ लग्गो य तेसि पिटे, त्तिविनि पत्ता अदंसणपहम्मि। अह वाला रयइ हहा, मं मुत्तुं नाह ! कत्थ गओ॥१६॥ इत्थंतरम्मि जयलच्छि, परिगओ आगओ मिहुणपुरिसो। जाया यहठ्ठतुट्ठा, सा वाला अमयसित्त व्व // 20 // सो नमिय भणइ विमलं, तं चिय बंधू नुमेव कह मित्तं / जं एसा मज्झ पिया, हीरंती रक्खिया धीर ! // 21 // विमलो वि भणेइ आतं, कयन्नु सिररयणसंभमेण इह। किं तु इमं वुत्तत्तं, कहेसु एसो वि इय भणई // 22 // अत्थिह वेयवगिरि दसंठिए रयणसंचए नयरे। राया मणिरहनामो, कणयसिहा भारिया तस्स / / 23 / / ताणं च अस्थि पुत्तो, विणयपरो रयणसेहरो नाम। धूया उ दुन्नि पवरा, रयणसिहा मणिसिहा य तहा / / 24 / / रयणसिहा ससिणेहं, परिणीया मेहनायखयरेणं। तेसिं च अहं पुत्तो, नामेणं रयणचूमुत्ति // 25 // अमियप्पहखयरेणं, परिणीया मणिसिहा उतेसिं पि। संजाया दुन्नि सुया, अचलो चवलो य पवलबला // 26 // तह रयणसेहरस्स वि, रइकंता नामियाइ दइयाए। जाया एसा किर चूय मंजरी बल्लहा धूया / / 27 / / सव्वेहि वि वालत्ते, सह पंसुक्कीलिएहि अम्हेहिं। गहिया उ नियकुलक्कम समागयाओ य विज्जाओ॥२८॥ चंदणभिहाणनियमित्त सिद्धपुत्तस्स संगमवसेण। जाओ मह माउलओ, अचंतं जइणधम्मरओ॥२६॥ तेणं महासएणं, जणणी जणयो य मज्झ अहयं च। कहिऊणं जिणधम्म, गिहिधम्मधुरंधरा विहिया // 30 //