________________ चारुदत्त 1177- अभिधानराजेन्द्रः - भाग 3 चारुवण्ण पत्तो जमुणादीवं, तस्स पुरेसुं गमागमेणं च। अज्जेइ चारुदत्तो, कहमवि कणगऽट्ठकोडीओ।।१८|| अह तस्स निययदेसा-भिमुहं इंतस्स पवहणं फुटुं / तो फलगगओ सत्तहिं, दिणेहिं किच्छेण उत्तिन्नो / / 16 / / उव्वरवइवेलतमे, पत्तो रायपुरवाहिरुजाणे। तत्थ तिदंडी दिणकर-पहनामो तस्स संमिलिओ।।२०।। तेणं सह सो पत्तो, रसहेउं पव्वयस्स कूवीए। मंचीऍ ठिओ तुंबय-सहिओ रज्जूएँ ओइन्नो // 21 // ता केण वि भणियमियं, को सि तुमं तयणु तेण इय वुत्तं / वणिओ मि चारुदत्तो, तिदंडिएणित्थ पक्खित्तो // 22 // सो भणइ पुणो वणिओ, इमिणा खिविओ पि इत्थ मे देहो। अद्धो रसेण खरो, तुम पिता इत्थ मा विससु / / 23 / / इय भणिऊणं तेणं, समप्पियं तस्स भरियरसतुंबं / रज्जूएँ कापियाए, तिदंडिणा करिसिओ सो उ॥२४|| मग्गइ रसतुंबं तं, नो तारइ तेण तो रसो चत्तो। अह लिंबगणा स खित्तो, पडिओ रसकूवियाएँ तमे / / 25 / / तो वणिणा सो दुत्तो, गोहापुच्छेण उत्तरिज्जासु / एवमिमो उत्तरिओ, सुमिरंतो पंचनवकारं // 26 // जा गिरिकुहराउ बहि, निक्खंतो ताव धाविओ महिसो। तो सो सिलाएँ उवरि, आरूढो जाव चिट्ठइ२७॥ ता निग्गओ अयगरो, तेसिं जुज्झंतयाण सो नहो। मिलिओ माउलपुत्तो, अहन्नया रुद्ददत्तो सो॥२५|| भंडं अलत्तयाई, घित्तुं चलिया सुवन्नमूमुवरिं। तरिउं वेगवइनइं, गिरिकूमे ते गया दो वि // 26 // तो चित्तवणे तत्तो,टंकणदेसम्मि तत्थ दो मेसा। किणिउं तेसुं चडिउं, पंथो अइलंघिओ बहुओ // 30 // रुद्देण तओ वुत्तं, अओ परं नत्थि भूमि चारु त्ति। तो मेसे मारेउं, उच्छल्लेउंच पविसामो // 31 // तो पललब्भंतीए, भारुडविहंगमेहिं उक्खित्ता। वचिस्सामो अम्हे, सुवनभूमि सुहेणावि।।३२।। अह तेणुत्तो हो, जेहिं उत्तारिया विसमभूमि। ते मेसे कह हणिमो, हियजणए परमबंधु ध्व ? // 33 // रुद्दो भणइ न एसिं, तं सामी तेण मारिओ मेसो। निहओ वीओ य पुणो, तरलच्छो नियइ भाणुसुयं // 34 // तो वुत्तो तेण इम, ताउमसत्तो तुमं किमु करेमि? | जिणधम्म पडिवजसु, सरणं विहुरे वि बंधुसमं // 35|| दिनो नवकारो त-स्स चारुदत्तेण, अह हओ छगलो। रुद्देण, तओ दुन्नि वि, तब्भत्थासुं पविट्ठा ते // 36 / / छुरियाहत्या विहगे-हि उहिआएगआमिसत्थीणं। तेसिं जुज्झंताणं, माणुसुओ सरवरे पडिओ // 37|| छुरियाएँ छित्तु भत्थं, निस्सरिऊणं गओ नगं एगं / दिट्ठो तत्थुस्सग्गे, ठिओ मुणी वंदिओ तेण // 38|| पारियकाउसग्गो, भणइ मुणी धम्मलाभ मह दाउं। कहमित्थ भूमिगोयर-अविसयसेले तुमं पत्तो // 36 / / खयरोऽहं अमियगई, तइया तुमए विमोइओ पत्तो। अट्ठावयगिरिपासे, मंद8 सो अरीनट्ठो॥४०|| ता हं नियमज्जं गि-णिहऊण सिवमंदिरम्मि संपत्तो। रज्जे मंठविऊणं, भज्झ पिया गिण्हए दिक्खं / / 4 / / पुत्तो मे सीहजसो, पत्तीऍ भणोरमाएँ संजाओ। बीओ वराहगीवो, मम तुल्ला विक्कमबलेहि।।४२|| गंधव्वसेणधूया, तह जाया विजयसेणपत्तीए। रजं जुवरज्जमहं, दाउं पुत्ताण पव्वइओ॥४३॥ ककोमगसेलोऽयं, लवणजले कुंभकंठगे दीवे / अहमित्थ तवेमि तवं, तुमं पि साहसु नियमबंधं // 44|| सिट्ठिसुएणा वि सव्वो, नियवुत्तंतो मुणिस्स तो कहिओ। अह साहुसुया ते दो, पत्ता तेहिं मुणी नमिओ।।४५|| भणिया ते वरमुणिणा, पुत्ता सो एस चारुदत्तु त्ति। इत्थंतरे महिड्डी, तत्थेगो आगओ तिवसो // 46|| तेण नओ सो पढम, पच्छा साहू तओ य खयरेहिं। पुट्ठो साहइ देवो, हेउं वंदणविवजासे // 47|| तथाहिसुलसा तह य सुभद्दा, ससाउ चरियाउ आसि कासीसु। वेयंगपारगाओ, तीहि जिया वाइणो बहवे // 48|| अह जण्णवायपरिवा-यगेण सुलसा जिया कया दासी। वहुसो संसग्गीए, तेण य तीए सुओ जाओ ||4|| लोगोवहासभीया-णि ताणि तं मुत्तु पिप्पलस्स अहे। नट्ठाणि सुभद्दाए, दिट्ठो मुहपडियपिंपो सो // 50 // कयपिप्पलायनामो, तीए संवडिओ गहियविज्जो। पियमायमहपमुह, जन्ने पन्नविय ते हणइ (151 / / तस्स विणेओ वड्डलि-नामाऽहं पसुवहाइ बहु जन्ने। काउं नरयम्मि गओ, पंचभवे तो पसू जाओ।॥५२॥ हणिओ दिएहिं जन्ने, छट्ठभवेऽणेण दित्तणवकारो। सोहम्मे उववन्नो, तो पुव्वमिमो मए नमिओ।।५३।। इय भणिय चारुदत्तं, नमिउंच गओ सुरो सट्ठाणम्मि। खयरेहि तेहि सो पुण, नीओ सिवमंदिरे नयरे // 54 // सकारिओ य संमा-णिओ य अइगरुयगउरवेण तहिं। खयरेहि तेहि सद्धिं जा चलिओ नियपुरीसमुहं / / 5 / / ता तत्थ सुरवरो सो, पत्तो तबिहियवरविणम्मि। आरूढो सिद्विसुओ, समागओ झत्ति चंपाए।।५६|| बहुयाउ कणयकोडी-उ दाउमह सो सुरो गओ सग्गं / नभिऊण चारुदत्तं,खयरा वि गया सठाणम्मि॥५७।। सव्वट्ठमाउलो तह, मित्तवई सा वसंतसेणा य। सवे वि तस्स मिलिया, फुरिया विमला तहा कित्ती / / 58|| अह सो अत्थमणत्थि-कमंदिरं जाणिउं विसुद्धमणो। परिगहपरिमाणजुअं,गुरुमूले लेइ गिहिधर्म // 56|| जहजुग्गं नियदव्वं, सव्वं वविऊण सत्तखित्तेसु। मुच्छामच्छरचत्तो, स चारुदत्तो गओ सुगई॥६०।। एवं ज्ञात्वा चारुदत्तस्य वृत्तं, नित्यं शिष्टाः ! सुष्टु संतुष्टिपुष्टीः / अर्थे ऽनर्थक्लेशसंबन्धबद्धे, धर्मक्षोभं मा स्म धत्त प्रलोभम् // 61 / / घ०र०। चारुपाणि त्रि० (चारुपाणि) / चारु प्रहरणविशेषः पाणी येषां ते चारुपाणयः। करेण चारुनामकप्रहरणधारके, जी०१ प्रति०। रा०| चारुपेहिणी स्त्री० (चारुपेक्षणी)। चारु प्रेक्षितुमवलोकितुं शीलमस्या। श्चारुप्रेक्षिणी। अधोदृष्टितादिदोषादुष्टायाम, उत्त०१० सुन्दरावलोकनाया, सुन्दरनयनायां वा। उत्त०२२ अ०1 चारुरूव त्रि० (चारुरूव)। मनोहररूपे, कल्प०३ क्षण। चारुवण्ण त्रि० (चारुवर्ण)। सत्कीर्ती, शौर्यादिशरीरवर्णयुक्ते, औ०॥ खयरामस्थ भूमिगार मणइ मुणवदिओ