________________ गोयरचरिया 666 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 3 गोयरचरिया खाइमं वा साइमं वा पडिगाहेइ, पडिगाहंतं वा साइजइ // 16 // जे भिक्खू णावाउ जलगयस्स असणं वा वा०४ पडिगाहेइ, पडिगाहंतं वा साइज्जइ / / 20 / / जे भिक्खू णावाउ पंकगयस्स असणं वा०४ पडिगाहेइ,पडिगाहंतं वा साइज्जइ / / 21 / / जे भिक्खू णावाउ थलगयस्स असणं वा०४ पडिगाहेइ,पडिगाहंतं वासाइजइ।।२। जे भिक्खू जलगओ णावागयस्स असणं वा०४ पडिगाहेइ,पडिगाहंतं वा साइज्जइ // 23 / / जे भिक्खू जलगओ जलगयस्स असणं वा०४ पडिगाहेइ,पडिगाहंतं वा साइजइ ||24|| जे भिक्खू जलगओ पंकगयस्स असणं वा०४ पडिगाहेइ,पडिगाहंतं वा साइज्जइ // 25|| जे भिक्खू जलगओ थलगयस्स असणं वा०४ पडिगाहेइ,पडिगाहंतं वा साइजइ ||26|| जे भिक्खू पंकगओ णावागयस्स असणं वा०४ पडिगाहेइ,पडिगाहंतं वा साइज्जइ // 27 // जे भिक्खू (पंकगओ) पंकगयस्स असणं वा०४ पडिगाहेइ,पडिगाहंतं वा साइज्जइ ||28|| जे मिक्खू पंकगओ जलगयस्स असणं वा०४ पडिगाहेइ,पडिगाहंतं वा साइजइ / / 29 // जे भिक्खू पंकगओ थलगयस्स असणं वा०४ पडिगाहेइ,पडिगाहंतं वा साइजइ // 30 // जे भिक्खू थलगओ णावागयस्स असणं वा०४ पडिगाहेइ,पडिगाहंतं वा साइज्जइ॥३१।। जे भिक्खू थलगओ जलगयस्स असणं वा०४ पडिगाहेइ,पडिगाहंतं वा साइजइ // 32 // जे भिक्खू थलगओ पंकगयस्स असणं वा०४ पडिगाहेइ,पडिगाहंतं वा साइज्जइ // 33 // जे भिक्खू थलगओ थलगयस्स असणं वा०४ पडिगाहेइ,पडिगाहंतं वा साइजइ॥३४|| गाहाणावेजले पंकें थले, संजोगा तत्थ होंति णायव्वा / तत्थ गएणं एको, गमणाऽऽगमणेण वितिओ उ||२८|| णावागतो भिक्खू णावागयस्सेव दायगस्स हत्थातो असणादीहिं पडिगाहेति, तस्स चउलहुँ। अण्णेसुतिसुभगेसु भिक्खूणावागतो चेव, दायगा जलपंकथलगता, एतेसु चउरो भंगा / अन्नेसु चउभंगेसु भिक्खू जलगतो, दायगा णावाजलपंकथलगता / अण्णेसु चउसु भिक्खू पंकगओ, दायगा णावाजलपंकथलगता / अण्णेसु चउसु भिक्खू थलगतो, दायगा णावाजलपंकथलगता। एते सव्वे सोलससु वि पत्तेयं चउलहुं, णावगते दायगे पडिसेहो। एतेसुणावजलपंकथलपदेसु ठितो भिक्खू दायगस्स सट्टाणपरट्ठाणसंजोगेण ठियस्स हत्थाओ गेण्हतस्स दुगसंजोगाऽभिलावं अमुंचतेण सोलस भंगा कायव्या, पूर्ववत्। तत्थ कर्म दरिसेइ-(तत्थ गएणं एको ति) णावारूढोणावागयस्स हत्थातो गेण्हति, एस पढमभंगो, णावागतो जलगयस्स इच्छदायगस्स आगच्छमाणस्स जलवियस्स हत्थातो गेण्हति, एवं पंकथले सु वि गमणागमणेण ततियचउत्थभंगा। एवं सेसभंगा विवारस उवउज्ज भाणियव्या। गाहा एत्तो एगतरेण, संजोगेणं तु जो उ पडिगाहे। सो आणा अणवत्थं, मिच्छत्तविराहणं पावे // 26 // कण्ठ्या / सोलसमभंगो-थलगओ थलगतस्स समुदस्स अंतरदीवे संभवति। सा पुढवी सचित्ता, मीसा वा, ससणिद्धा वा, तेण पडिसिज्झति। इमं वितियपदंअसिवे ओमोयरिए, रायडुढे भए व गेलण्णे। अद्धाणरोहए वा, जयणा गहणं तु गीयत्था // 30 // जयणा पणगपरिहाणी, मीसपरंपरहितादि वा जयणा, भाणियव्या / नि०चू०१८ उ० (४४)तण्डुलप्रलम्बादिसे भिक्खू वा मिक्खुणी वा से जं पुण जाणेजा-पिहुयं वा बहुरयं वा० जाव चाउलपलंबं वा असंजए भिक्खुपडियाए चित्तमंताए सिलाए० जाव मक्कडसंताणाए कोट्टेसु वा, कोर्टेति वा, कोट्टेस्संति वा, उप्पिणिंसुवा, उप्पिणिंति वा, उप्पिणिस्संति वा, तहप्पगारं पिहुं वा० जाव चाउलपलंबं वा अफासुयं० जाव णो पडिगाहेजा।। "से भिक्खू वा" इत्यादि। स भिक्षुर्भिक्षार्थ गृहपतिकुलं प्रविष्टः सन् यदिपुनरेव विजानीयात्। तद्यथा-पृथुकं शाल्यादिलाजान (बहुरयं ति) बहुकम् (चाउलपलंबं ति) अर्द्धपक्वशाल्यादिकणादिकमित्यवमादिकमसंयतो गृहस्थोभिक्षु प्रतिज्ञया भिक्षुमुद्दिश्य चित्तमत्यां शिलायां तथा सबीजायां सहरितायां साण्डायां यावन्मर्कटसन्तानोपेतायामकुट्टिषुः कुट्टितवन्तः, तथा कुट्टन्ति, कुट्टिष्यन्ति वा। एकवचनाधिकारेऽपि च्छान्दसत्वात् तद्व्यत्ययेन बहुवचनं द्रष्टव्यम्। पूर्वत्र वा जातावेकवचनम्, तत्र पृथुकादिकं सचित्तं वाऽचित्तमत्यां शिलायां कुट्टयित्वा (उप्पिणिंसु त्ति) साध्वर्थ वा तावद्दत्तवन्तो, ददति, दास्यन्ति वा, तदेवं तथाप्रकारं पृथुकादि ज्ञात्वा लाभे सति नो प्रतिगृह्णीयादिति / आचा०२ श्रु०१ अ०६ उ०॥ से भिक्खू वा भिक्खुणीवा०जाव समाणे से जं पुण जाणेज्जाअसणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अगणिणिक्खित्तं तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अफासुयं० जाव लाभे संते णो पडिगाहेजा, केवली वूया-आयाणमेतं असंजए भिक्खुपडियाए उस्सिंचमाणे वा निस्सिचमाणे वा आमज्जमाणे वा पमन्जमाणे वा उत्तारेमाणे वा उप्पण्णेमाणे वा अगणिजीवे हिंसेज्जा वा, अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा एस हेतू एस कारणं एसुवएसो जं तहप्पगारं असणं वा पाणं खाइमं वा साइमं वा अगणिणिक्खित्तं अफासुयं अणेसणिज्जं लाभे संते णोपडिगाहेजा। ''से भिक्खू वेत्यादि / " स भिक्षुर्गृहपतिकुलं प्रविष्टश्चतु विधमप्याहारममावुपरि निक्षिप्तं तथाप्रकारं ज्वालासंबद्धं लाभे