________________ आलोयणा 433 अभिधानराजेन्द्रः भाग 2 आलोयणा गुरुस्सावि विहीपुव्वं, खामणमरिसामणं करे / / 3 / / खमातु गुरुं सम्म, नाणमहिमं स सात्तिओ // काऊणं वंदिऊणं च, विहिपुटवेण पुणोवि य 64|| परमच्छतत्तसारच्छं, सल्लुद्धरणमिमं सुणे / / सुणेज्जा तहमालोए, जह आलोयतोचेव ||6|| उप्पाए केवलं नाणं, दिने रिसभावत्थहि निसल्ला॥ आलोयणा जेण, आलोयमाणाणंचेव उप्पन्नं तत्थकेवलं // 66|| केसिं विसोहिमो नामे, महासत्ताण गोयमा ! / जेहिं भावणा लोययं, तेहिं केवल नाणमुप्पाइयं // 67 / / हाहा दुतु कडे साहू, हाहा दुठु विचिंतिरे / हाहा दुतुभाणिरे साहु, हाहा दुटुठुमणुंमते ||8|| संवेगालोयगे तह य, भावालोयणकेवली / / पयखेव केवली चेव, मुहणांतगकेवली // 69 / / तहा पच्छित्तकेवली, सम्मं महावेरग्गकेवली // आलोयणकेवली तहय, हा हं पावित्तिकेवली 110011 उसुत्तमगं पन्नवए, हाहा अणायारकेवली // सावजं न करेमित्ति, अक्खंडिय सीलकेवली 71|| तवसंजमवयंसं, रक्खे निंदणगरहणे तहा। सव्वतो सीलसंरक्खे, कोडीपच्छित्ते वि य ||7|| निप्परिकम्मे अ कंडपणे, अणिमिसत्थी य केवली। एगपासित्तदोपहरे, मूणव्वयकेवली तहा / / 73|| न सक्कोकाउ सामन्नं, अणसणे वामि केवली / नवकारकेवली तहय, च निचालोयणकेवली // 74|| नीसल्लकेवली तह य, सल्लुद्धरणकेवली। धन्नोमितिसंपुग्नो, स ताहंपी किन्न केवली ||7|| सलल्लो हं न पारेमि, वलकट्ठपयकेवली / पक्खसुद्धा विहाणे य, चाउम्मासी य केवली / / 76|| संवच्छरमहपच्छित्ते, जहा चलजीविते तहा। अणिचे खण्णविद्धंसी, मणुपत्ते केवली तहा / / 77|| आलोयं निंदरं दियए, घोरपच्छित्तदुक्करे। लखोवभग्गपच्छित्ते, संमहिया सण केवली / / 7 / / हत्थोसरणनिवासे य, अठ्ठकवलासि केवली / एगसिद्धगपच्छित्ते, दसवासो केवली तहा 1179|| पच्छित्ताढवगोवेसु, पच्छित्तद्धकयकेवली। पच्छित्तपरिसमत्ती, य अ स उक्कोसकेवली ||7|| न सुद्धिविन पच्छित्ता, नावरं खिप्पकेवली। एग काऊण पच्छित्तं, वीयं न भवे जह चेव केवली |8| तं वा यरांम पच्छित्तं, जेण गच्छद केवली॥ तं वा यराम जेण तमं, सफली होइ केवली ||2|| किं पच्छित्तं चरंतोहं, चिठ्ठणो तवलीजिणा // ण माणंण लंघेयं पाण, परिचयणकेवली ||3|| अन्नं होही सरीरं मे, नो वोही चेव केवली // सुलद्धमिणं सरीरेणं, पाविणीदुहरणकेवली ||4|| अणाइपावकम्ममलं, निद्धोवेमीह केवली। वीयंतं न समायरियं, पमाया केवली तहा ||5|| देहे खवउ सरीरं मे, निजराभावउ केवली। सरीरस्स संजमं सारं निक्कलंकं तु केवली ||6| मणसा विखंडिए सीले, पाणेण धरामि केवली। एवं वइकायजोगेणं, सीलं रक्खे अहं केवली ||7|| एवमाई अणादीया, कालाउ णंते मुणी। केइयालोयणासिद्धे, पच्छित्ता जाइ गोयमा ! lll खंता दंता विमुत्ता य, जिइंदी सव्वभासियो / / छकायसमारंभाओ, विरत्ते तिविहे णओ // 89|| तिदंडा सवसंवरिया, इत्थिकहासंगवजिया। इत्थिणं लावनिरयाय, अंगोवंगणिरक्खणा ||10|| निम्ममत्ता सरीरेवि, अप्पडिबद्धा महायसा। भीयाइस्थित्थिगब्भवसहीणं, बहुदुक्खाओ भावओए / 91 तहा तोपरिसेणं, भावेणं दायव्वा आलोयणा / पच्छित्तं पि व कायव्वं, तहा जहा चेव एहिं कयं // 92|| न पुणो तहा आलोएयव्व, मायाडं मेण केणइ। जह आलोयणं चेव, संसार वुविभवे / / 13 / / अणंतेणाइकालाओ, अत्तकम्मेहिं दुम्मइ। बहुविकप्पल्लोले, आलोए तेवि अहोगए / / 9 / / द. प. // नहु सिज्झई स स सल्लो, जह भणियं सासणं धुयरयणा / उद्धरियसव्वसल्लो, सिज्झइ जीवो धुअकिलेसो 24 // सुबहुपि भावसल्लं, जे नालोयंति गुरुसगासंमि / निसल्लासंथारग, सुचितिआराहगा हुंति ||25|| अप्पंपि भावसल्लं, जे नालोयंति गुरुसगासंमि। वंतंपि सुयसमिद्धा, नहु ते आराहगा हुंति // 26 / / नवि ते सत्थं च विसं, च दुप्पउत्तो वि कुणइ वेयालो / जंतं च दुप्पउत्तं, सप्पुय्वपमाइओ कुद्धो // 27 // जं कुणइ भावसल्लं, अणुठ्ठियं उत्तमकालंमि // दुल्लमव्वोहियत्तं, अणंतसंसारियंतं च / / 2 / / तत्थुद्धरंति गौरव, रहिया मूलं पुणज्झवलयाणं // मिच्छादसणसल्लं, मायासल्लं नियाणसल्लं च / / 29|| मरिझं ससल्लमरणं, संसाराडविमहाकडिल्लम्मि / / सुचिरं भमंति जीवा, अणोरपारंमि ओइन्ता ||4|| व्याख्या / मृत्वा आसेव्य सशल्यमरणं प्रतीतं ततः कि मित्याह / संसाराड विमहाकडिल्ले भवारण्यगुरुगहने सुचिरमतिदीर्घकालं भ्रमंति पर्यटति जीवा देहिनः अनर्वाक् पारे