________________ 67 इस तरह ग्यारह अङ्ग, बारह उपाङ्ग, दस पइन्ना, छः छेदसूत्र, चारमूलसूत्र, और दो चूलिकासूत्र मिलकर इस समय पैंतालीस आगमों की संख्या ली जाती है इत्यलं विस्तरेण / --0-- विशेष विज्ञापनइस पुस्तक के संशोधन में हमारे सतीर्थ्य मुनि श्री दीपविजयजी और मुनि श्री यतीन्द्रविजयजी ने पूर्ण परिश्रम किया है किन्तु लेखकों की लिखी हुई पुस्तकों के अत्यन्त जीर्ण होने से और प्रायः एकही एक प्रति के मिलने से भी कहीं कहीं त्रुटित गाथाएँ टीका का अवलम्बन लेकर प्रकरण और विषय के अविरोध से पूरी की गयी हैं उनमें यदि कहीं पर पाठ भेद हो गया हो तो सज्जनों को उसे ठीककर लेना चाहिए। निवेदक उपाध्याय मुनि श्री 108 मोहन विजयजी