________________ अण्णउत्थिय ४७२-अभिषानराजेन्द्रः - भाग 1 अण्णउत्थिय जे भिक्खू अण्णउत्थियाणं वागारत्थियाणं वा आगमीसंनिमित्तं वा पहेण गच्छंताणं ते सावयोवद्दवं सरीरोवहितेणोवद्दवं पावति, (जं पावेति करेइ, करंतं वा साइजइ॥२१॥ जे मिक्खू अण्णउत्थियाणं वा त्ति) जंवा ते गच्छंता अण्णेसिंउवद्दवं करेति,जतो वा ते अणिविदिहातो गारत्थियाणं वा लक्खणं करेइ, करतं वा साइजइ // 22 // जे स्वयं पावंति, ततो ते तस्सपथविहंगस्स साधुस्स अन्नस्स वा साधुस्स भिक्खू अण्ण-उत्थियाणं वा गारत्थियाणं वा सुमिणं करेइ, पदोसमावज्जेति, अम्हे पडिणियत्तणेण एरिसपंथं छूढा, इमेणं पंतावणादि करतं वा साइज्जइ // 23 // जे मिक्खू अण्णउत्थियाणं वा करेज / अधवा दातो विंधेज्ज / गारत्थियाणं वा विज्जं पउंजइ, पउंजंतं वा साइज्जइ // 24 // जे बितियपदमणप्पज्झे, पावे अवि को वि ते व अप्पज्झे। भिक्खू अण्णउत्थियाणं वा गारत्थियाणं वा मंतं पउंजइ, अद्धाण असिव अहिओगआतुरादीसुजाणमवि॥५३॥ पउंजंतं वा साइजइ / / 25 / / जे भिक्खू अण्णउत्थियाणं वा खित्तादिगो अणप्पज्झो सेहो वा, अवि कोवि नो विधेञ्ज, अप्पज्झे वि गारत्थियाणं वा जोगं पउंजइ, पउंजंतं वा साइज्जइ // 26 // अद्धाणे या सत्थस्स पहं अजाणतस्स विंधेज / असिवे गिलाणकज्जे वा निन्चू०१३ उ० वेज्जस्स कप्पियारिस्स वा आणिअंतस्स पंथमुवदिसति। अभियोगो त्ति मार्गप्रवेदनम् बलारातिणा देसितो गहिते एवमादिकरणेहिं जाणतो वि कहिंतो सुद्धो। नि०चू०१३ उ० जे भिक्खू अण्णउत्थियाणं वा गारत्थियाणं वा णट्ठाणं विपरियासियाणं मग्गं वा पवेदेइ, संधिं वा पवेदेइ, मम्गाणं वा (२८)(वाचना) अन्ययूथिकाः पाखण्डिनो गृहिणः सुखसंधिं पवेदेइ, संद्धिओ वा मग्गं पवेदइ, पवेदंतं वा शीला वा न प्रव्राजनीयाः - साइजइ॥२७॥ जे मिक्खू अण्णउत्थियं वा गारत्थियं वा वाएइ, वायंतं वा इमो सुत्तत्थो साइज्जइ / / 25 / / जे मिक्खू अण्णउत्थियं वा गारत्थियं वा पडिच्छइ, पडिच्छंतं वा साइजइ // 26 // जे मिक्खू पासत्थं नट्ठा पथि फिड्डित्ता, मूढा उ दिसाविभागममुणंता। वाएइ, वायंतं वा साइज्जइ॥॥२७॥जे मिक्खू पासत्थं पडिच्छइ, तं विय दिसं पहं वा, पव्वेंति विवजिथा वन्नं / / 48|| पडिच्छंतं वा साइज्जइ।।२८||जे मिक्खू उस्सण्णं वाएइ, वायंत पथि प्रनष्टानां पन्थानं कथयति, अड्वीएवा मूढाणं दिसिभागं अमुणताणं वा साइजइ // 26 // जे मिक्खू उस्सण्णं पडिच्छइ, पडिच्छंतं वि दिसि विभागेण पहं कहेति। जतो चेव आगता तं चेव दिसं गच्छंताणं वा साइज्जइ // 30 // जे मिक्खू कुसीलियं वाएइ, वायंतं वा विवजित्ता वृण्णणं सब्भायं कहेति // 48|| साइजइ // 31 // जे मिक्खू कुसीलियं पडिच्छइ, पडिच्छतं वा मग्गो खलु सगडपहो, पंथो वा तविवञ्जिता संधी। साइज्जइ / / 32 / / जे मिक्खू णितियं वाएइ, वायंतं वा सो खलु दिसाविभागो, पवेयणा तस्स कहणाओ {46 // साइज्जइ // 33 // जे मिक्खू णितियं पडिच्छइ, पडिच्छंतं वा संधी संखेडयगोजतोगमिस्सति सो दिसाभागो,तं तेसिं मूढाणं पवेदेति, साइज्जइ // 34 // जे भिक्खू संसत्तं वाएइ, वायंतं वा कथयतीत्यर्थः / सगडमग्गा उजुसंधिसंखेड्यं पवेदेति, उजुसंधिसंखडेया साइजइ // 35 // जे भिक्खू संसत्तं पडिच्छइ, पडिच्छंतं वा वा सगडमार्ग पवेदेति, कहयति त्ति वुत्तं भवति / अहवा सव्वो चेव पहो साइजइ॥३६॥ मग्गो भण्णति, संधी पथं बोधेयव्वं। अहवा पंथुग्गओ चेव संधी, पंथस्स एवं पासत्थे दो सुत्ता, उस्सण्णे दो, कुसीले दो, संसत्ते दो, णितिये दो, या संधी अंतरे कहेति, संधी उवा वामदक्खिणो पहो, तं कहेति॥४६॥ एतेसिं वायणं देति, पडिच्छति, भावत्तेण वासव्वेसु अहा-च्छंदवज्जिएसु गिहिअण्णतित्थियाण व, मग संधी उजो पवेदेति। चउलहुं, अहवाअत्थेवअहाछंदे चउगुरुं, सुत्ते अत्थेसुमग्गातो वा संघि, संधीतो वा पुणो मग्गं // 50 // अण्णपासंडिय गिही, सुहसीलं वा वि जो उ पव्वज्जे। अहव पडिच्छति तेसिं, चाओऽस्सय साति पोरेसिं // 224|| गतार्था / तेसिं गिहिअण्णतित्थियाणं मग्गादि कहेंतो इमं पावति (पोरिसित्ति) सुत्तपोरिसिं अत्थपोरिसिं वादेंतस्स, तेसिंवा समीवातो सो आणा अणवत्थं, मिच्छत्तविराहणं तहा दुविहं। पोरिसिं करेंतस्स, अहवा एक्कोपोरिसिं वाएंतस्स, अणेगासु इमपावति जम्हा तेणं, एते उवए विवजेजा।।५१॥ सत्तरत्तं तवो होति, ततो छेदो पहावति। दुविहा आयपरसंजमविराधणा, तेसिं साधुविधिं तेणपहेणं गच्छंताणं छेदेण छिण्णपरिया, एतो मूलं ततो दुगं / / 22 / / इमे अण्णे दोसा सत्तदिवसे चउलहुं तयो, ततो एके दिवसे चउलहु छेदो, ततो छक्कायाण विराहण, सावय तेणोवहिं विदुविहेहिं। एक्के कदिवसे मूलऽणवठ्ठा पारंचिया, अहवा तवो, तहेव य चउलहु, जं पावति जाता वा, पदोस तेसिं तहिंऽन्नेसिं // 52 // छेदो, सत्तदिवसे सेसा, एकेके दिवसं अहवा तवो तहेव / गुरु, जं ते गच्छंता छक्काए विराहेति, स विराधंतो तं णिप्पण्णं पावति, तेण | च्छेदो, सत्तदिवसे, सेसा एक्के वं, अहवा चउलहुतो वा सत्तदिवसे,