________________ अक्खयपूया 138 - अभिषानराजेन्द्रः - भाग 1 अक्खयपूया किं हससि तुमं सामिय! हसिया ह निग्धिणेण देवेण! किं कइया वि सुवल्लह ! वंझा पुत्तं चपसवेइ // 135|| पभणइ पहसियवयणो,जह मह वयणेण नत्थि सद्दहणं। ता पिच्छेहि सयं चिय, नियपुत्तं रयणरासिं व // 136 / / इय संसयहिययाए, परमत्थं साहिऊण सा भणिया। नियपुत्तविरहियाणं, अम्हाणं एस पुत्तो ति॥१३७|| पडिवजिऊण एयं, नीओ नयरम्मि सो य पइदियह। परिवड्डेइ कलाहिं, सियपक्खगओ मियंकु व्व / / 138|| सा वियरई मयबालं, सीसोवरि नामिऊण देवीए। आफालइ तं पुरओ, वत्थं वसियायले तुट्ठा॥१३६॥ गंतूणतओ भवणे, संपुन्नमणोरहा सुहं वसइ। जयसुंदरी वि दियहा, सुयविरहे दुक्खिया गमइ // 140 / / कयविजाहरनामो, मयणकुमारुत्ति गहियवरविज्जो। वचंतो गयणयले, पिच्छइ तं अत्तणो जणणिं / / 141 / / भवणगवक्खारूढा, सुयसोयझरंतनयणसलिलेहि। अइनेहनिब्भरेणं, उक्खित्ता मयणकुमरेण // 142 // तंदळूण कुमार, हरिसवसद्धं च नयणसलिलेन। सिंचंती अवलोयइ, पुणो पुणो निद्धदिट्ठीए॥१४३।। उज्झियबाहो लोओ, धाहावइ पुरवइए मज्झम्मि। एसा हरिजइ घरिणी, नरवइणो उच्चकंठेणं // 144|| अइसूरो विहुराया, पयचारी किं करेइ गयणत्थे। खुजउ किं कुणइफले, तरुसिहरपइट्ठिए दिट्ठ।।१४५।। चिंतइ मणम्मि राया, दुक्खं खयखारसन्निह जायं। एगं सुअस्स मरणं, बीअंपुण भारियाहरणं / / 146 / / एवं दुक्खियहियओ, चिट्ठइ राया नियम्मि नयरम्भि। अहवा घरिणीहरणे, भण कस्स न जायए दुक्खं ? // 147|| अवहिविसएण नाउं, पुत्तं तं सूइगाइ देवीए। मह भाया नियजणणी, घरिणीबुद्धिइ अवहरए // 148|| नियपुरपचासन्ने, सरवरपालीइचूयछायाए। जणणीसहिओकुमरो,जा चिट्ठइताव सादेवी।।१४६।। वानररूवं तह वानरीइ काऊण चूयसाहाए। पभणइ वानररूवी, कामुयतित्थं इमं भले ! // 15 // तिरिओ वि एत्थ पडिओ, तित्थपभावेण लहइ मणुअत्तं / मणुओ विहु देवत्तं, पावइ नत्थित्थ संदेहो।।१५१।। ता खुपेच्छसु दोन्नि विमणुसाइँ पचक्खदेवभूआईं। एआइँ मणे काउं, निवडामो इत्थ तित्थम्मि॥१५२।। जेण तुमं माणुसिआ, अम्हं पुण एरिसो मणुस्सुत्ति। होहामि त्ति पणिअं, को नाम गिण्हइ इमस्स // 153 / / जो निअजणणिं पि इहं, घरिणीबुद्धीइ नेइ हरिऊण। तस्स वि पावस्स तुम, सामियरूवम्मि अहिलासो।।१५४।। सोऊण वानरीए, तं वयणं दो वि विम्हअमणाई। चिंतंति कहं एसा, मह जणणी सा वि कह पुत्तो॥१५५।। नेहेणं हरिए विहु, एसा मह जणइजणणिबुद्धित्ति। सा वियचिंतइएसो,महपुत्तोउअरजाओ त्ति॥१५६।। पुच्छइ संसयहियओ, कुमरो तं वानरं पयत्तेणं। भद्दे ! किं सच्चमिणं, जं तुमए भासियं वयणं॥१५७।। तीए भणियं सचं, जइ अन्ज वि तुज्झ अत्थि संदेहो। ताएयम्मि निगुंजे, पुच्छसुवरनाणिणं साहुं॥१५८|| इय भणिऊणं सहसा, वानरजुअलं अदस्सणीहू। सो वि य विम्हयहियओ, पुच्छइ तं मुणिवरं गंतुं // 156 / / भयवं ! किं तं सचं, जं भणियं वानरीइ मह पुरओ। मुणिवइणा विहुभणिओ, सच्चंत होइन हुअलि॥१६०।। निचं चिट्ठामि ठिओ, कम्मक्खयकारणम्मि झायंतो। हेमपुरे सविसेसं, साहिस्सइ केवली तुज्झ।।१६१।। इय भणिओतं नमिउं, सहिओजणणीइ सो गओ गेहं। जणणिजणएहिं दिट्ठो, हरिसियहियएहि सो विमणो // 16 // एगते ठविऊणं,चलणवलग्गेण पुच्छिया जणणी। अम्मो ! साहेसु फुड, कह जणणी मज्झ को जणओ।।१६३॥ चिंतइ सासविइक्का, किं एसोअज्ज पुच्छए एयं। पभणइ पुत्तय ! अहय, तुह जणणी एस जणओ त्ति॥१६४॥ सचं अम्मो ! एयं, तह विहुपच्छामि जम्मदायारे। तं परमत्थं पुत्तय !, तुह जाणइ एस जणउ त्ति // 165 / / तेण विपरितुट्ठणं, कहिउंपडलाइवइयरो तस्स। तह पुण जणओ पुत्तयं, विन्नाओ किंचि नहु सम्म॥१६६॥ भणिओ कुमरेण पुणो, एसा जा ताय ! आणिया नारी। सा वानरीइ सिट्ठा, एसा तुह जम्मजणंणि ति॥१६७।। मुणिणा विहु पुट्ठणं, एयं चिय साहिऊण भणिओ हं। हेमपुरे गंतूणं, पुच्छसुतं केवलिं एयं॥१६८|| तोताय! तत्थ गंतं,पच्छामो केवलिं निरवसेसं। जेणेसो संदेहो, तुट्टइ मह जुन्नतंतुव्व // 166 / / इय भणिऊणं कुमरो, चलिओ सह निययजणणिजणएहिं। (इय भणिऊणं चलिओ, सहिओ सह जणणिजणयलोएहिं / इतिपाठान्तरम्) संपत्तो हेमपुरे, केवलिणो पायमूलम्मि॥१७०।। भत्तिभरनिन्भरंगो, केवलिणो पायपंकयं नमिउं। उवविट्ठोधरणियले, सपरियणो सुरकुमारु व्य॥१७१।। जयसुंदरी वि देवी, बहुनारिसहस्समज्झयारम्मि। नियपुत्तेण समेया, निसुणइ गुरुभासियं वयणं / / 172 / / हेभपभो वि य राया, नियपुरनरनारिलोयपरियरिओ। उवविट्ठो गुरुमूले, निसुणइ गुरुभासियं वयणं / / 173 / / पत्थावं लहिऊणं, नरनाहो भणइ केवलि नमिउं। भयवं ! सा मह भज्जा, जयसुंदरि केण अवहरिया॥१७४।। भणिओ सो केवलिणा, हरिया नरनाह ! निययपुत्तेण। विम्हियहियओ पभणइ, भयवं! कह तीइ पुत्तुत्ति // 175 / / जो आसि तीइ पुत्तो, सो बालो चेव हयकयंतेण। कवलीकओ महायस!, बीओ पुत्तो वि से नत्थि।।१७६|| अलियं न तुम्ह वयणं, बीओ पुत्तो वितिय से नत्थि। इय विहडियकजं पिव, संतावं संसओ कुणइ / / 177 / / भणइ मुणिंदो नरवर ! सचं मा कुणसु संसयं एत्थ। भयवं! कहसु कह चिय, अइगरुअंकोउअंमज्झ॥१७८।। कुलदेवयपूयाए, वुत्तंतो ताव तस्स परिकहिओ। जा वेयड्डपुराओ, समागओ तम्मि उज्जाणे // 176 / / विप्फारियनयणजुओ, जोयइ नरवई तमुज्जाणं। तो विहडियसंदेहो, कुमरो वि हुनमइ तं जणयं / / 180 // आलिंगिऊण पुत्तं, अंसुजलभरियलोयणो राया। रोयंतो बहुदुक्खं, दुक्खेण य बोहिओ गुरुणा॥१८१॥ (रोयंतो वि हुदुक्खं दुक्खेण विबोहिओ गुरुणा॥१८१|| इति पाठान्तरम्)