________________ अक्खयपूया 136 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 1 अक्खयपूया आगंतव्यमवस्स, कुवियप्पो नेव कायव्वो॥३५॥ रयणी-कयसिंगारा, समंतओ रायलोयपरियरिया। करिणीखंधारूढा, समागया रायभवणम्मि // 36|| नरवरकयसम्माणा,दोहग्गं देविसेसमहिलाणं। सोहागं गहिऊणं,संजाया सा महादेवी॥३७॥ भुंजइइच्छियसुक्खं, संतुट्टा देइ इच्छियंदाणं। रुट्ठा पुण सा जेसिं, ताणं च विणिग्गहं कुणइ // 38 // अह अन्नदिणे पुट्ठा, तीए परिवाइया इमा देवी। वच्छे ! तुह संपन्ना, मणोरहा इच्छिया जे उ॥३६॥ भयवइ ! तं नत्थि जए, तुह पयभत्ताण जं न संभवई। तह विहु भयवइ ! अज्ज वि, हिययं दोलायए मज्झ॥४०॥ जह जीवइ महजीवंतियाइ अहमरइ महमरंतीए। जा जाणिज्जइ नेहो, महउवरि नरवरिदस्स // 41 // जइ एवं ता मिण्हसु, नासं मह मूलियाय एयाए। जेण तुमं मयजीवा, लक्खीयसि जीवमाणा वि॥४२॥ बीयाइ मूलियाए, नासं दाऊण तुह करिस्सामि। देहं पुणन्नवं चिय, मा भीयसुमापासत्था॥४३॥ एवंति पणिऊणं, गहिउ देवीए मूलियावलयं ! सा वि असमप्पिऊणं, संपत्ता निययठाणम्मि॥४४॥ अहसा नरवइ पासे, सुत्ता गहिऊण ओसहीनासं। ता दिट्ठा निचिट्ठा, नरवइणा विगयजीवव्व / / 4 / / एत्तो आकंदरओ, उच्छलिओ ज्झत्ति राइणो भवणे। देवी मया मयत्ति य, धाहावइ नरवई लोओ॥४६॥ नरवइआएसेणं, मिलिया बहुमंतविजकुसला य। तह विय सा परिचत्ता, मइत्ति दळूण निचिट्ठा / / 47 / / भणिओ मंतीहिं निवो, किज्जउ एयाइ अग्गिसक्कारो। भणिया ते नरवडणा, मज्झवि किज्जउ सह इमाए॥४८|| चलणविलग्गो लोओ, पभणइ नहुदेव ! एरिसं जुत्तं / भणइ सुदुक्खं राओ, नेहस्सन दुन्नि मग्गाओ।।४६|| तामा कुणह विलंब, कलह लहु चंदणिंधणं पउरं। इय भणिऊणं राया, संचलिओ पिअयमासहिओ॥५०॥ वजिर तूररवेणं, रोविर नरनारिपउरनिवहेण। पूरितो गयणयलं, संपत्तो पेयठाणम्मि // 51 // जा विरइऊण चिअयं, राया आरुहइ पिअयमासहिओ। ता दूराउ रुयंति, पत्ता परिवाइया तत्थ ॥५२सा भणिओ तीए तुमयं, मा एवं देव! साहसं कुणसु। भणियं तुमए भयवइ !, महजीयं पिअयमासहियं // 53 // जइ एवं ता विसहसु, खणमेगं मा हु कायरो होसु। जीवावेमि अवस्सं,तुह दइअंलोअपचक्खं // 54|| तं वयणं सोऊणं, ऊससियं तस्स राइणो चित्तं / नहुजीवियस्स लाहे जह लाहे तीइ भजाए।५५|| भयवइ! कुणसु पसायं, जीवावसु मज्झ वल्लहंदइ। तीए विहु देवीए, दिन्नो संजीवणी नासो।।५६|| तस्स पभावेणं चिय, सा देवी सयललोयपचक्खं। उज्जीविया य समयं, नरवइणो जीवियासाए // 57 / / तं जीवियंति नाऊं, आणंदजलुल्ललोयणो लोओ। नच्चइ उब्भियबाहो, वञ्जिरबहुतूलनिवहेण / / 58|| सव्वंगाभरणेहिं, पाए परिवाइआइ पूएणं। पभणइ अज्जे ! अर्ज,जं मग्गसितं पणामेमि // 56 मणिओ तीए राया, सुपुरिस! मह नस्थि किं पि करणिझं। भिक्खागहणेण अहं, संतुट्ठा नयरमज्झम्मि॥६०॥ गयवरखंधारूढं, काऊणं निययपिययमा राया। संपत्तो नियभवणे, आणंदमहूसवं कुणइ // 61 / / फलिहमयभित्तघडिआ, कंचणसोवाणथंभनिम्मविया। काराविया निवेणं, मढिया अज्जाइ तुडेणं // 62 // पव्वइया सा नरवर !, मरिऊणं अट्टाझाण दोसेणं। संजाया सुहसूई, साहं पत्ता तुह सयासे॥६३|| दठूणं देव ! तुम,तुह पासपरिट्ठियं महादेविं। जायं जाईसरणं, संभरिअंतुह मए चरिअं॥६४|| सोऊण तीइ वयणं, रोवंती भणइ सा महादेवी। भयवइ ! कह मरिऊणं, संजाया पक्खिणी तुमयं // 65 / / मा झूएसि किसोयरि!, दुक्खित्ता अज्जमज्झजम्मेण / कम्मवसेणं जीवो, तं नत्थिह जंन पावेइ // 66 / / तेण तुमं दिलुतो, दिन्नो नरनाह! महिलिया विसए। सोऊण इमं राया, संतुट्ठो सूइगं भणए // 67 / / सच्चो दिद्रुतो हं, दिन्नो तुम एत्थ महिलिया विसए। ता तुट्ठो हं पभणसु, जं इ8 तं पणामेमि॥६८|| पभणइ सुई निसुणसु, महइट्ठो नाह! अत्तणो भत्ता। ता तस्स देसु जीवियं, नहु कनं किं पि अन्नेण // 66 // हसिऊण भणइ देवी, देव! तुम कुणसु मज्झवयणेण। एयाए पीईदाणं, भोयणदाणं च निचंपि॥७०।। भणिया सा नरवइणा, वचसु भद्दे !जहिच्छियं ठाणं / मुक्को य एस भत्ता, तुडेणं तुज्झ वयणेण // 7 // भणिओ य सालिवालो, एयाणं, तंदुलाण दाणं च / पइदियहं दायव्वं, रासिं काऊण खित्तंते // 72 / / जं आणवेइ देवो, इय भणिए भणइ कीरमिहुणं पि। एस पसाओ सामिय!, इय भणिउं झत्ति उड्डीणं // 73|| पुव्युत्ते चूअदुमे, गंतूणं पुन्नडोहलासूई।। नियनियडम्मि पसूया, निप्पन्न अंडयदुगंति // 74|| अह तम्मि चेव समये, तीए सवक्की वि निययनीडम्मि। तम्मिदुमम्मि पसूया, संपुन्नं अंडग एणं // 75 / / जा सा चूणि निमित्तं, विणिग्गया तं दुमं पमुत्तूणं। ता मच्छरेण पढमा, आणइ तं अंडगं तीए॥७६|| जा पच्छिमा न पिच्छइ, समागया तत्थ अत्तणो अंड। ता सफरिव्य विलोडइ,धरणियले दुक्खसंतत्ता // 77|| तं विलवंति य दलुं पच्छावायेण तवियहिययाए। पढमाए नेऊणं, पुणो वितत्थेव तं मुकं // 78|| धरणियले लुलिऊणं, अंबं आरुहइ जाव नीडम्मि। ता पिच्छइ तं इंड,सा कीरि य अमयसित्तव्य ||7|| बद्धं च तं निमित्तं, कम्मं पढमाएदारुणविवागं। पच्छायावेण हयं,धरिय चिय एगभवदुक्खं / / 80| तम्मिय अंडयजुयले, संजाया सूइगाय सुअगो अ। कीलंति वणनिगुंजे, समयंचिअजणणिजणगेहिं / / 81 // रइए तंदुलकूडे, नरवइवयणाउ सालिखित्तम्मि। चंचुपुडे गहिऊणं, बच्चइ तं कीरमिहणं ति॥५२॥ अह अन्नया कयाई, चारणसमणो समागओ नाणी। रिसहजिणेसरभवणे, वंदणहेउं जिणिंदस्स॥३॥ पुरनरनारिनरिंदो, देवं पुष्फक्खएहिं पूएउ। पुच्छइ नमिऊण मुणिं, अक्खयपूयाफलं राया // 4 // अखंडफुडियचोक्ख-क्खएहिं पुंजत्तयं जिणिंदस्स।