________________ (157) [प्राकृत] अभिधानराजेन्द्रपरिशिष्टम् 3 / [शब्दरूपावलिः] ईकारान्तः पुंल्लिङ्गो 'गामणी' शब्दः / विभक्ति एकवचन। बहुवचन / प्रथमा गामणी। गामणिणो, गामणी, गामणउ, गामणओ। द्वितीया गामणिं। गामणिणो, गामणी। तृतीया गामणिणा। गामणीहि, गामणीहिँ गामणीहिं। चतुर्थी गामणये, गामणिणो, गामणिस्स। गामणीणं, गामणीण। पञ्चमी गामणिणो, गामणित्तो, गामणीओ) गामणित्तो, गामणीओ, गामणीउ, गामणीहिन्तो, गामणीउ, गामणीहिन्तो। (गामणीसुन्तो। गामणिणो, गामणिस्स। गामणीणं, मामणीण। सप्तमी गामणिम्मि।। गामणीसु, गामणीसु। संबोधनम् हे गामणि, हे गामणी। हे गामणिणो, हे गामणी, हे गामणउ, हे गामणओ। षष्ठी विभक्ति, प्रथमा एकवचन। गुरू। गुरूं। द्वितीया तृतीया चतुर्थी पञ्चमी गुरुणा। गुरवे, गुरुणो, गुरुस्स। गुरुणो, गुरुत्तो गुरूओ, गुरूउ) गुरूहिन्तो। गुरुणो, गुरुस्स। गुरुम्मि। हे गुरु, हे गुरू। षष्ठी सप्तमी संबोधनम् विभक्ति, प्रथमा द्वितीया तृतीया उकारान्तः पुँल्लिङ्गो 'गुरु' शब्दः / बहुवचन / गुरुणो, गुरू, गुरओ, गुरउ, गुरवो ('वोतो डवो // 8 / 3 / 21 / / उदन्तात् परस्य जसः पुंसि डित् अवो इत्यादेशो वा भवति। साहको।)। गुरुणो, गुरू। गुरूहि, गुरूहिँ , गुरूहि। गुरूणं, गुरूण। गुरुत्तो, गुरूओ, गुरूउ, गुरूहिन्तो, (गुरूसुन्तो। गुरूणं, गुरूण। गुरूसुं, गुरूसु। हे गुरुणो, हे गुरू, हे गुरउ, हे गुरओ, हे गुरवो। ऊकारान्तः पुंल्लिङ्गो 'खलपू' शब्दः। बहुवचन। खलपुणो, खलपू, खलपउ, खलपआ, खलपवा। खलपुणो, खलपू। खलपूर्हि, खलपूहिँ ,खलपूहि। खलपूर्ण, खलपूण। खलपुत्तो, खलपूओ, खलपूउ, (खलपूहिन्तो, खलपूसुन्तो। खलपूर्ण, खलपूण। खलपूसुं, खलपूसु। हे खलपुणो, हे खलपू, हे खलपउ, हे खलपओ, हे खलपवो। ऋकारान्तः पुंल्लिङ्गो "पितृ' शब्दः / बहुवचन। पिअरा, पिउणो, पिअउ, पिअओ, पिऊ। पिअरा, पिअरे, पिउणो, पिऊ। पिअरेहिं, पिअरेहिँ, पिअरेहि, पिऊहिँ , पिऊहिं। चतुर्थी एकवचन। खलपू। खलपुं। खलपुणा। खलपेव, खलपुणो, खलपुस्स। खलपुणो, खलपुत्तो, खलपूओ) खलपूउ, खलपूहिन्तो। खलपुणो, खलपुस्स। खलपुम्मि। हे खलपु, हे खलपू। पञ्चमी षष्ठी . सप्तमी संबोधनम् विभक्ति प्रथमा द्वितीया तृतीया एकवचन। पिआ, पिअरो। पिअरं। पिउणा, पिअरेणं, पिअरेण /