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________________ [प्राकृत] अहम् ॥अभिवानराजेन्द्रपरिशिष्टम्॥ // संक्षिप्राकृतशब्दरूपावलिः।। अकारान्तः पुंल्लिङ्गो 'वृक्ष' शब्दः / [शब्दरूपावलिः विभक्ति प्रथमा द्वितीया तृतीया बहुवचन / वच्छा / वच्छे, वच्छा। वच्छेहि, वच्छेहिँ वच्छेहि। वच्छाणं, वच्छाण! चतुर्थी एकवचन। वच्छो। वच्छं। वच्छेणं, वच्छेण। वच्छाय, (तादर्थ्यड // 6 / 3 / 132|| तादर्थ्यविहितस्य डेश्चतुर्थ्य कवचनस्य षष्ठी वा भवति। देवस्स, देवाय, देवार्थमित्यर्थः।) वच्छस्स। वच्छत्तो, वच्छाओ, वच्छाउ) वच्छाहि, वच्छाहिन्तो, वच्छा। वच्छस्स। वच्छम्मि, वच्छे। हे वच्छ, हे वच्छो, हे वच्छा। पञ्चमी षष्ठी वच्छत्तो, वच्छाओ, वच्छाउ, वच्छाहि, वच्छेहि, (वच्छाहिन्तो, वच्छेहिन्तो, वच्छासुन्तो, वच्छेसुन्तो। वच्छाणं, वच्छाण। वच्छेसुं, वच्छेसु। हे वच्छा / सप्तमी संबोधनम् गोवा। चतुर्थी विभक्ति, एकवचन। प्रथमा गोदो। द्वितीया तृतीया गोवाणं, गोवाण। गोवे, गोवस्स। पञ्चमी गोवत्तो, गोवाओ, गोवाउ) गोवाहिन्तो। गोवस्स। सप्तमी गोवम्मि। संबोधनम् हे गौवो, हे गोवा / अकारान्तः पुंल्लिङ्गो 'गोपा' शब्दः / बहुवचन / गोवा। गोवा। गोवाहि गोवाहि , गोवाहि। गोवाणं, गोवाण। गोवत्तो, गोवाओ, गोवाउ, गोवाहिन्तो, (गोवासुन्तो। गोवाणं, गोवाण। गोवासु, गोवासु। हे गोवा। षष्ठी गिरि। इकारान्तः पुंल्लिङ्गो "गिरि' शब्दः / विभक्ति एकवचन। बहुवचन / प्रथमा गिरी। गिरिणो, गिरी, गिरउ, गिरओ। द्वितीया गिरिणो, गिरी। तृतीया गिरिणा। गिरीहिं, गिरीहि, गिरीहि। गिरिणो, गिरिस्स,गिरये। गिरीणं, गिरीण। पञ्चमी गिरिणो, गिरित्तो, गिरीओ, गिरीउ) गिरित्तो, गिरीओ, गिरीउ, गिरीहिन्तो, गिरीहिन्तो। (गिरीसुन्तो। षष्ठी गिरिणो,गिरिस्स। गिरीणं, गिरीण। सप्तमी गिरिम्मि। गिरीसुं. गिरीसु। संबोधनम् हे गिरि, हे गिरी। हे गिरिणो, हे गिरी, हे गिरउ, हे गिरओ। चतुर्थी
SR No.016143
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1078
LanguageHindi
ClassificationDictionary
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