________________ असढ 837- अभिधानराजेन्द्रः - भाग 1 असह कुविएण चक्कदेवो, हढेण नीओ निवसमीवे // 56 // रना भणियं नणु जइ, अप्पडिहयचक्कसत्थवाहसुए। न हसंभवइइमंतो, कहेसुको इत्थ परमत्थो ?|60|| परदोसकहणविमुहो, न किंचि जा जंपइ एमो ताहे। बहुयं विडंबिऊणं, निव्विसओ कारिओ रन्ना // 61 / / अह सो विसायविहुरो, गुरुपरिभवदवज्झलंक्कियसरीरो। चिंतइ किं मम संपइ, पणट्ठमाणस्स जीएण?॥६२।। "वरं प्राणपरित्यागो, मा मानपरिखण्डना। प्राणत्यागे क्षण दुःखं, मानभने दिने दिने"।६३।। इय चिंतिय पुरबाहि, वडविडविणि जाव बंधए अप्पं / ता तगुणगणरंजिय-हियया पुरदेवया झत्ति // 64 // ठाउं निवजणणिमुहे, निवपुरओतं कहेइ वुत्तत्तं। उब्बंधणपेरंतं, तो दुहिओ चिंतए राया / / 6 / / "उपकारिणि विश्वास्ये, आर्यजने यः समाचरति पापम्। तंजनमसत्यसंधं,भगवति वसुधे! कथं वहसि ?" // 66 // इय परिभाविय रन्ना, पुरोहियपुत्तं धराविउं तुरियं / तत्थ गएणं, दिट्ठो, सत्थाहसुओ तह कुणंतो॥६७।। छिदित्तु झत्ति पासं, सो गयमारोविऊण हिटेण। महया वि वित्थडेणं, पवेसिओ नयरमज्झम्मि॥६८|| भणिओय भो महायस!, तुज्झ कुलीणस्स जुत्तमेव इम। तह पुच्छिरस्स वि मम, जपरदोसोन ते कहिओ।।६६।। किंतु तुह जमवरद्धं, अन्नाणपमायओ इहऽम्हेहिं। तं खंमियव्वं सव्वं, खमापहाणाखु सप्पुरिसा / / 7 / / इत्थंतरे भडेहिं, बंधिय तत्थाऽऽणिओ पुरोहियसुओ। रोसारुणनयणेणं, रन्ना वज्झो समाणत्तो / / 71 / / तो भणइ चक्कदेवो, वच्छलहियएण पगइसरलेण। महमित्तेण इमेणं, किं नाम विरुद्धमायरियं ? ||72 / / पुरदेवयाए कहियं, कहइ निवो दुट्ठचिट्ठियं तस्स। मन्नभरभरियचित्तो, तो चिंतइ सत्थवइपुत्तो।।७३|| अमयरसाउ विसंपिव, ससहरबिंबाउ अग्गिवट्टिव्च। एरिसमित्ताउ इम, किमसममसमंजसं जायं? ||74 / / एवं सो परिभाविय, गाढं निवडित्तु निवइचलणेसु। मोयावइ नियमित्तं, तो हिट्ठो भणइ नरनाहो // 75|| "उपकारिणि वीतमत्सरे वा, सदयत्वं यदि तत्र कोऽतिरेकः? / अहिते सहसाऽपराधलब्धे, सघृणं यस्य मनः सतां सधुर्यः / / 76|| अह सत्थवाहपुत्तो, सयवत्तसुपत्तनिम्मलचरित्तो। भडचडगपरीयरिओ, नियगेहे पेसिओ रन्ना / / 77 // तेणावि जन्नदेवो, आलविओ पणयसारवयणेहिं। सक्कारिय संमाणिय, पट्टविओ निययभवणम्मि॥७॥ जाओ जणप्पवाओ, धन्नो एसेव सत्थवाहसुओ। अवयारपरे वि नरे, इय जस्स मई परिप्फुरइ // 76 / / वेरग्गमग्गलग्गो, कयावि सिरिअग्गिभूइगुरुपासे। गिण्हेइ चकदेवो, दिक्खं दुहकक्खदहणसमं।।८।। बहुकालं परिपालियं, सामन्नं सो अणन्नसामन्नं। जाओ अजिंभवभो, नवअयराऊ सुरो बंभो // 81 // तत्तो चविय विदेहे, अरिअजिए मंगलावईविजए। बहुरयणे रयणउरे, सत्थप्पहरयणसारस्स।।८२|| सिरिमइपियाए जाओ, चंदणसारु त्ति नंदणो तस्स। कंता य चंदकंता, दुवे वि जिणधम्मपरिकलिया // 83|| मरिउंस जन्नदेवो, विदुचपुढवीए नारओ जाओ। पुण आहेडयसुणओ, मरिउं तत्थेव उववन्नो।।८४|| तत्तो भमिय बहुभवं, जाओ सो रयणसारदासिसुओ। अहणगनामा पीई,पुव्वुत्ता तेसि संजाया ||85 / / अन्नदिणे रयणउरं, दिसि जत्ताण गयम्मि निवइम्मि। सवरवइ विज्झकेऊ, भंजिय गिण्हइ बहुं वंदं॥८६॥ हरिया य चंदकंता, सेसजणो को वि कत्थ विय नट्ठो। आवासिओ य वलिउं, सवरवई जिन्नकूवतडे // 87 // वोलीणे सयलदिणे, निसावसेसे पयाणकालम्मि। अइरहसवसपुरक्खड-नियनियकिच्चेसु भिच्चेसु॥८॥ उत्तालकाहलातरलबहलरवपसरभरियनहविवरे / अग्गाणीयम्मि वहतयम्मिदीणेय बंदिजणे | सा चंदणपाणपिया, सलीलनियसीलखंडणभएण। पंचनमुक्कारपरा, झंपावइ तम्मि कूवम्मि||१०|| भवियव्वयानिओगा, पडिया नीरम्मि जीविया तेण। पडिकूवयम्मि ठाउं,गमेइ सा वासरे कइ वि।।६१|| इत्तो य गया धाडित्ति चंदणो नियपुरे समणुपत्तो। दइया हड त्ति नाउं, जाओ अइविरहदुहदुहिओ // 62|| तो तीए मोयणत्थं, संबलयं दविणनउलयं गहियं। अहणगबीओ चलिओ, वारेण वहति तं भारं ||3|| पत्ता कमेण तं जिन्नकूवदेसं तया पुणो अत्थि। धणजायं पासे दासयस्स इयरस्स पाहेयं / / 64|| तो पुव्वभवज्झासा, दासो चिंतेइ सुन्न-रन्नमिणं / अत्थमिओ गगणमणी, ओल्लसिओ गरुयतिमिरभरो // 65 // ता इत्थ कूवकुहरे, खिविऊणं सत्थवाहसुहमेयं / धणजाएण इमेणं, भवामि भोगाण आभागी।।६६|| तो भणइ निविडनियडी, भिसं तिसा बाहए ममं सामि!। सोऽवि सहावसरलो,जा कूवे नियइ तत्थ जलं // 67|| ता तेण पावभारपिल्लिएण स पिल्लिओ अवडे। तत्तो विपएसाओ, पाविट्ठो अहणगो णट्ठो 68|| अह चंदणो जलंतो, सिरठियपाहेयपुट्टलो पडिओ। पडिकूवे लहु लग्गो, यचंदकंता कह वि छित्ता ||6| भयविहला भणइ नमो, अरिहंताणं तितं सरेण फुडं। उवलक्खिय आह इमो, जिनधम्माणं अभयमभयं / / 100 / / तं सुणिय मुणिय दइयं, सरेण रोएइ तारतारमिमा। तो अन्नुन्नं सुहदुह-वत्ताहि गर्मति तं रयणिं // 101 / / उइए सहस्सकिरणे, तं पाहेयं दुवे विभुंजंति। कइवयदिणेसु एवं, पक्खीणं संबलं सव्वं / / 102 / / अह चंदणो पयंवइ, दइए! एयाउ वियडअवडाओ। गंभीराउ भवाउ य, उत्तारो दुत्तरो नूणं / / 103 // तम्हा कुणिमोऽणसणं, मा मणुयभवं निरत्थयं नेमो। इय जा कहेइ ता से, दाहिणनयणेण विप्फुरियं / / 104 // इयरीए वामेणं, सो आह पिएइ अंगफुरणेहि। एस किलेसोन चिरं, होही अम्हं तितक्केमि // 105 / / इत्थंतरम्मि पत्तो, सत्थवई नंदिवद्धणो तत्थ। रयणउरनयरगामी, उदयत्थं पेसए पुरिसे।।१०६।। ते जा नियंति, कूवं ता चंदणचंदकंतमभिदर्छ। साहित्तु सत्थवइणो, कढति य मंचियाए लहुँ।।१०७|| पुट्ठोय सत्थवइणा, वुत्तंतं कहइ चंदणो सव्वं / संचलिओ नियनयरा-भिमुहं वूढो य दिणपणगं॥१०८||