________________ असह 836 - अभिवानराजेन्द्रः - भाग 1 असह सेलम्मि सुंसुमारे, जाओ दंती धवलकंती // 14 // इयरो वितओव्वट्टिय, जाओ कीरो तहिं चिय गिरिम्मि। कीरीए सह रमतो, नरभासाभासिरो भमइ / / 15 / / कइया वितं गइंद, करेणुयानियरपरिगयं दटुं। पुव्वभवन्भासाओ, बहुलीबहुलो विचिंतेइ।।१६।। विसयसुहाउ इमाओ, किह णु मए वंचियव्वओएस। एवं उवायचिंतण- पवणो पत्तो सए नीडे॥१७|| ता तत्थ चंदलेहा- भिहाणखयरिं हरितु संपत्तो। लीलारइ इति खयरो, भयभीओ भणइ तं कीरं / / 18 / / भो ! इत्थ गिरिनिउंजे, चिट्ठामेगो इहागभी खयरो। न हु से कहियव्योऽहं, गओऽयमसो कहेयव्वो॥१६॥ तो कीर ! खीरमहुमहुर- वयण ! मह एवमुवकयं तुमए। तुज्झ वि अहं अवस्सं, करिस्समणुरूवमुवयारं॥२०॥ अह आगओ सखयरो, अदट्ठलीलारइं पडिनियत्तो। कहियं सुएण एयं, इमस्स सो हरिसिओ हियए।।२१।। इत्थंतरम्मि तत्था-गयं गयंतं जहिच्छिया भभिरं। पासित्तु चिंतइ सुओ, अहह अहो ! सुंदरोऽवसरो।।२२।। तो निवडिनियडिनडिओ, ठाउं करिसंनिहिम्मि भणइ पियं। भणियं वसिट्ठरिसिणा, कामियतित्थं इमं खित्तं // 23 // जो इत्थ भिगुनिवायं, करेइ सो लहइ कामियं खु फलं। इय भणिय पियाए समं तहिं वि पत्तो निलुक्को य॥२४|| तव्वयणपेरिओ पुण, लीलारइखेयरो पियासहिओ। चलउचवलकुंडलधरो, उप्पइओ गयणमग्गम्मि।।२।। तं दट्टु चिंतइ करी, कामियतित्थं इमं खुजं इहयं / खेयरमिहुणं जायं, पडियं किर कीरमिहुणं पि॥२६|| तो किं इमिणा तिरियत्तणेण मज्झं ति चिंतिय नगाओ। झंपावइ सो तहियं, अहुड्डियं कीरमिहुणं तं // 27 // संचुन्नियंगुवंगो, हत्थी गलहत्थिओ वि वियणाए। फुरिय सुहज्झवसाओ, जाओ वंतरसुरो पवरो॥२८।। अइसयकिलिट्ठचित्तो, विसयपसत्तो सुओ वि संपत्तो। रयणाइलोहियक्खे, नरए अइतिक्खदुहलक्खे // 26 // इतश्चअस्थि विदेहे सिरिचक्कवालनयरम्मि सत्थवाहवरो। अप्पडिहयचक्काक्खो,सुमंगला पणइणी तस्स // 30 // अह सो करिंदजीवो, चविऊणं ताण नंदणो जाओ। नामेण चक्कदेवो, सया वि गुरुजणविहियसेवो॥३१॥ उव्वट्टिय इयरो विहु, जाओ तत्थेव जन्नदेवु त्ति। सोमपुरोहियपुत्तो, दुवे वि तरुणत्तमणुपत्ता // 32 // सब्भावकइयवेहिं, जाया मित्तीइ तेसिमन्नोन्नं / पुव्वकयकम्मदोसा, कया वि चिंतइ पुरोहियसुओ॥३३॥ कह एस चक्कदेवो, इमाउ अतुच्छलच्छिवित्थरओ। पाविहिइ फुड भंसं, हुनायं अत्थि इह उवाओ॥३४।। चंदणसत्थाहगिह, मुसिउंदविणं खिवित्तु एयगिहे, कहिउं निवस्स पुरओ, भंसिस्सं संपयाउ इमं / / 35 / / काउंतहेव सभणइ, वयंस ! गोवेसु मज्झदविणमिणं। नियगेहे सो वितओ, एवं चिय कुणइ सरलमणो॥३६॥ वत्ता पुरे पवत्ता, मुटुं चंदणगिह तितो पुट्ठो। सत्थाहसुएणेसो, दंविणमिणं कस्स भो मित्त !? ||37|| सो आह मज्झ दव्यं, तायभया गोविय तुह गिहम्मि। आसंकान मणागवि, कायव्वा चकदेव ! तए॥३८|| इत्तो य चंदणेणं, अमुगं अमुगंच मह गयं दव्यं / कहियं निवस्स तेणं, नयरे घोसावियं एवं // 36 / / चंदणगिहं पमुटुं, जेणं केण वि कहेउ सो मज्झ। इण्हिं न तस्स दंडो, पच्छा सारीरिओ दंडो॥४०॥ अह दिणपणगम्मि गए, पुरोहियपुत्तो निवं भणइ देव ! | जइ विन जुजइ नियमित्तदोसफुडवियडणं काउं॥४१।। परमइविरुद्धमेयं, इति धारिउं पारिमो न हिययम्मि। चंदणधणं अवस्सं, अस्थि गिहे चक्कदेवस्स॥४२॥ (राजा) नणु सो गरिद्वपुरिसो, रायविरुद्धं इमं कह करिज ? / (यज्ञदेवः) गरुया वि लोहमोहियमइणो चिट्ठति बाल व्व // 43 // (राजा) सो संतोससुहारस- पाणप्पवणो सुणिज्जए सययं / (यज्ञदेवः)अवि तरुणो दविणमिणं, पाविय पाएहि पसरंति॥४४॥ (राजा) नणु सो महाकुलीणो, (यज्ञदेवः) को दोसो इह कुलस्स विमलस्स?। अइबहलपरिमलेसु वि, कुसुमेसु न हुँति किं किमओ ? // 45 // (राजा) जइएवं ता किज्जउ, समंतओ गेहसोहणं तस्स। (यज्ञदेवः) एवं किं देवस्स वि, पुरओजंपिज्जएमए अलिय।।४६।। तो निवइणा तलारो, चंदणभंडारिएण सह भणिओ। भो! चक्कदेवगेहे, नट्ठदव्वं गवेसेहि॥४७|| सो चिंतइ नरवइणा, अहह ! असंभावणिज्जमाइटुं। किं कइया पाविज्जइ, रविबिंवे तिमिरपब्भारो ?||48|| अहवा पहुणो आणं, करेमि पत्तो तओ गिहे तस्स। पभणइ चंदणदव्वं, नटुंजाणेसि भो भद्द!॥४६॥ (चक्रदेवः) नहु नहु मुणेमि किंचि वि, (तलवरः) तो भो ! तुमएन कुप्पियव्वं मे। जं रायसासणेणं, तुह गेहं किंपि जोइस्सं / / 5 / / (चक्रदेवः) कोवस्स कोणुसमओ, सया पयापालणत्थमेव जओ। नयकुलहरस्सदेव-स्स एस सयलो वि संरंभो // 51 / / तो तलवरो गिहतो, पविसिय जा निउणयं निहालेइ। ता कंचणवासणयं, चंदणनामंकियं लद्धं // 52 // तो भणइ सदुक्खमिमो, कुओतए चक्कदेव ! पत्तमिणं / किह मित्तत्थवणीयं, पयडेमि नियं ति सो भणइ॥५३॥ तलवरःकह चंदणनामंकं, (चक्र०) नामविवजासओ कह विजायं। तलवरःजइ एवं ता कित्तिय-मित्तं इह वासणे कणगं // 54|| चक्रदेवःचिर गोवियं तिन तहा, सुमरेमि अहं सयंचिय निएह। तलवरःभंडारिय! किंसंखं, धणमिह सो आह अजुयमियं // 55 / / तो छोडाविय नउलं, नियंति सव्वं तहेव तं मिलियं। भणइ पुणो रक्खिपहू, भो भद्द ! फुडक्खरं कहसु // 56 / / अह वीसत्थं सहयं, सुकीलियं कीलियं पचितम्मी। मित्तं दूसेमि कहं, तो चक्कदेवो पुणाह नियं / / 57 / / तलवरःकित्तियमित्तं परसं-तिय धणं तुह गिहम्मि चिट्ठइ। चक्रदेवःनिययं पि अस्थि बहुयं, पजत्तं मम परधणेणं / / 58|| तो तलवरेण सव्वं, गिहं नियंतेण तं धणं पत्तं /