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________________ सनिल-दर्शन ] उपनिद-दर्शन दो जर्मन विद्वानों-एफ० मिशल ने १८८२ ई० में तथा बोटलिक ने १९८९ ई. में उपनिषदों के जर्मन अनुवाद किये । तदनन्तर पालल्यूसन ने १० आथर्षण उपनिषदों के जर्मन अनुवाद १८९७ ई. में और आर० हघूम ने आंग्ल अनुवाद १९२१ ई० में (१३ प्रमुख उपनिषदों का) प्रकाशित किया। भारतीय विद्वानों में सीताराम शास्त्री लिया गंगानाथ झा ने आठ प्रमुख उपनिषदों का अंगरेजी अनुवाद १८९८ से १९०१ के बीच किया। डॉ. राधाकृष्णन् ने रोमन अक्षरों में प्रमुख उपनिषदों का मूल एवं आंग्लानुवाद प्रस्तुत किया है जो सिपल उपनिषदस' के नाम से प्रकाशित है। गीता प्रेस, गोरखपुर से तीन खण्डों में प्रमुख उपनिषदों के हिन्दी अनुवाद : प्रकाशित हुए हैं बार 'उपनिषद अंक' में १०८ उपनिषदों के हिन्दी अनुवाद का प्रकाशन हुआ है। उपनिषदों के रचयिताओं के जीवन के विषय में कुछ भी शान नहीं है। इनमें प्रजापति, इन्द्र, नारद एवं सनत्कुमार के मुख्य संवाद हैं। उपनिषदों में महिदास, ऐतरेय, रैक्क, शाण्डिल्या असल्याम जाबाल, बलि, “उहालक, श्वेतकोतु, भारद्वाज, गायिण, प्रतर्दन, बालाकि, अजातशत्रु वरुण, याज्ञवल्क्य, गार्मो तया मैनेवी के विचार संगृहीत हैं और वे वक्ता के रूप में उपस्थित हैं। उपनिषदों पर अनेक प्राचार्यों ने, 'अपने मत का प्रतिपादन करने के लिए, भाष्यों की रचना की है जिनमें शंकर, रामानुज, मध्य आदि के अतिरिक्त सायण, ज्ञानामृत, व्यासतीयं आदि के नाम प्रसिद्ध हैं। मुख्य प्रतिपाद्य है ब्रह्मविद्या, जिसे कपा और काव्य के माध्यम से यात्मिक शैली में प्रस्तुत किया गया है। इनमें तत्वज्ञान, नीतिशास्त्र, सृष्टिरचना, ब्रह्म, जीक, जगत, मोक्ष, धार्मिक चेतना, पाप और दुःख, कर्म, पारलौकिक जीवन, सांख्य, योग, मनोविज्ञान आदि विषयों का निरूपण है। प्रत्येक वेद के पृथक्-पृथक् उपनिषद हैं। . [ इस कोश में प्रमुख १६ उपनिषदों का परिचय दिया गया है ] [ दे० उपनिषद् दर्शन] । ..आधारगन्थ- १. भारतीय दर्शन भाग १--डॉ० राधाकृष्णन् १. भारतीय संस्कृति औपनिषदिक धारा-डॉ० मंगलदेव शास्त्री ३. वैदिक साहित्य एवं संस्कृति-सं० बलदेव उपाध्याय ४. उपनिषद् (तीन खण्डों में )-हिन्दी अनुवाद सहित अनु० श्रीराम शर्मा ५. कन्स्ट्रकटिव सर्वे ऑफ औपनिषदिक फिलॉसफी-डॉ. रानाडे : : उपनिषद-दर्शन--उपनिषद् भारतीय तत्वचिन्तन के क्षेत्र में प्रस्थानत्रयी ( उपनिषद् ब्रह्मसूत्र एवं कीता) के प्रथम सोपान के रूप में समाहत हैं। ये भारतीय दर्शन की वह नींव हैं जिनके ऊपर प्राचीन एवं अर्वाचीन अनेक विचारधाराओं एवं धार्मिक सम्प्रदायों की अट्टालिकाएं खड़ी हैं। इनमें जिज्ञासु मानव की आत्माको शान्ति के लिए आध्यात्मिक समाधान प्रस्नोत्तर के रूप में प्रस्तुत किये गये हैं वो स्वतः स्फुरित काव्यात्मक उद्गार हैं। इनकी रचना एक समय में नहीं हुई है; और न ये एक व्यक्ति की कृतियाँ हैं, अतः इनमें कहीं पूर्वापर विरोध एवं कुछेक अधैज्ञानिक बातें भी पायी जाती हैं। इनमें विचारशील धार्मिक मस्तिष्क की काव्यमिश्रित, सार्शनिक एवं आध्यात्मिक सत्य की झलक मिलती है। प्रो० जे० एस० मैकेंजी के अनुसार उपविषदों में जो प्रयत्न हमारे सम्मुख रखा गया है वह विश्व के निर्माण सम्बन्धी सिद्धान्त का
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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