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________________ उत्तररामचरित ] (६८) [ उत्तररामचरित सीता के प्रति प्रगाढ़ प्रेम होने के कारण ही रामचन्द्र अश्वमेध यज्ञ में सीता की स्वर्ण प्रतिमा स्थापित करते हैं। सीता के अतिरिक्त किसी अन्य स्त्री के प्रति वे आकर्षित नहीं होते। परिश्रांता सीता से सोने का अनुरोध करते हुए राम का वचन इस प्रकार है आविवाहसमयाद् गृहे वने शैशवे तदनु यौवने पुनः । स्वापहेतुरनुपाश्रितोऽन्यथा रामबाहुरुपधानमेष ते ॥ १।३७ ।। 'विवाह के सयय से लेकर शैशव में घर में उसके अनन्तर फिर यौवन में वन में सोने का कारण, अन्य स्त्री से असेवित यह राम की भुजा तुम्हारा तकिया है।' सीता के त्याग की वेदना राम के लिए असह्य है। शम्बूकवध के समय भी उन्हें अपनी कठोरता का ध्यान बना रहता है और वे इस कठोरता के कारण उत्पन्न शोक की व्यंजना करते दिखाई पड़ते हैं ___रामस्य बाहुरसि निर्भरंग खिन्नसीताविवासनपटोः करुणा कुतस्ते । ' कर्तव्य-पालन के प्रति दृढ़ निष्ठा रखने वाले राम के हृदय में कोमलता एवं दयालुता भी विद्यमान है। वे कोमल, नम्र एवं मृदु भी हैं। चित्र-दर्शन के प्रसङ्ग में परशुराम के दृश्य को देखकर जब लक्ष्मण उनकी प्रशंसा करना चाहते हैं तो वे उन्हें ऐसा कहने से रोक देते हैं। अपना उत्कर्ष एवं परशुराम का अपकर्ष सुनना उन्हें अच्छा नहीं लगता। यह उनकी महत्ता का द्योतक है। कैकेयी के कोप तथा वर-याचना के दृश्य को वे इसलिए छोड़ देते हैं कि इससे माता के प्रति दुर्भावना का उदय होगा। हनुमान जी का चित्र देखकर वे कृतज्ञता से भरकर उनके उपकारों को स्वीकार करते हुए उनकी प्रशंसा करते हैंदिष्टया सोऽयं महाबाहुरन्जनानन्दवर्धनः । यस्य वीर्येण कृतिनो वयं च भुवनानि च ॥१॥३२ अपने परिजनों के प्रति यह उदारभाव राम के महनीय चरित्र का परिचायक है। राम में विनय भावना का आधिक्य है और वे आत्मप्रशंसा के भाव से रहित हैं। राम गम्भीर स्वभाव के व्यक्ति हैं। सीता के विरह से यद्यपि उनका हृदय दग्ध हो रहा है पर वे अपनी इस पीड़ा को कभी प्रकट नहीं करते। उनके गम्भीर स्वभाव के कारण ही यह व्यथा प्रकाशित नहीं होती। मिट्टी से लीपा गया पात्र जिस प्रकार अवाँ में पकता है उसी प्रकार इनका हृदय भी दग्ध हो रहा हैअनिभिन्नो गम्भीरत्वादन्तगूढघनव्यथः । पुटपाकप्रतीकाशो रामस्य करुणो रसः ॥ ३१ इनका दुःख प्राणघाती है फिर भी वे प्रजा के कल्याण के लिए ही जीवित हैंदह्यमानेन मनसा देवाद्वत्सां विहाय सः । लोकोत्तरेण सत्त्वेन प्रजापुण्यश्च जीवति ।। ७७ उनके हृदय में वात्सल्य प्रेम की धारा अविरल रूप से प्रभावित होती है। वे लक्ष्मणपुत्र चन्द्रकेतु को आत्मज की भांति प्रेम करते दिखाई पड़ते हैं। राम के रूप का प्रभाव भी अद्भुत है । लन उनको देखते ही अपना सारा क्रोध भूल जाता है। . इस प्रकार राम एक आदर्श व्यक्ति के रूप में चित्रित किये गये हैं। उनके व्यक्तित्व में आदर्श राजा, आदर्श पति, आदर्श स्वामी आदि का मिश्रण है। वे क्षमा, दया, औदार्य, गम्भीरता, स्नेह, विनयशीलता आदि के साक्षात् विग्रह हैं।
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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